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पटना : 10 ट्रामा सेंटर, एक भी चालू नहीं
पटना : स्वास्थ्य विभाग द्वारा हर साल 17 अक्तूबर को विश्व ट्रामा दिवस (विश्व आधात दिवस) मनाया जाता है. बिहार में केंद्र के सहयोग से 10 ट्रामा सेंटरों की स्थापना होनी है. वर्तमान में राज्य में एक भी ट्रामा सेंटर कार्यरत नहीं है. ट्रामा की बीमारी अब महामारी की तरह फैल रही है. इस बीमारी […]
पटना : स्वास्थ्य विभाग द्वारा हर साल 17 अक्तूबर को विश्व ट्रामा दिवस (विश्व आधात दिवस) मनाया जाता है. बिहार में केंद्र के सहयोग से 10 ट्रामा सेंटरों की स्थापना होनी है. वर्तमान में राज्य में एक भी ट्रामा सेंटर कार्यरत नहीं है. ट्रामा की बीमारी अब महामारी की तरह फैल रही है. इस बीमारी का पूर्व लक्षण ही नहीं मिलता. इन मरीजों को गंभीर किस्म के इलाज की आवश्यकता होती है.
विशेषज्ञों की मानें तो शारीरिक ट्रॉमा का मतलब है शरीर को कोई भी क्षति पहुंचनी. यह सड़क दुर्घटना से, आग से, जलने से, गिरने से , हिंसा की घटनाओं में, प्राकृतिक आपदा में नागरिकों को ट्रामा सेंटर की आवश्यकता है. ट्रामा सेंटर में इलाज की आवश्यकता तब भी पड़ती है जब शरीर में कोई गहरा आघात, सामाजिक, मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक किसी भी रूप में चोट पहुंचती है.
सड़क दुघर्टना है प्रमुख कारण: पूरे विश्व में ट्रामा का सबसे प्रमुख कारण सड़क दुघर्टनाएं हैं. बिहार में हर साल करीब पांच लाख लोगों की मौत दुर्घटना के कारण होती है. इसमें सैकड़ों लोग विकलांग हो जाते हैं. सड़क दुर्घटना में मरने वालों में युवाओं की संख्या अधिक है. मनोवैज्ञानिक ट्रामा का कारण शारीरिक और मानसिक चोट, कोई रोग या सर्जरी के बाद भी हो सकती है. इसी तरह से शारीरिक क्षति पहुंचाये बगैर भी लोग भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक ट्रामा के शिकार हो जाते हैं.
राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यपालक निदेशक मनोज कुमार ने बताया कि राज्य में केंद्र के सहयोग से 10 ट्रामा सेंटरों की स्थापना की जानी है. फिलहाल एक भी ट्रामा सेंटर कार्यरत नहीं हैं. जिन स्थानों पर ट्रामा सेंटरों की स्थापना की जानी है उनमें पटना जिले में बिहटा, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, गया, सासाराम, पूर्णिया, किशनगंज, दरभंगा, मधुबनी और मधेपुरा शामिल हैं.
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