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प्रेग्नेंसी से पूर्व ही आहार में शामिल करें फॉलिक एसिड

महिलाओं के लिए खान-पान के लिहाज से किशोरावस्था व युवावस्था अहम हैं. इस दौरान सही खान-पान से प्रेग्नेंसी में होनेवाली समस्याओं को कम किया जा सकता है. अपने आहार में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फैट और विटामिन्स के साथ फॉलिक एसिड और कैल्शियम को जरूर शामिल करें. रूपाली कुमारी डाइटीशियन, तलवल्कर्स, पटना हम में से ज्यादातर लोग […]

महिलाओं के लिए खान-पान के लिहाज से किशोरावस्था व युवावस्था अहम हैं. इस दौरान सही खान-पान से प्रेग्नेंसी में होनेवाली समस्याओं को कम किया जा सकता है. अपने आहार में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फैट और विटामिन्स के साथ फॉलिक एसिड और कैल्शियम को जरूर शामिल करें.

रूपाली कुमारी
डाइटीशियन, तलवल्कर्स, पटना
हम में से ज्यादातर लोग इस बात का ख्याल नहीं रखते कि आज आहार में उन्होंने कौन-सी चीज कितनी मात्रा में ली है और हमारे शरीर को उसकी आवश्यकता कितनी है. आहार का असंतुलन यहीं से शुरू हो जाता है. संतुलित आहार न केवल महिलाओं को बल्कि प्रेग्नेंसी के वक्त उनके होनेवाले बच्चों पर भी प्रभाव डालता है. अनहेल्दी फूड कई तरह की परेशानियां ला सकता है. वहीं, संतुलित और पौष्टिक आहार उन्हें कई तरह की परेशानियों से दूर रख सकता है. इसलिए रोजाना एक गिलास दूध या एक कटोरी दही जरूर लें. अंडे और ताजा फल व सब्जियों को अपने आहार में शामिल करें. बाहर के अनहेल्दी फूड्स को वैसे तो हमेशा इग्नोर करना चाहिए, पर जब मामला प्रेग्नेंसी का हो, तब तो बिल्कुल ही बाहर के खाने को ‘न’ कहना चाहिए.

कैल्शियम है जरूरी : मछली, नट्स, सोयाबीन, सभी तरह की दालें तथा दूध और उनसे बनी चीजों जैसे- दही व पनीर आदि में कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं. औसत एक गिलास दूध में 300 एमजी कैल्शियम होता है. शरीर में कैल्शियम के अवशोषण के लिए फॉस्फोरस एवं विटामिन डी की भी जरूरत होती है. कैल्शियम युक्त आहार में फाॅस्फोरस होते हैं. इसलिए इसे अलग से लेने की जरूरत नहीं होती है. हालांकि, हड्डियों की मजबूती के लिए विटामिन-डी जरूरी है. इसकी प्राप्ति प्रतिदिन सुबह की धूप और कुछ आहारों से होती है. 45 वर्ष की उम्र के बाद महिलाओं में मेनोपॉज की स्थिति आती है. इस समय उन्हें प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम और विटामिन-डी की जरूरत होती है. कैल्शियम की कमी से ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए डॉक्टर की सलाह से कैल्शियम व विटामिन-डी की गोलियों का सेवन करना पड़ सकता है.

नियमित व्यायाम : महिलाओं को शरीर में होनेवाले बदलावों के बारे में सचेत रहना चाहिए और वसा युक्त आहार का सेवन अधिक नहीं करना चाहिए. प्रतिदिन आधे घंटे व्यायाम जरूर करें. काम व परिवार के चक्कर में सुबह का नाश्ता न भूलें. इससे आपका मेटाबॉलिज्म ठीक रहेगा. शारीरिक गतिविधि कम होने पर पीठ और जोड़ों के दर्द की शिकायत रहती है.

आयरन व विटामिन-सी जरूरी : भारतीय महिलाओं में अक्सर आयरन की कमी का खतरा होता है. ज्यादातर आयरन खाना पकाते समय नष्ट हो जाते हैं. इसलिए आहार में आंवला, टमाटर, चुकंदर और हरी पत्तेदार सब्जियों को नियमित रूप से शामिल करें. आयरन की अवशोषण के लिए विटामिन-सी जरूरी है. इसलिए विटामिन-सी युक्त फल एवं सब्जियां जैसे- संतरा, नीबू, टमाटर, पपीता आदि लें.

फॉलिक एसिड के कई लाभ : फॉलिक एसिड, आयरन, विटामिन-डी, विटामिन बी-12, कैल्शियम जैसे पोषक तत्व महिलाओं के लिए बहुत जरूरी हैं. फॉलिक एसिड हृदय से जुड़ी बीमारियों एवं अल्जाइमर्स के रिस्क को कम करता है. प्रेग्नेंसी के दौरान फॉलिक एसिड की जरूरत बढ़ जाती है. यह जन्म के समय शिशु में होने वाले न्यूरल ट्यूब से संबंधित समस्याओं से बचाव करता है. दाल, मटर, ब्रोकली, हरी पत्तेदार सब्जियां फॉलिक एसिड के अच्छे स्रोत हैं. गर्भावस्था के दौरान फॉलिक एसिड नियमित रूप से लेने से मां और शिशु दोनों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है. अध्ययनों से पता चलता है कि यदि महिला अपनी जरूरत के अनुसार प्रेग्नेंसी से पहले व प्रेग्नेंसी के दौरान फॉलिक एसिड लेती हैं, तो लगभग 70 फीसदी न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स से बचा जा सकता है.

ओमेगा-3 भी जरूरी : रिसर्च ये भी बताते हैं कि ओमेगा-3 पीरियड्स के समय होनेवाले पेल्विक पेन को कम करता है. यह ब्रेस्ट कैंसर की आशंका को भी कम करता है. ओमेगा-3 पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की आशंका को भी कम करता है. यह शिशु के दिमागी विकास के लिए भी काफी लाभकारी माना जाता है.

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