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#DoctorsDay: देश के पहले हृदय रोग विशेषज्ञ थे पटना के डॉ श्रीनिवास, इस काम के लिए आज भी लोग करते याद

साकिब-पहली बार इसीजी मशीन को अमेरिका से भारत लेकर आये थेपटना : समस्तीपुर जिले के सुदूर गांव गढ़सिसाई का एक बच्चा बीमार पड़ने पर अपनी मां के साथ शहर के डॉक्टर के पास जाता है. लेकिन मां के पास इतने पैसे नहीं हैं कि डॉक्टर को फीस दे सके. मां डॉक्टर से विनती करती है […]

साकिब
-पहली बार इसीजी मशीन को अमेरिका से भारत लेकर आये थे
पटना :
समस्तीपुर जिले के सुदूर गांव गढ़सिसाई का एक बच्चा बीमार पड़ने पर अपनी मां के साथ शहर के डॉक्टर के पास जाता है. लेकिन मां के पास इतने पैसे नहीं हैं कि डॉक्टर को फीस दे सके. मां डॉक्टर से विनती करती है कि हम आपको बाद में पैसे दे देंगे. डॉक्टर कहता है कि आप के हाथ में तो सोने के कंगन हैं, जब तक आप पैसे नहीं दे जाती तब तक के लिए ये कंगन बंधक रख दे. बच्चे की मां को मजबूरन कंगन बंधक रखना पड़ता है. इस घटना ने बच्चे के दिल पर गहरा असर डाला. बच्चे ने उसी दिन ठाना कि वह डॉक्टर बनेगा.

मेधावी तो वह था ही आज के पीएमसीएच से पढ़ाई की और उच्च शिक्षा के लिए चला गया अमेरिका. बाद में यही बच्चा पटना ही नहीं देश और दुनिया में मशहूर डॉ श्रीनिवास हुए. वही श्रीनिवास जिसने पटना के इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान की स्थापना की. वही श्रीनिवास जो 1940 के दशक में अमेरिका से इसलिए लौट आये ताकि भारत के गरीब मरीजों का इलाज कर सके. डॉ श्रीनिवास दो नवंबर 2010 को इस दुनिया को छोड़ चले गये. लेकिन आज भी पटना के लोगों के दिलों में जिंदा हैं. इन दिनों उनके पुत्र डॉ तांडव आइंस्टाइन समदर्शी जो अमेरिका में रहते हैं पटना आये हुए हैं. ऐसे में शनिवार को हमने उनसे बात की और जाना डॉ श्रीनिवास के बारे में.

डॉ समदर्शी बताते हैं कि पिता जी का जन्म 30 दिसंबर 1919 को समस्तीपुर के गढ़सिसाई गांव में हुआ था. विदेश में उच्च शिक्षा लेने के बाद स्वदेश लौटे ताकि अपनी शिक्षा का लाभ बिहार के मरीजों को मिल सके. पटना आकर पीएमसीएच के मेडिसिन विभाग में कार्यरत हुए.यहां आकर कार्डियोलोजी स्पेशिएलिटी की नींव डाली. इससे पूर्व फिजिशियन ही हृदय रोगों का भी इलाज करते थे.

महान डॉक्टर के साथ अच्छे इंसान भी

डॉ समदर्शी बताते हैं कि पिता जी बड़े ही दयावान व्यक्ति थे. उनका मानना था कि समाज के किसी भी तबके का आदमी अगर मदद की उम्मीद लेकर आता है तो निराश नहीं लौटे. एक बार पटना हाईकोर्ट की चहारदीवारी से सटी एक झोपड़ी थी, उसमें नागाराम नाम के दलित समाज के एक गरीब व्यक्ति रहते थे. पोती मानकी की शादी के समय नागाराम ने डॉ श्रीनिवास से मदद मांगी. नागाराम की बातें सुनने के बाद उन्होंने शादी के खर्च के बराबर रकम का चेक काट कर दिया. बाद में नागाराम के आग्रह पर उन्होंने मानकी का कन्यादान भी किया. इसके बाद मानकी परिवार के सदस्य की तरह बनी रही.

कहते थे इंसान की पहचान उसके काम से होनी चाहिए
डॉ समदर्शी बताते हैं कि 1948 में विदेश से लौटने के बाद उन्होंने जो पहला काम किया वह ये कि अपना सरनेम सिन्हा हटाया. उनका मानना था कि सरनेम या फैमिली नेम से अलग होकर इंसान की पहचान होनी चाहिए. मेरा नाम तांडव आइंस्टाइन समदर्शी, हमारे बड़े भाई का नाम भैरव उस्मान प्रियदर्शी उन्होंने रखा. हमेशा हमें कहते थे कि हर व्यक्ति और धर्म समान है. धर्म और जाति के आधार पर व्यक्ति का मूल्यांकन नहीं होना चाहिए. हमारे घर के में एक छोटा पूजा घर था इसमें हर धर्म से जुड़े प्रतीक रखे होते थे. 70 साल की उम्र में उन्होंने खुद से उर्दू पढ़ना और लिखना सीखना शुरू किया. इतना ही नहीं उर्दू के इतने जानकार हो गये कि दूसरों को उर्दू सिखाने भी लगे.

सिस्टम से लड़कर बनवाया आइजीआइसी

पीएमसीएच में कुछ दिन काम करने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि यहां उनकी विशेषज्ञता का बेहतर इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. वह हृदय रोग के मरीजों को वह बेहतर सुविधा देना चाहते थे. आज जहां आइजीआइसी है वहां एक खाली पड़ा मकान था, एक दिन उन्होंने रात के समय बिना किसी से पूछे अपने हृदय रोग के कुछ मरीजों को शिफ्ट कर दिया. इसके बाद तो पूरे पीएमसीएच प्रशासन में हड़कंप मच गया, कई ने तो यहां तक कहा कि डॉ साहब ने इस मकान को हड़प लिया. अगले दिन सुबह डायरेक्टर हेल्थ सर्विसेज डॉ कर्नल बीसी नाथ ने उन्हें अपने कार्यालय में बुलाकर कहा कि क्या आप को नौकरी नहीं करनी है आप ने ऐसा क्यों किया. इसके बाद डॉ श्रीनिवास ने जो जवाब दिया उससे वह काफी प्रभावित हुए. उन्होंने तुरंत अस्पताल प्रशासन से उस मकान में मरीजों के लिए तमाम सुविधाएं मुहैया कराने का आदेश दिया. देखते ही देखते यहां जरूरी सुविधाएं बहाल हो गयी. कुछ दिनों बाद डॉ श्रीनिवास को लगा कि इसे हृदय रोग अस्पताल के तौर पर विकसित करना चाहिए. इस सोच के साथ वह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिले. उनसे मिलकर कहा कि देश में हृदय रोगों का कोई अलग से अस्पताल नहीं है. मैं चाहता हूं कि आप के नाम पर देश के इस पहले अस्पताल का नाम हो. इंदिरा ने सहमति दे दी. अब डॉ श्रीनिवास ने कहा कि मैडम क्या आप नहीं चाहेंगी कि जिसका नाम आपके नाम पर हो वह बड़ा अस्पताल बने. इनकी बात सुन इंदिरा ने मुस्कुराते हुए कहा कि बताये कितना पैसा चाहिए इस पर डॉ श्रीनिवास ने कहा कि 10 करोड़ अस्पताल के लिए दिला दे. इंदिरा इसे स्वीकृत कर दिया. इस तरह से उनके प्रयासों से इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान के रूप में देश का पहला हृदय रोग अस्पताल बनकर तैयार हुआ.

दुनिया को दी फोरेंसिक साइंस में इसीजी के इस्तेमाल की तकनीक

हृदय रोगों के विख्यात डॉक्टर होने के बावजूद उनकी अन्य चिकित्सा पद्धतियों में भी दिलचस्पी थी. 1960 में विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों को मिलाकर पोलीपैथी का बिगुल बजाया. वह आधुनिक औषधि विज्ञान और दूसरी चिकित्सा पद्धतियों को मिलाकर चिकित्सा करने को बढ़ावा देना चाहते थे. भारत में सबसे पहले ईसीजी मशीन डॉ श्रीनिवास ही अमेरिका से लेकर आए थे. इस मशीन से जवाहर लाल नेहरू, नेपाल नरेश किंग महेंद्र, डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ कृष्ण सिंह, डॉ जाकिर हुसैन आदि का इलाज किया गया था. डॉ श्रीनिवास ने फोरेंसिक साइंस में ईसीजी के इस्तेमाल पर शोध किया और एक मॉडल बनाया जो आज भी दुनिया भर में फोरेंसिक साइस की पढ़ाई में इस्तमाल होता है. उनकी इस खोज के कारण ही फोरेंसिक साइंस में उंगलियों के निशान के अलावा इसीजी का भी इस्तेमाल होने लगा. स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस इस तरीके का आज भी इस्तेमाल करती है.

विश्व धर्म सम्मेलन में किया देश का प्रतिनिधित्व

धर्म और साहित्य में उनकी गहरी दिलचस्पी थी. 1993 में अमेरिका के शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व डॉ श्रीनिवास ने किया. वहां उन्होंने विश्व धर्म या सनातन धर्म पर अपना व्याख्यान दिया. डॉ श्रीनिवास की स्मृति में भारत सरकार ने 2017 में एक विशेष लिफाफा भी जारी किया है. इस पर उनकी और भारत लायी पहली इसीजी मशीन की तस्वीर है. उस पर लिखा है डॉ श्रीनिवास- भारत के पहले ह्रदय रोग विशेषज्ञ.

उच्च शिक्षा के लिए हार्वर्ड गये-डॉ समदर्शी
डॉ समदर्शी अपने पिता डॉ श्रीनिवास को याद करते हुए बताते हैं कि 1932 में समस्तीपुर के किंग एडवर्ड इंगलिश हाइस्कूल से पढ़ाई के बाद वह पटना साइंस कालेज आ गये. तब के प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल जो आज पीएमसीएच कहलाता है से 1944 में एमबीबीएस किया. 1948 में एला लैमन काबेट फेलोशिप लेकर अमेरिका के हार्वर्ड गये. वहां से डॉक्टर ऑफ मेडिसिन और डॉक्टर ऑफ साइंस की डिग्री ली थी. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के मैसेचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल में आधुनिक हृदय रोग चिकित्सा विज्ञान के जनक डॉ पॉल डडले व्हाइट से कार्डियोलॉजी की विशेषज्ञता की ट्रेनिंग ली.

फादर ऑफ कार्डियोलॉजी कहे जाने वाले डॉ व्हाइट ने ही पुरी दुनिया के चुनिंदा डॉक्टरों को ट्रेनिंग दी थी. उनसे ट्रेनिंग पाने वाले डॉ श्रीनिवास पहले और आखिरी भारतीय थे.

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