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विधानसभा नहीं चलने पर स्पीकर दिनेश उरांव ने चिंता जतायी, कहा- लोकतंत्र के मानदंड पर खरा नहीं उतर रहा सदन

रांची : झारखंड विधानसभा नहीं चलने पर आसन ने चिंता जतायी है. सोमवार को मॉनसून सत्र की शुरुआत के मौके पर स्पीकर दिनेश उरांव ने कहा कि हम लोकतंत्र के मानदंडों पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं. विधायी कार्य गौण हो गये हैं और राजनीतिक महत्वाकांक्षा हावी हो गयी है. जनता के सवाल से […]

रांची : झारखंड विधानसभा नहीं चलने पर आसन ने चिंता जतायी है. सोमवार को मॉनसून सत्र की शुरुआत के मौके पर स्पीकर दिनेश उरांव ने कहा कि हम लोकतंत्र के मानदंडों पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं.
विधायी कार्य गौण हो गये हैं और राजनीतिक महत्वाकांक्षा हावी हो गयी है. जनता के सवाल से ही सरकार को अपनी नीति और योजनाओं को सदन में रखने और विपक्ष को उसकी आलोचना का अवसर मिलता है. सदन संवाद स्थापित करने का सर्वोच्च स्थान है. संवादहीनता (चाहे वह सदन के बाहर हो या सदन में) विकास के मार्ग में बाधा पैदा करती है.
उन्होंने कहा कि हरेक सदस्य स्वयं में पूरी की पूरी सभा है. मैं किसी सदस्य के अधिकार का हनन नहीं होने देना चाहता हूं. प्रत्येक सदस्य अपने कर्तव्य का पालन करे, तो दूसरे सदस्य के अधिकार की रक्षा स्वत: हो जायेगी. सभा के बाहर चाहे कितनी भी सर्वदलीय बैठकें, सचेतकों के संग बैठकें और दलीय बैठकें की जायें, इसका सार्थक प्रभाव नहीं दिखता. सभा के निर्धारित कार्य वाद-विवाद और सुझाव के साथ निष्पादित होने चाहिए. सदस्यों को अनुशासित करना सभी दलीय नेताओं और सचेतकों की जिम्मेदारी है.
मॉनसून सत्र में मिटेंगे मतभेद : स्पीकर ने उम्मीद जतायी है कि मॉनसून सत्र के दौरान मतभेद मिटेंगे. उन्होंने कहा कि सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच विगत कुछ सत्रों में बनी दूरी मिटेगी. इसके पहले श्री उरांव ने सदन की दो नयी विधायक सीमा देवी और बबीता देवी से सदन का परिचय कराया.
विधानसभा नहीं चलने से विकास में बाधक बने तत्वों को राहत
स्पीकर दिनेश उरांव ने अपने अनुभव का जिक्र करते हुए कहा कि सभा सुचारु रूप से नहीं चलने के कारण उन तत्वों को राहत मिलती है, जो राज्य के विकास में बाधक बनते हैं और योजनाओं को जनता तक पहुंचाने में कोताही बरत रहे हैं. जनप्रतिनिधियों के माध्यम से कार्यपालिका को विधायिका के प्रति जवाबदेह बनाने में हम सफल नहीं हो पा रहे हैं. सदस्य अक्सर करते हैं कि विधानसभा की समिति का महत्व कम हुआ है.
सभा में पूछे जाने वाले प्रश्नों, ध्यानाकर्षण, गैर सरकारी संकल्प और आश्वासनों आदि जनहित के सवालों का महत्व कम हुआ है, तो क्या हम इसके लिए आंशिक तौर पर स्वयं उत्तरदायी नहीं हैं? नियमों और संसदीय व्यवस्था के तहत सभा में विषय आये तो चर्चा होगी, सरकार का उत्तर होगा तभी तो कार्य की योजनाओं की समीक्षा होगी. गैर जवाबदेह और विकास में बाधक बनने वाले तत्वों पर शिकंजा कसेगा और हम कार्यपालिका को जवाबदेह बना सकेंगे. हम या तो सेल्फ गोल कर रहे हैं या फिर दूसरे को वाॅकओवर दे रहे हैं. लोकतंत्र की यह स्थिति सुखद नहीं है.
सदन ने बागुन दा सहित कई दिवंगतों को दी श्रद्धांजलि
विधानसभा ने पूर्व सांसद बागुन सुंब्रई सहित कई दिवंगतों को श्रद्धांजलि दी. सदन में विधानसभा अध्यक्ष डॉ दिनेश उरांव ने कहा कि श्री सुंब्रई पांच बार सांसद रहे. चार बार विधायक रहे. लंबी बीमारी के बाद उनका 22 जून को निधन हो गया था. वह सामाजिक रूप से काफी सक्रिय रहे.
सदन ने मसीह सोरेन, अवधेश कुमार सिंह, एलबी शाही, कामेश्वर पासवान, बाल कवि बैरागी, पदमशा झा, केदारनाथ सिंह, स्टीफन हॉकिन्स, श्री देवी, आरआर प्रसाद, राजेंद्र सच्चर व प्रवीण कुमार को भी श्रद्धांजलि दी. सदन के नेता, नेता प्रतिपक्ष आदि ने भी शोक प्रकाश में विचार रखा.

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