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पांच जिलों में मेडिकल कॉलेज के लिए जमीन हस्तांतरण में तेजी लाने का निर्देश

पटना : मुख्यमंत्री के सात निश्चय योजना के तहत प्रदेश में विकास की रफ्तार तेज हो गयी है. इसी क्रम में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को और मजबूत करने और मेडिकल की पढ़ायी की जरूरत को देखते हुए सरकार ने ‘अवसर बढ़े, आगे पढ़ें’ निश्चय के तहत पांच जिलों में नये मेडिकल कॉलेज खोलने का निर्णय लिया […]

पटना : मुख्यमंत्री के सात निश्चय योजना के तहत प्रदेश में विकास की रफ्तार तेज हो गयी है. इसी क्रम में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को और मजबूत करने और मेडिकल की पढ़ायी की जरूरत को देखते हुए सरकार ने ‘अवसर बढ़े, आगे पढ़ें’ निश्चय के तहत पांच जिलों में नये मेडिकल कॉलेज खोलने का निर्णय लिया है.
इसमें मधुबनी, वैशाली, सीतामढ़ी, भोजपुर और बेगूसराय शामिल हैं. इसके लिए जमीन की खोज भी पूरी हो गयी है. बिहार विकास मिशन की पिछले दिनों हुई बैठक में इस पर मुख्य सचिव ने विस्तार से चर्चा भी की थी. उन्होंने चिह्नित भूमि के हस्तांतरण के निर्देश भी दिये हैं. उन्होंने कहा था कि हस्तांतरण की कार्रवाई जल्दी पूरी की जाये, ताकि मेडिकल कॉलेज का निर्माण प्रारंभ किया जा सके. संबंधित जिलों की सरकारी मशीनरी सक्रिय हो गयी है.
चिह्नित भूमि के हस्तांतरण का मुख्य सचिव ने दिया निर्देश, 800 करोड़ रुपये का बजट
मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना के तहत पांच जिलों में चिकित्सा महाविद्यालयों की स्थापना के लिए करीब दो साल पहले कवायद शुरू हुई थी. उस दौरान संबंधित सभी जिलों में निर्माण के लिए करीब 800 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया था. सभी जिलों में भूमि के लिए दिशा-निर्देश काफी पहले जारी किया गया था.
सभी जिलों में भूमि उपलब्ध हो गयी है. सरकार का मानना है कि भोजपुर में मेडिकल कॉलेज बनने से भोजपुर और बक्सर दोनों जिलों को लाभ मिलेगा. जमीन का चयन भी कुछ ऐसी जगह पर किया गया है. सीतामढ़ी मेडिकल कॉलेज के लिए जमीन की तलाश काफी पहले पूरी कर ली गयी थी. बेगूसराय में उद्योग विभाग की जमीन पर मेडिकल कॉलेज की स्थापना होनी है.
सुधरेगी सेहत, खत्म होगी परेशानी
बिहार में पांच नये मेडिकल कॉलेज की स्थापना से हालात स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर बेहतर होगी. पूर्व में भी राज्य सरकार के साथ ही केंद्र सरकार ने प्रयास कर पहले से हालात को और बेहतर किया है. विभिन्न योजनाओं के तहत गांव-गांव तक स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर किया जा रहा है. पांच जिलों में मेडिकल कॉलेज की स्थापना भी इसी कड़ी में से एक है.
एक हकीकत यह भी
भारत में प्राइवेट सेक्टर में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ती जा रही हैं. लेकिन सरकारी क्षेत्र में इसका विस्तार ठीक से नहीं हो रहा है. लिहाजा, बड़ी आबादी को सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधा से वंचित रहना पड़ रहा है. एक अनुमान के मुताबिक, देश में करीब 72 फीसदी ग्रामीण आबादी को प्राइवेट हेल्थ केयर सेवाओं का इस्तेमाल करना पड़ता है.
भारत की स्थिति अच्छी नहीं
मेडिकल जर्नल ‘लैंसेट’ में हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2016 में स्वास्थ्य सेवा के उपयोग और उसकी गुणवत्ता यानी एचएक्यू (हेल्थकेयर एक्सेस एंड क्वालिटी) के मामले में भारत 41.2 अंकों के साथ 145वें स्थान पर रहा. यहां भारत, चीन (48), श्रीलंका (71), दक्षिण एशियाई देशों बांग्लादेश (133) और भूटान (134) से भी पीछे है.
लेकिन नेपाल (149), पाकिस्तान (154) और अफगानिस्तान (191) से आगे है. यह रिपोर्ट ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज’ के 1990 से 2016 के बीच 195 देशों व क्षेत्रों के साथ-साथ वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर किये गये अध्ययन पर आधारित है. इस सूचकांक में मृत्यु के उन 32 कारणों को आधार बनाया गया है, जिन्हें प्रभावी चिकित्सा देखभाल के जरिये रोका जा सकता है.

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