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फौजी की मां होना आसान नहीं

‘नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि’ पौराणिक अवधारणा है. गीता ने हमें बताया है कि मौत शरीर की होती है, आत्मा की नहीं. जो जन्म लिया है वह मरेगा भी. दुश्मनों ने जिसकी देह छलनी कर दी थी, चाहे उसे सैनिक कहे, शहीद या जांबाज कहें, तिरंगे में लिपटा वह जवान अपनी मां का मुस्कुराता, ठुनकता लाडला ही […]

‘नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि’ पौराणिक अवधारणा है. गीता ने हमें बताया है कि मौत शरीर की होती है, आत्मा की नहीं. जो जन्म लिया है वह मरेगा भी. दुश्मनों ने जिसकी देह छलनी कर दी थी, चाहे उसे सैनिक कहे, शहीद या जांबाज कहें, तिरंगे में लिपटा वह जवान अपनी मां का मुस्कुराता, ठुनकता लाडला ही था. जो मां पहली बार अपने गर्भ में उसे स्वीकारते हुए फूली नहीं समायी थी, उसे गीता के उपदेश से क्या लेना.
गर्भ से गर्व तक सारी मान्यताओं को दरकिनार करते हुए एक फौजी की मां होना आसान नहीं है. वीर वह नहीं जो मर गया, वह वीरांगना है जो अपने बेटे के ताबूत को चूमने, और हाथों से सहलाने का हौसला रखती है.
सिसकती मां के वो शब्द, जो अपने हर बेटे को देश के लिए समर्पित करने की चाह रखती है, हर हिंदुस्तानी की आंखें डबडबा जाती हैं. एक श्रद्धासुमन मां के उन चरणों में, जिसने अपना ‘खून’ देश की निगहबानी में बेझिझक कुर्बान कर दिये.
एमके मिश्रा, रांची

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