26.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

सरकार को ही रखना होगा शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा का ध्यान

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक बिहार सरकार गवाहों की सुरक्षा के लिए ‘गवाह सुरक्षा योजना’ लाने जा रही है. इससे बेहतर खबर कोई और नहीं हो सकती. इससे कमजोर व पीड़ित लोगों में सुरक्षा का भाव पैदा होगा. साथ ही, अदालती सजाओं का प्रतिशत बढ़ेगा, जो बिहार में बहुत कम है. केंद्र सरकार 72 सौ करोड़ […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
बिहार सरकार गवाहों की सुरक्षा के लिए ‘गवाह सुरक्षा योजना’ लाने जा रही है. इससे बेहतर खबर कोई और नहीं हो सकती. इससे कमजोर व पीड़ित लोगों में सुरक्षा का भाव पैदा होगा. साथ ही, अदालती सजाओं का प्रतिशत बढ़ेगा, जो बिहार में बहुत कम है. केंद्र सरकार 72 सौ करोड़ रुपये की सालाना छात्रवृति योजना को लागू करेगी. उधर, प्रधानमंत्री ने मेडिकल पेशे की कमियों की चर्चा भी की है. ये शुभ लक्षण हैं. यानी सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य की ओर सरकारों का ध्यान जा रहा है, पर उतना नहीं,जितने की जरूरत है.
दरअसल इन तीन क्षेत्रों में सरकारी मदद के बिना कमजोर वर्ग के लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. निजी क्षेत्रों के प्रभावशाली लोगों की रुचि गरीबों की सेवा के मामले में अत्यंत सीमित ही रही है. इसलिए भी सरकारों को जिम्मेदारी बढ़ जाती है.
शिक्षा-स्वास्थ्य-सुरक्षा में गुणवत्ता : 7200 करोड़ रुपये वाली प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति योजना का लाभ कमजोर वर्ग के मेधावी छात्र-छात्राओं को मिलने वाला है. इसका लाभ नौंवी कक्षा से लेकर पीजी तक के विद्यार्थियों को मिलेगा.इससे शिक्षा में उन क्षेत्रों में भी गुणवत्ता बढ़ने की उम्मीद जगेगी जहां इसकी कमी महसूस की जाती है. दूसरी ओर, प्राथमिक स्तर के सरकारी स्कूलों में शिक्षण का स्तर उठाने की सख्त जरूरत है.
इसके लिए सरकार को कुछ स्तरों पर कड़ाई भी करनी पड़े, तो वह देशहित में ही होगा. उस कड़ाई का लाभ अंततः कमजोर वर्ग के विद्यार्थियों को ही मिलना है. गरीबों के लिए तो सरकारी स्वास्थ्य केंद्र व अस्पताल ही सहारा है.उनकी हालत लगभग देश भर में असंतोषजनक है. कहीं साधनों का अभाव है, तो कहीं गुणवत्ता में कमी है. कहीं लापारवाही है, तो कहीं भ्रष्टाचार. इन सब बाधाओं को भरसक दूर करके गरीबों तक सरकारी स्वास्थ्य सेवा का लाभ पहुंचाने का काम सरकार नहीं करेगी, तो भला और कौन करेगा?
काम नहीं आये पेशेवर वीडियोग्राफर्स : पिछले दिनों दिल्ली पुलिस ने अनेक वीडियोग्राफर्स सड़कों पर तैनात किये थे. उन्हें सीएए विरोधी प्रतिरोध मार्च को रिकाॅर्ड करना था. प्रतिरोध मार्च के दौरान भारी हिंसा हुई, पर, उन भाड़े के वीडियोग्राफर्स के कैमरों में ऐसी तस्वीरें दर्ज ही नहीं हो पायीं, जो पुलिस के काम आ सकें.क्या वीडियोग्राफर्स की अकुशलता रही या कुछ और? हां, कुछ टीवी चैनलों के फुटेज और दर्शकों के स्मार्ट फोन में दर्ज हिंसक दृश्य जरूर पुलिस के काम आ रहे हैं.
भूली-बिसरी याद : 1972-73 की बात है. कर्पूरी ठाकुर बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता थे. यानी,तब सत्ता में नहीं थे. फिर भी उनके यहां बेरोजगार लोग नौकरी के लिए आते रहते थे. वे चाहते थे कि ठाकुर जी उनके लिए किसी मंत्री या अफसर को फोन करके सिफारिश कर दें. वैसे बेरोजगारों से कर्पूरी जी कहा करते थे,‘आप शार्ट हैंड टाइप राइटिंग सीख लें, तो मैं आपको नौकरी दिलाने की गारंटी दे सकता हूं.’
सीखने का वादा करके नौजवान लौट जाते थे, पर वे सीखकर कभी नहीं लौटते थे, क्योंकि शाॅर्ट हैंड राइटिंग सीखने में मेहनत लगती है. मेहनत कितने लोग करना चाहते हैं? बाद के वर्षों में भी बिहार विधानसभा सचिवालय को जब शाॅर्ट हैंड राइटर्स की जरूरत होती थी, तो सचिवालय को अखिल भारतीय स्तर पर विज्ञापन निकलवाना पड़ता था.
एक बार सुना कि वैसा करने पर भी उम्मीदवार नहीं मिले. खुद को किसी काम में कुशल बना लेने के प्रति अब भी अधिकतर बेरोजगार नौजवानों में अनिच्छा देखी जाती है, जबकि आज भी कुशल मजदूर ,मेकैनिक आदि की बड़ी मांग है.
कौशल का कमाल : करीब 10 साल पहले की बात है. टीवी मरम्मत के काम में एक कुशल व्यक्ति को मैंने अपने घर बुलाया था. करीब पांच मिनट में उसने मरम्मत का काम पूरा कर दिया.उसकी मांग पर मैंने उसे 500 रुपये खुशी-खुशी दे दिये. इन दिनों एक बिजली मिस्त्री बुलाने पर आता है.
सिर्फ आने के दो सौ रुपये वह लेता है. यदि उसने कोई काम किया, तो उसका अलग से चार्ज है.आपके कंप्यूटर को ठीक करने के लिए कोई आया, तो सिर्फ घर आने का न्यूनत्तम शुल्क पांच सौ रुपये है.स्मार्ट फोन मरम्मत वाला तो आपके घर आयेगा ही नहीं.
उसके यहां आपको खुद जाना पड़ेगा. मरम्मत का जो भी मेहनताना बतायेगा,आपको देना पड़ेगा. यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि इन लोगों का मेहनताना जरूरत से अधिक है. संभव है कि अधिक ले रहे हों, पर साथ ही वास्तविकता यह है कि ऐसे कुशल लोगों की कमी है. दूसरी ओर यह काम बढ़ता जा रहा है. यानी ऐसे काम में कुशलता हासिल करने की कोशिश नौजवान करें, तो काम की कमी नहीं रहेगी.
राजनीति की ‘आप’ शैली : कुछ साल पहले तत्कालीन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि हम अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक शैली से सीखेंगे.
राहुल तो नहीं सीख सके, पर यदि इस बार भी अरविंद केजरीवाल चुनाव जीत गये, तो इस देश के कुछ ऐसे नेताओं को केजरीवाल से सीखना चाहिए कि जनता को किस तरह लंबे समय तक खुद से जोड़े रखा जा सकता है. याद रहे कि प्रारंम्भिक सूचनाओं के अनुसार दिल्ली में इस बार भी ‘आप’ की बढ़त के संकेत मिल रहे हैं.
और अंत में
एक सवाल का जवाब अब भी नहीं मिल रहा है. यदि आंदोलनकारियों की मांगें जायज हैं और आंदोलन अहिंसात्मक है, तो फिर वे प्रदर्शन के समय अपने चेहरे पर रूमाल क्यों बांध लेते हैं?

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें