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आंबेडकर ने बदला संसार

तरुण विजय पूर्व सांसद, भाजपा बाबा साहब अांबेडकर का परिनिर्वाण दिवस सुहाने सपनों और संकल्पों की बाढ़ बह गया. सच है, अगर बाबा साहब न होते तो जितने अनुसूचित जाति के लोग शिखर से सतह तक दिख रहे हैं, वे भी न दिखते. तमिलनाडु से आये एक दलित कार्यकर्ता से मैं चर्चा कर रहा था. […]

तरुण विजय

पूर्व सांसद, भाजपा

बाबा साहब अांबेडकर का परिनिर्वाण दिवस सुहाने सपनों और संकल्पों की बाढ़ बह गया. सच है, अगर बाबा साहब न होते तो जितने अनुसूचित जाति के लोग शिखर से सतह तक दिख रहे हैं, वे भी न दिखते. तमिलनाडु से आये एक दलित कार्यकर्ता से मैं चर्चा कर रहा था.

उन्होंने कहा कि गत वर्ष किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार, पश्चिम तमिलनाडु के अधिकतर गांवों में आज भी दलित हिंदुओं को मंदिर जाने से डर लगता है. उनके श्मशान घाट भी अलग हैं- यानी उनके जीने, धर्म का व्यवहार करने से लेकर यमराज तक अलग-अलग हैं. हिंदुओं की कथित बड़ी जाति के यमराज अलग, हिंदुओं की कथित छोटी जातियों के यमराज अलग.

हम बाबा साहब आंबेडकर की महानता के कसीदे काढ़ते हुए उनके संघर्ष तथा पीड़ा का उल्लेख तक करने से कतराते हैं, डरते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि बाबा साहब की वेदना बताने से आज भी ये बड़े-बड़े पाखंडी बड़ी जाति वाले शायद नाराज न हो जायें.

पिछले साल 20 मई को मैं उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र में कुछ दलित भाइयों के साथ मंदिर प्रवेश के लिए गया था. बस, इसी बात पर घमसान हो गया.

वे हमें पत्थरों से मार डालने दौड़ पड़े. हम किसी तरह जान बचाकर भागे. पढ़े-लिखे, कॉलेज जानेवाले छात्र और सरकारी कर्मचारी, जो अपने को बड़ी जाति का कहते थे, मुझ सरीखे आरएसएस कार्यकर्ता पर पत्थर बरसा रहे थे. रास्ते में एक अनपढ़ मजदूर मिला, जो पीडब्ल्यूडी के लिए सड़क पर काम करता था, वह मुझे एक ट्रक में छिपाकर, कंबल ओढ़ाकर, चाय लाया. वह हिंदू नहीं था, मुसलमान था. यह कैसी विडंबना है कि हिंदू समरसता के लिए काम करनेवाले को हिंदू मार रहे थे, पर बचाया मुसलमान ने.

डॉ आंबेडकर ने हिंदुओं के भीतर जाति के पाखंड पर जो करारी चोट की थी, हम उसे याद करने से क्यों गुरेज करते हैं? बाबा साहब कभी धर्म-परिवर्तन नहीं करना चाहते थे. वे केवल हिंदू के नाते समानता चाहते थे. उनके सबसे प्रिय गुरु आंबेडकर मास्टरजी थे. वे ब्राह्मण थे.

उनके प्रति आदर से ही भीमराव ने आंबेडकर जाति सूचक नाम अपनाया. लेकिन पानी, साथ बैठने, कुएं से जल लेने, कक्षा में एक साथ पढ़ने से लेकर शादी-ब्याह तक के लिए तथाकथित बड़ी जाति के हिंदुओं ने जो अत्याचार तथा अन्याय किये, उसने उनका मन खिन्न कर दिया और उन्होंने बौद्ध मत अपनाने का फैसला किया.

फिर भी हिंदुओं को समझ नहीं आयी. बाबा साहब आंबेडकर के बाद अभी तक हिंदुओं में जाति द्वेष और जाति अहंकार दिखता है. उत्तर से दक्षिण तक अनेक क्षेत्र हैं, जहां दलितों को मनुष्य तक नहीं माना जाता. यह तो भला हो अनेक सामाजिक संगठनों- जैसे रामकृष्ण मिशन, गायत्री परिवार, आर्यसमाज, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आदि का, जो जाति के विद्वेष तथा अहम को मानते नहीं. फिर भी आज राजनीति में जाति के पत्थर ही चलते हैं. यह भी कटु यथार्थ है.

साल 2014 का चुनाव मोदी ने विकास के नाम पर जीता. जाति गौण हो गयी. लेकिन, गुजरात में कांग्रेस ने पाटीदार, दलित जैसे मुद्दे उछालकर विकास के स्थान पर विनाश की जाति राजनीति में उछाल दिया. क्या जाति से ऊपर उठना सभी राजनीतिक दलों का साझा उद्देश्य नहीं होना चाहिए? 2017 में भी हम यदि चुनाव के टिकट यादव, ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया के अाधार पर देंगे, मुस्लिम व गैर-मुस्लिम के आधार पर मन और मत बनायेंगे, तो 2050 का भारत कैसा रचेंगे?

आंबेडकर का नाम लेकर राजनीति करना पाखंड है- यह भारत के विरुद्ध पाप है. यदि आंबेडकर को महान मानते हो, तो अपने मन के भीतर जाति के अहंकार और उसकी पहचान के झूठे अभियान को तोड़ना होगा. मैंने देखा है राजनेताओं को, सांसद, विधायक, निगम पार्षदों को अपनी स्थिति और ‘पार्टी में पोजीशन’ का कितना घमंड होता है.

मंच पर जगह न मिले, दूसरी या तीसरी पंक्ति में बिठाया जाये, मंच से उनका नाम न पुकारा जाये, पोस्टर-बैनर में फोटाे न छपे, तो वे जिंदगीभर की दुश्मनी ठान लेते हैं. उनसे पूछिए- सदियों से आप जैसे भद्र, सुसंस्कृत, पढ़े-लिखे, सभ्यता का ज्ञान रखनेवाले विद्वानों ने अपने ही धर्मावलंबी समाज को ‘अछूत’ बनाकर जो अन्याय किया, उसे खत्म करने के लिए राजनीति-रहित ईमानदार प्रयास कब करेंगे?

कथित बड़ी जाति के सभी धन्ना सेठों ने, धन्ना सेठों के बच्चों के लिए महंगे-महंगे स्कूल-कॉलेज खोले. पर, उन्हें तनिक भी शर्म नहीं आयी कि अपने धन से दलित बच्चों के लिए श्रेष्ठ एवं उच्च स्तर के विद्यालय खोलकर अपने मन से, शुद्ध अंत:करण से समता एवं समानता का उदाहरण प्रस्तुत करते.

आज आरक्षण के नाम पर अनेक भावुक तर्क देनेवाले और दलितों को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए, ऐसे वाग् विलाप करनेवाले मिल जायेंगे. यदि बाबा साहब आंबेडकर ने आरक्षण न दिया होता, तो हिंदू उद्योगपति, जो करोड़ों का दान देकर मंदिर बनवाते हैं, क्या अपनी पहल पर दलितों को ज्ञान, विज्ञान, तकनीक व चिकित्सा शास्त्र में आगे बढ़ाते?

बाबा साहब के रास्ते पर चलने के लिए समाज के पत्थर खाने की तैयारी चाहिए. शब्दालंकार एवं वाणी वैभव के पाखंड से मीलों दूर है बाबा साहब का संसार.

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