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धनबाद को याद हैं आपातकाल के वे दिन
धनबाद : ‘भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है. इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है.’ ये शब्द थे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के, जो उन्होंने देश की जनता से 26 जून, 1975 को आकाशवाणी के जरिये कहे. संदेश साफ था देश में आंतरिक आपातकाल लागू हो चुका है. 25 […]
धनबाद : ‘भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है. इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है.’ ये शब्द थे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के, जो उन्होंने देश की जनता से 26 जून, 1975 को आकाशवाणी के जरिये कहे. संदेश साफ था देश में आंतरिक आपातकाल लागू हो चुका है. 25 जून 1975 को आपातकाल के लिए ड्राफ्ट बनाया गया, जिसमें संविधान की धारा 21 (नागरिक के अधिकार) को निलंबित कर दिया गया. आपातकाल की घोषणा के बाद देश की राजनीति के भारी उठा-पटक हुई.
देश भर में सरकार विरोधियों की गिरफ्तारी का दौर शुरू हो गया. धनबाद भी इससे अछूता नहीं था. कांग्रेस विरोधी कई नेता भूमिगत हो गये. कई को गिरफ्तार कर लिया गया. किसी को सरकार के खिलाफ बोलने की इजाजत नहीं थी. अखबारों में सेंसरशिप लागू हो गया. इसके बावजूद जेपी के सिपाहियों ने आंदोलन तेज कर दिया. जगह-जगह सड़कों पर छात्र-छात्राओं ने उतर कर अपना आक्रोश जताया. 21 मार्च 1977 को आपातकाल समाप्त हुआ.
छीन लिये गये थे हमारे मौलिक अधिकार : केबी सहाय
इमरजेंसी ने देशभक्तों कोे काफी आहत किया था. उस दिन रामलीला मैदान दिल्ली में देश के बड़े नेता, विपक्षी नेता सभी जुटे थे. जेपी की सभा चल रही थी. 25 जून की रात बारह बजे इमरजेंसी लग गयी. सुबह के चार बजते-बजते सभी नेता गिरफ्तार कर लिये गये. किसी अखबार में समाचार नहीं छपा. धनबाद में उस समय मुकुटधारी सिंह पाक्षिक अखबार निकालते थे. उसी में इमरजेंसी की खबर छपी. हमारे मौलिक अधिकार छीन लिये गये. 26 जून से इमरजेंसी पूरी तरह लागू थी. न तो सरकार के खिलाफ कोई बात कर सकता था और न ही अखबार में खबर छप सकती थी.
जुलूस प्रदर्शन सब बंद. हमने बीआइटी सिंदरी, माइनिंग हाॅस्टल सिजुआ में इमरजेंसी के विरोध में काला झंडा फहराया. घर-घर काला झंडा फहराया गया. पंद्रह अगस्त 1975 को हम सात साथियों के साथ पुलिस लाइन में झंडा फहरा रहे थे. हमें गिरफ्तार कर लिया गया. धनबाद थाना लाकर खूब पीटा गया था़ तीन माह यहां रखने के बाद भागलपुर विशेष केंद्रीय कारा भेज दिया गया. 23 फरवरी 1976 को पटना हाइकोर्ट से बेल होने के बाद जेल से बाहर आये. कुछ दिनों के बाद फिर हमें गिरफ्तार कर लिया गया.
इंदिरा गांधी के खिलाफ था आक्रोश : आनंद महतो
26 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की. उस समय इंदिरा गांधी की मनमानी के खिलाफ पूरा देश आक्रोश में था. इसी कारण इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था. उस समय छात्र-छात्राएं रोड पर उतर गए थे. विशेषकर बिहार सरकार अक्षम हो गयी थी. तमाम कार्य रुक गया था. उसका असर दिल्ली में भी दिखने लगा था. खासकर हिंदी भाषी राज्य बिहार, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश में इंदिरा विरोधी लहर बहने लगी थी.
आपातकाल के पूर्व ही झारखंड के पुरोधा बिनोद बिहारी महतो को मीसा के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था. मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ रहे कामरेड एके राय को भी आपातकाल के बाद जेल भेज दिया गया था. एसके बक्सी, केएस चटर्जी, शक्ति महतो समेत सैकड़ों लोग जेल जेल गये थे. आज आपातकाल से भी ज्यादा भयावह स्थिति देश में है. पूरे देश के लोग अशांत हैं. लूट, खसोट, बलात्कार, पुलिस की गोली से किसानों की मौत, मजदूरों का शोषण, बलात्कार की घटनाएं बढ़ गयी हैं.
आपातकाल जनता कैसे भूल सकती है : समरेश सिंह
बोकारो के पूर्व विधायक समरेश सिंह जेपी के आंदोलन से प्रभावित थे. जेपी की लड़ाई में बोकारो क्षेत्र का चेहरा बनकर उभरे. श्री सिंह बताते हैं : आपातकाल के दौरान 21 माह जेल में रहना पड़ा था. चास से गिरफ्तार किया गया. आपातकाल जनता पर आफत की तरह आयी थी. तानाशाही का इससे बड़ा उदाहरण कोई नहीं हो सकता.
बताते हैं : जेल जाने के पहले आपातकाल के विरोध में कई तरह का कार्यक्रम किया. टीम बनाकर लोगों को आपातकाल के विरोध में जागरूक किया. आम लोगों के विरोध के कारण ही आपातकाल को खत्म करने के लिए सरकार मजबूर हुई. आपातकाल के आफत को जनता नहीं भूल सकती.
न्यूज लेटर के जरिये देते थे पुलिस जुल्म की जानकारी
आपातकाल के समय पुलिस जुल्म चरम पर था. सरकार की मर्जी के बगैर कोई काम नहीं हो पाता था. जिस दिन आपातकाल की घोषणा हुई, उस दिन मैं राजस्थान में था. 30 जून को मेरी शादी थी. शादी के बाद धनबाद आया. उस वक्त यहां जेपी आंदोलन के सिपाहियों की गिरफ्तारी चल रही थी. मैं भागलपुर चला गया. बहुत दिनों तक वहीं रहा. फिर लौट कर धनबाद आया. यहां साप्ताहिक न्यूज लेटर निकालना शुरू किया. झरिया में महेंद्र भगानिया के घर एक टाइप राइटर था.
उस पर ही न्यूज टाइप कर अखबार की शक्ल में निकालने लगे. इसमें पुलिस जुल्म, गिरफ्तारी आदि की जानकारी रहती थी. न्यूज लेटर चोरी-छिपे बोकारो, गिरिडीह जा कर बांटते थे. अखबारों में सेंसर लगा हुआ था. युगांतर नामक पत्रिका के संपादक मुकुटधारी सिंह ने सरकारी जुल्म का विरोध किया तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. वर्ष 1975 में छात्र संघर्ष समिति के सदस्यों ने पुलिस लाइन में विद्रोह कर सरकारी समारोह में बिहार के तत्कालीन कारा मंत्री रहे राम रतन राम के आने से पहले वहां देश का झंडा फहरा दिया था. सभी गिरफ्तार भी हुए थे. बड़ा ही कठिन समय था..
जेल से रोग लेकर निकले थे आंदोलनकारी : शशिनाथ तिवारी
25 जून 1975 का दिन जेपी मूवमेंट से जुड़े आंदोलनकारियों के लिए काला दिन था. रामलीला मैदान दिल्ली में जेपी की सभा चल रही थी. रात्रि बारह बजे इमरजेंसी लगा दी गयी. देश भर में गिरफ्तारी शुरू हो गयी. इसकी सूचना हमें 26 जून सुबह आठ बजे रेडियो से मिली. हम सभी आंदोलनकारी जहां थे वहां से भागकर भूमिगत हो गये. संघर्ष जारी था. उस समय गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर पुलिस लाइन में परेड होता था. पंद्रह अगस्त को मंत्री जी को झंडा फहराना था.
अभी मंत्री जी सीढ़ी चढ़ ही रहे थे कि अचानक केबी सहाय के नेतृत्व में हमारे साथी तिलेश्वर कौशिक ने लगभग कूदते हुए सीढ़ी पर चढ़कर झंडा फहरा दिया. इंकलाब-जिंदाबाद के नारे लगने लगे. फिर क्या था. उन सभी सात लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. बूट से जमकर पिटाई हुई. उन्हें जेल भेज दिया गया. सितंबर 1975 में मुझे गिरफ्तार कर लिया गया. पंद्रह दिन धनबाद में रखने के बाद भागलपुर केंद्रीय कारा भेज दिया गया. वहां दो महीना रहना पड़ा. पटना हाइकोर्ट से बेल मिलने के बाद रिहा हुआ. इमरजेंसी के 19 महीने में हम आंदोलनकारियों को न चैन से सोना नसीब था न खाना. हर समय गिरफ्तारी का डर बना रहता था.
हमें घोर यातना और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी थी. सभी आंदोलनकारी जेल से कोई न कोई रोग लेकर बाहर आये थे. 1977 में तख्ता पलटा. मोरारजी देसाई प्रधानामंत्री बनें. उन्होंने आंदोेलनकारियों के राजनैतिक केस खत्म करवा दिये. इन बूढ़ी हड्डियों में आज भी देश के लिए वही जज्बा है. हम पुराने साथियों की इच्छा फिर से बलवती होने लगी है कि अपनी युवा पीढ़ी को जेपी मूवमेंट से अवगत करायें. देश प्रेम का जज्बा जगायें.
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