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कोयलांचल : चुनाव में उम्मीदवारी से दूर होती आधी आबादी

संजीव झा पांच बार धनबाद का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं महिलाएं, इस बार सिर्फ एक ही मैदान में धनबाद : कोयलांचल में चुनावी राजनीति से आधी आबादी दूर होती जा रही है. अब तक 15 बार हो चुके लोकसभा चुनाव में से पांच बार यहां की सांसद महिला रह चुकी हैं, लेकिन पिछले तीन चुनावों […]

संजीव झा

पांच बार धनबाद का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं महिलाएं, इस बार सिर्फ एक ही मैदान में

धनबाद : कोयलांचल में चुनावी राजनीति से आधी आबादी दूर होती जा रही है. अब तक 15 बार हो चुके लोकसभा चुनाव में से पांच बार यहां की सांसद महिला रह चुकी हैं, लेकिन पिछले तीन चुनावों से यहां महिला प्रत्याशियों की संख्या लगातार कम होती जा रही है. इस बार तो यहां केवल एक ही महिला प्रत्याशी मैदान में हैं.

क्या है स्थिति : धनबाद लोकसभा क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में कुल 20 लाख 48 हजार 460 मतदाता हैं. इसमें 11,12,919 पुरुष तथा 9,35,234 महिला मतदाता हैं. धनबाद सीट से सबसे पहले वर्ष 1967 राज परिवार की एलआर लक्ष्मी चुनाव जीत कर संसद पहुंचनेवाली पहली महिला बनीं.

इसके 24 वर्ष बाद भाजपा की प्रो रीता वर्मा धनबाद से चुनाव जीतने वाली दूसरी महिला बनीं. श्रीमती वर्मा लगातार चार बार धनबाद सीट से चुनाव जीतने वाली एकमात्र प्रत्याशी हैं. वर्ष 2004 के चुनाव में उनके विजयी अभियान पर ब्रेक लगा. उसके बाद से यहां महिला प्रत्याशियों की संख्या भी कम होती गयी.

2014 में तीन तो 2019 में केवल एक : धनबाद लोकसभा सीट से वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कुल 31 प्रत्याशी मैदान में उतरे थे. इसमें से तीन महिलाएं थीं. यहां से पिछले चुनाव में भाग्य आजमाने वाली महिलाओं में राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष हेमलता एस मोहन शामिल थीं.

आजसू प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़नेवाली श्रीमती मोहन को जनता का बहुत समर्थन नहीं मिला. उनके अलावा 2014 में यहां से सुमन बनर्जी एवं रीतू रानी सिंह बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ी थीं. इस बार के चुनाव में यहां से कुल 20 प्रत्याशी मैदान में हैं. इसमें केवल माधवी सिंह एकमात्र महिला प्रत्याशी हैं. झरिया राजघराने की बहू श्रीमती सिंह को तृणमूल कांग्रेस ने धनबाद से अपना उम्मीदवार बनाया है.

भाजपा, कांग्रेस में पुरुषों का वर्चस्व : धनबाद से आधी आबादी को टिकट देने में भाजपा, कांग्रेस जैसे दल दरियादिली नहीं दिखा रहे. कांग्रेस से तो यहां लगातार पुरुष को ही टिकट दिया जाता रहा है. जबकि भाजपा की तरफ से भी पिछले तीन चुनाव से आधी आबादी को टिकट नहीं मिला है.

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