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प्रभात खबर, पटना की यात्रा के 23 साल पूरे : विरासत को सहेजते हुए गढ़ें भविष्य

पूर्व संध्या पर संगोष्ठी का आयोजन प्रभात खबर (पटना संस्करण) की यात्रा के 23 साल पूरे हुए. इस यात्रा में कई उतार-चढ़ाव आये. पिछला दशक तकनीक में भारी विकास का रहा. इसने एक तरह से बहुत कुछ बदल दिया. बीते सालों में सोशल मीडिया का प्रभाव जबर्दस्त तरीके से बढ़ा है. इन बदलावों और दबावों […]

पूर्व संध्या पर संगोष्ठी का आयोजन

प्रभात खबर (पटना संस्करण) की यात्रा के 23 साल पूरे हुए. इस यात्रा में कई उतार-चढ़ाव आये. पिछला दशक तकनीक में भारी विकास का रहा. इसने एक तरह से बहुत कुछ बदल दिया. बीते सालों में सोशल मीडिया का प्रभाव जबर्दस्त तरीके से बढ़ा है. इन बदलावों और दबावों के बावजूद हमने पत्रकारीय मूल्यों को बनाये रखने की कोशिश की. हम मानते हैं कि पत्रकारिता का काम सूचना देने के साथ समाज के सपनों-आकांक्षाओं को सामने लाना भी है. भविष्य में समाज कैसा हो, इसे भी बताना हमारा काम है. ऐसे में स्थापना दिवस पर हमने प्रभात खबर कार्यालय में अपने-अपने क्षेत्रों में सालों से काम करने वाले लोगों को बुलाया और भविष्य के बिहार पर बात की.

इस मौके पर लोगों ने अपनी विरासत को सहेजते हुए भविष्य को गढ़ने की बात कहीं. इसमें शिक्षा, रोजगार,स्वास्थ्य, औद्योगिक माहौल बनाने पर भी बात हुई. पॉलिसी मेकर के लिए उन्होंने अपने अनुभवों को साझा किया. सामंती माइंड सेट को विकास के लिए बड़ी बाधा के तौर पर रेखांकित किया गया. इसलिए लोकतांत्रिक मूल्य-व्यवहार को लगातार मजबूत करने की वकालत की गयी. यही वह औजार है जो प्रतिगामी विचारों को समाप्त कर सकता है. कुल मिलाकर वक्ताओं ने कहा कि बिहार के माटी-पानी में इतनी क्षमता है कि वह नया इंसान गढ़ सके.

हम एक ऐसे बिहार का निर्माण करें, जिस पर हम गर्व कर सकें. यहां क्वालिटी एजुकेशन की जरूरत है. पब्लिक हेल्थ पर ध्यान देना होगा. महिलाओं की सुरक्षा पर भी ध्यान देने की जरूरत है. इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार हुआ है. लेकिन बिहार का विकास बड़ी-बड़ी इमारतों के निर्माण से नहीं होगा. एक बेहतर इंसान बनाने का काम भी बिहार में होना चाहिए, जो एक दूसरे के आंसू पोछ सकें. इसके साथ सरकार को उद्योग नीति को बदलना होगा. अब तक बिहार में उद्योग

नहीं लग पाये. जटिल प्रक्रिया को सरल बनाने की जरूरत है. भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार सेकुलरिज्म, सोशलिज्म और डेमोक्रेसी हर स्थिति में होनी चाहिए. जिस घर में डेमोक्रेसी नहीं होती, वह घर भी बर्बाद हो जाता है. इस कारण हर हाल में आलोचना का एक स्थान होना चाहिए. लोगों की बात सुनी जानी चाहिए. प्रभात खबर के सकारात्मक सोच की सराहना करता हूं. हमेशा से मौलिक दायित्व को निभाता आ रहा है.

बच्चों को बनाना होगा बेहतर इंसान

-प्रो एनके चौधरी, अर्थशास्त्री

ह्यूमन रिसोर्स किसी भी राज्य के लिए जरूरी है. लेकिन अच्छे ह्यूमन रिसोर्स को डेवलप करने की जो बुनियादी जरूरत है, उसे सुधारने की जरूरत है. बिहार में शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की जरूरत है. शिक्षा के स्तर में सुधार करने की जरूरत है. इसके साथ ही हेरिटेज को बचाने की बेहतर योजना भी होना चाहिए. अभी कई पुरानी पांडुलिपियां मौजूद हैं, लेकिन इन्हें पढ़ने वाला कोई नहीं है, जबकि उसे रिवाइज करने की जरूरत भी है.

बिहार के हेरिटेज को महफूज करने की जरूरत है. बिहार के हेरिटेज को किस प्रकार बचाया जाये, यह सोचना होगा. लेकिन इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है. जर्जर भवनों को भी नष्ट किया जा रहा है, जबकि इसे सुरक्षित करने की जरूरत है. बिहार को हेरिटेज को बचाने के साथ-साथ बेहतर इंसान बनाने की दिशा में काम करना चाहिए.

हेरिटेज को बचाने का हो प्रयास

-डॉ इम्तियाज

अहमद, इतिहासकार

समाज में लोगों के बीच दूरियों को पाटने की जरूरत है. हम लोगों की जिम्मेदारी इसमें ज्यादा बनती है. मैं बिहार को लेकर काफी सजग हूं. इंग्लैंड छोड़ कर पटना आया और यहां काम कर रहा हूं. अभी राजनीति का समय सही नहीं है. राजनीति में परिवारवाद आते ही डेमोक्रेसी का अंत हो गया.

यूथ को डेमोक्रेसी का सही अर्थ समझाने की जरूरत है. सभी पहलुओं को युवाओं को सोचना होगा. अंध भक्त की तरह नहीं रहना चाहिए. हर पहलुओं पर सवाल-जवाब होने चाहिए, ताकि बेहतर चीजें निकल कर सामने आएं. अभी सभी लोगों को बेहतर और सस्ता इलाज चाहिए, लेकिन राजनीतिक पार्टियां कभी भी हेल्थ को एजेंडा नहीं बना पायीं. किसी मेडिकल कॉलेज में गरीब का इलाज नहीं हो रहा है, इसका मतलब है कि कहीं गैप है.

सिस्टम में खामियां है. मशीनें खरीदी जा रही हैं, लेकिन इन्हें चलाने वाले नहीं हैं. यहां डॉक्टरों के ग्रुप को प्रैक्टिस पर ध्यान देना चाहिए. सरकार को एक सिस्टम बनाना चाहिए.

हेल्थ को एजेंडा नहीं बना पायीं पार्टियां

-डॉ सत्यजीत सिंह, प्रसिद्ध चिकित्सक

बिमुझे एक बेहतर बिहार चाहिए. यहां के युवाओं को कहीं पलायन नहीं करना पड़े. देश के नामचीन शिक्षण संस्थानों का विकास होना चाहिए. यहां के बच्चों को हायर एजुकेशन के लिए सोचना नहीं पड़े. अभी यहां बेहतर इंस्टीट्यूशन की कमी है. इस कमी को दूर करने का प्रयास जल्द होना चाहिए

बेहतर इंस्टीट्यूशन की कमी

-प्रियस्वार

बिहार का विकास हुआ है. इसके अलग-अलग पहलू हैं. लेकिन अब भी बहुत जरूरत है. बिहार सबसे ज्यादा कृषि पर निर्भर करता है. यहां के 71 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर हैं. इसलिए कृषि पर ध्यान देने की जरूरत है. यहां सबसे बड़ा व्यापार मत्स्य पालन का हो सकता है.

आठ लाख टन मछली उत्पादन की जरूरत है, जो अभी तीन लाख टन ही हो रहा है. मछली उत्पादन क्षमता बढ़ाने की जरूरत है. स्किल पैदा कर चेतना विकसित करनी होगी. निर्माण, कृषि और शिक्षा पर ध्यान देने की जरूरत है. यहां के 9% लोग निर्माण कार्य से जुड़े हैं. शिक्षा पर ध्यान देने की जरूरत है. प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा के साथ हायर एजुकेशन पर ध्यान देने की जरूरत है. शोधपरक शिक्षा के साथ प्रोन्नति में शोध पत्रों को महत्व देना बहुत जरूरी है.

कृषि पर ध्यान देने की जरूरत

-प्रो शिव जतन ठाकुर, शिक्षाविद

ये बच्चे बिहार ही नहीं देश के भविष्य हैं

-निपुणह गुप्ता, संचार विशेषज्ञ, यूनिसेफ

बिहार की लगभग 47 फीसदी आबादी 18 वर्ष से कम उम्र की है. ये बच्चे बिहार ही नहीं देश के भविष्य हैं. अगर, बिहार को विकास की राह पर ले जाना है. तो इन्हें सुदृढ़ बनाना होगा. इन्हें केवल पोषक तत्व देकर समाज और राज्य अागे नहीं बढ़ा सकेगा. वैसे बच्चों के लिए राष्ट्रीय नीति बनी हुई है, लेकिन उसे और मजबूती से लागू करने की जरूरत है.

पोषक तत्व के साथ-साथ इनके सामाजिक, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए विशेष कुछ करने की जरूरत है. सकारात्मक घोषणाओं का क्या हुआ, इस पर भी अखबारों को रिपोर्टिंग करनी चाहिए. ताकि, घोषणा की प्रगति कितनी हुई और लोगों को इससे फायदा मिला कि नहीं उसे भी उजागर करना चाहिए. बच्चों से जुड़े मुद्दों को समय-समय पर उठाना चाहिए. समाचार पत्र ने मुजफ्फरपुर बालगृह की घटनाओं को उजागर किया और प्रमुखता से लोगों के बीच रखा.

लगातार उससे जुड़ी हर खबरों को तब तक फॉलो करने की जरूरत है, जब तक अंजाम तक नहीं पहुंच जाये. बिहार का पुराना गौरव प्राप्त करने के लिए सरकार को सिस्टम और मजबूत करना होगा. साथ ही लोगों को जगाना होगा, तभी बेहतर राह निकल सकती है.

अखबारों में कला-संस्कृति पर फोकस हो

-श्याम शर्मा, वरिष्ठ चित्रकार और कला समीक्षक

कला-संस्कृति और विरासत के मामले में बिहार की अलग ही पहचान रही है. इसी से अभिभूत होकर देश-दुनिया से लोग बिहार सदियों से आते रहे हैं. कुछ साल पहले तक कला-संस्कृति पर समाचार पत्रों में एक विशेष पृष्ठ प्रकाशित किया जाता था, लेकिन आज कला-संस्कृति की खबरें केवल सूचनात्मक होती हैं. समीक्षात्मक धरातल को ऊपर उठाने की जरूरत है. नाटक की रिपोर्टिंग छपी.

पहले या बाद में क्या हुआ उसका जिक्र नहीं होता है. अत: समीक्षा जरूरी है. समीक्षा के बिना कला का विकास नहीं हो सकता. कला कैसे विकसित हो इसका अभाव बिहार में दिखता है. खबरों से नयी पीढ़ी हो कला-संस्कृति और विरासत के अतीत के बारे में बताने की जरूरत है.

साथ ही धरोहर को कैसे संरक्षित किया जाये. समाचार के अलावा कार्यक्रम में भाग लेने आये कलाकारों के बारे में भी लिखा जाना चाहिए. कलाकार के स्तर के बारे में सौंदर्य बोध कैसे हो, उसकी प्रक्रिया शुरू हो जानी चाहिए. कला-संस्कृति हाशिये पर रही है, लेकिन कला-संस्कृति के विकास के बिना बिहार के विकास की बात करना बेमानी होगी.

राज्य में उद्योग-धंधों को बढ़ावा मिले

-राम लाल खेतान, पूर्व अध्यक्ष, बिहार इंडस्ट्रीज एसो.

जब तक बिहार का विकास नहीं होगा, तब तक राष्ट्र का विकास नहीं होगा. यह 100 फीसदी सच है. बिहार में उद्योग-धंधे की जितनी संभावनाएं हैं, उसका 10 फीसदी भी उपयोग नहीं हो रहा है. सरकारी घोषणाएं कागजों तक ही रह गयी हैं.

सरकार ने औद्योगिकी नीति बनायी, लेकिन, उसका फायदा बिहार को नहीं मिला. इसका मुख्य कारण है सिंगल विंडो सिस्टम का नहीं होना. न तो निवेशकों को जमीन मिल रही है और न सुविधाएं. निवेशकों को विभागों का चक्कर लगाना पड़ता है. इसके कारण बाहर के निवेशक थक हार कर वापस लौट जा रहे हैं. अभी तक जो उद्योग लगे हैं, उन्हें बिहार के लोगों ने ही लगाया है. बिहार एक उपभोक्ता राज्य है, लेकिन यहां उद्याेग नहीं लग रहे हैं.

इसकी मुख्य वजह सरकार द्वारा उत्पादित माल खरीदने का आश्वासन नहीं दिया जाना है. इसके कारण कई निवेशकों ने अपने प्रस्ताव को वापस ले लिया. जब तक सरकार की सोच नहीं बदलेगी, तब तक उद्योग-धंधे का विकास नहीं होगा. फिलवक्त बिहार के कई बड़े-बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं, लेकिन उसमें बिहार में उत्पादन होने वाली वस्तुओं का प्रयोग नहीं हो रहा है. इस पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है.

सकारात्मक रिपोर्टिंग पर जोर चाहिए

-एन के ठाकुर, उपाध्यक्ष, बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज

बिहार को जागने में समय लगेगा. इस वक्त योजनाओं के लागू करने में बिहार का नंबर मेघालय राज्य के बाद आता है. वैसे राज्य सरकार राज्य के विकास को लेकर चिंतित है, लेकिन सच्चाई कुछ और है. सूबे के विकास में समाचार पत्रों की अहम भूमिका होती है, लेकिन पिछले कई मामलों में निगेटिव रिपोर्टिंग के कारण बिहार के उद्योग-धंधों को काफी नुकसान हुआ है. ताजा मामला लीची को लेकर है.

चमकी बुखार का कारण लीची को बताया गया जबकि सच्चाई यह है कि चमकी बुखार का कारण चिकित्सकों ने कुपोषण बताया. समाचार प्रकाशित होने के बाद निर्यातकों ने अपने-अपने ऑर्डर रद्द कर दिया, जिसके कारण किसानों को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ.

किसानों की कोई सुध लेने वाला नहीं है. इसी तरह बिल्डरों के खिलाफ समाचार पत्रों ने एक मुहिम चलाया. नतीजा यह हुआ कि बड़े-बड़े प्रोजेक्ट बिहार में बंद हो गये. प्रोजेक्ट बंद होने से रियल एस्टेट से जुड़े कारोबार के साथ श्रमिकों का पलायन हो गया. जबकि सच्चाई कुछ और थी. अगर निगेटिव रिपोर्टिंग होती रही, तो अन्य उद्योग-धंधे भी बंद हो जायेंगे. सकारात्मक रिपोर्टिंग भी होनी चाहिए.

विकास के लिए हिंसा मुक्त समाज हो

-निवेदिता झा, वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता

सूबे को विकास की राह पर आगे ले जाना है, तो सबसे पहले हिंसा मुक्त समाज होना चाहिए. आज से कुछ साल पहले वह वक्त था, आज महिलाएं और बेटियां हिंसा की शिकार हो रही हैं, जो सभ्य समाज के लिए किसी लिहाज से अच्छा नहीं है. आम लोगों के अधिकारों की सुरक्षा होनी चाहिए.

पिछले दिनों सूबे में कई ऐसी घटनाएं महिलाएं और लड़कियों के साथ हुई पूरी तरह समाज और समाज को झकझोर कर रख देनी वाली थीं. समाचार पत्रों में फैशन शो की खबरों को काफी प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया जाता है. वहीं सामाजिक खबरों को वह तवज्जो नहीं दी जाती है. हिंसा मुक्त समाज के लिए महिलाओं व दलितों पर विशेष ध्यान देना होगा. तभी बिहार का विकास होगा. महिलाओं और आमलोगों के लिए सुरक्षा का माहौल होना चाहिए.

समकालीन चेतना का निर्माण जरूरी

-परवेज अख्तर,

मशहूर

रंगकर्मी

हिंदी पट्टी के राज्यों में कला पेशा का रूप ग्रहण नहीं कर पायी है. कला कब पेशा का रूप ग्रहण करेगी, यह देखना होगा. इसमें सरकार को सहयोग करना होगा. कला को लेकर बंगाल काफी समृद्ध है. युवाओं को समकालीन प्रारूप को बताना होगा. वैज्ञानिक और समकालीन चेतना का निर्माण करना होगा. बिहार में कृषि आधारित विकास के साथ टूरिज्म को लेकर बेहतर काम किया जा सकता है. इसके साथ ही शहरों के डेवलपमेंट पर ध्यान देना होगा. निर्माण कार्य शहरों और इलाकों के हिसाब से होना चाहिए. सबसे पहले जरूरतों पर ध्यान देना चाहिए और नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं मिले.

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