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वोट करें, देश गढ़ें : लोकतंत्र के महाकुंभ में भागीदार बनें

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर चु नाव किसी भी लोकतंत्र का आधारस्तंभ होता है. विसंगतियों के बावजूद हर आम चुनाव हमारे लोकतंत्र को समृद्ध कर जाता है. यह सही है कि हरेक आम चुनाव राजनीति का एक नया संदेश देकर भी जाता है और पार्टियों के लिए तो आम चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न होते […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
चु नाव किसी भी लोकतंत्र का आधारस्तंभ होता है. विसंगतियों के बावजूद हर आम चुनाव हमारे लोकतंत्र को समृद्ध कर जाता है. यह सही है कि हरेक आम चुनाव राजनीति का एक नया संदेश देकर भी जाता है और पार्टियों के लिए तो आम चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न होते हैं. हर दल पूरी ताकत झोंक कर उसे जीतने की कोशिश करता है.
यही वजह है कि सभी राजनीतिक दल अपने चुनावी अस्त्रागार से किसी अस्त्र को दागने से नहीं चूकते हैं. जो दल जनाकांक्षाओं पर खरे नहीं उतरते हैं, वे सत्ता से बाहर हो जाते हैं, लेकिन यह भी सच है कि अब चुनाव जमीनी मुद्दों पर नहीं लड़े जाते. चुनावों में किसानों की समस्याएं, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा की स्थिति जैसे विषय प्रमुख मुद्दे नहीं बनते. इस बार के चुनाव पर नजर डालें, तो शुरुआत में ही विकास जैसा अहम मुद्दा पीछे छूटता नजर आ रहा है. इन चुनावों में युवाओं को बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए.
साथ ही राजनीतिक दलों को भी टिकट देने में युवाओं को तरजीह देनी चाहिए. भारत आज विश्व में सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है. इतनी युवा आबादी अन्य देश के पास नहीं है. अगर राजनीति समेत जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में युवा आगे नहीं आये, तो हम यह ऐतिहासिक अवसर गंवा देंगे. 1991 की जनगणना के अनुसार देश में लगभग 34 करोड़ युवा थे, जिनके 2016 तक 51 करोड़ हो जाने का अनुमान था.
माना जा रहा है कि 2020 तक भारत दुनिया का सबसे युवा देश हो जायेगा. इसमें कोई शक नहीं कि यह लोकतंत्र का महापर्व है और इस लोकसभा चुनाव पर तो पूरे देश और दुनिया की निगाहें लगी हुईं हैं. आइए, हम सब शपथ लें कि इस अवसर पर अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करेंगे. यह जान लीजिए कि हरेक मत लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करता है.
1952
आजाद भारत का पहला चुनाव. कांग्रेस 364 सीटों के साथ सत्ता में आयी. कुल 53 पार्टियां मैदान में थीं. 31 को एक भी सीट नहीं मिली. 44.87% वोट पड़े. कांग्रेस का वोट शेयर 44.199% था. जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री व सीपीआइ के श्रीपाद अमृत डांगे विपक्ष के नेता बने थे. उनकी पार्टी को 16 सीटें मिली थीं. तीसरे नंबर पर सोशलिस्ट पार्टी थी, जिसे 12 सीटें मिली थीं.
1957
दूसरे चुनाव में 498 में से 490 सीटों पर कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारे. सात सीटोें की बढ़त के साथ 371 सीटें जीतीं. वोट शेयर शेयर बढ़ कर 47.78% हुआ. नेहरू फिर पीएम और सीपीआइ के श्रीपाद अमृत डांगे विपक्ष के नेता बने. डांगे की पार्टी को इस बार 27 सीटें (5.63% की सीट बढ़त) मिली थीं. पहली बार फिरोज गांधी रायबरेली से जीते. सबसे दिलचस्प यह था कि इसमें एक भी महिला उम्मीदवार मैदान में नहीं थी. निर्दलीयों को 41 सीटें (19% वोट) मिलीं.
1962
तीसरे चुनाव में देश में नये मुद्दे उभरे. विकास की नयी अवधारणाएं शामिल हुईं. पंचवर्षीय योजना, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, उद्योग व संचार जैसे मुद्दों पर चुनाव लड़ा गया. कांग्रेस तीसरी बार सत्ता में आयी. नेहरू पीएम बने. हालांकि कांग्रेस को 10 सीटों का नुकसान हुआ. सीपीआइ के श्रीपाद अमृत डांगे तीसरी बार विपक्ष के नेता बने. उनकी पार्टी को दो सीटों की बढ़त के साथ 29 सीटें मिलीं. 21 में से 20 पार्टियां जीतीं. निर्दलीय सांसदों की संख्या 41 से घट कर 20 हो गयी.
1967
चौथा चुनाव 520 सीटों के लिए हुआ. कांग्रेस इंदिरा गांधी के नेतृत्व में चौथी बार सत्ता में आयी. इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव जीतीं व पीएम बनीं, पर आंतरिक संघर्ष में पार्टी को 78 सीटों का नुकसान हुआ. उसे 283 सीटें मिलीं. सीपीआइ को भी 10 सीटों का नुकसान हुआ. उसे 19 सीटें मिलीं. स्वतंत्र पार्टी को 44 सीटें (26 का लाभ) मिलीं और सी राजगोपालाचारी विपक्ष के नेता बने.
1971
पांचवेंें चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा गरीबी हटाओ था. यह नारा इंदिरा गांधी ने दिया. उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस ने 352 सीटों के साथ भारी बहुमत हासिल की. चुनाव 545 सीटों के लिए हुआ. मोरारजी देसाई के गठबंधन को 51 सीटें आयी थीं. वह विपक्ष के नेता बने. इस चुनाव में 29 पार्टियां मैदान में उतरी थीं. पहली बार 24 पार्टियां लोस में नुमाइंदगी करने पहुंचीं, पर इलाहाबाद हाइकोर्ट ने उनके निर्वाचन को अवैध ठहरा दिया था, जिसके बाद इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की.
1977
छठा चुनाव आपातकाल के बाद का था. पहली बार चुनाव पूर्व विपक्षी ध्रुवीकरण के तहत लड़े गये इस चुनाव ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया. नौ दलों के गठबंधन वाली जनता पार्टी को 345 सीटें (51.83% वोट) मिलीं. कांग्रेस गठबंधन को 189 सीटें आयीं. मोरारजी देसाई प्रथम गैरकांग्रेसी पीएम बने. यह सरकार स्थायी साबित नहीं हुई. पांच माह के लिए चौधरी चरण सिंह पीएम बने.
1980
सातवें चुनाव में कांग्रेस 200 सीटों के लाभ के साथ 353 सीटें जीत कर सत्ता में लौटी. इंदिरा गांधी पीएम बनीं. यह चुनाव वक्त से पहले हुआ था. कांग्रेस ने राजनीतिक अस्थिरता के मुद्दे पर चुनाव लड़ा. चरण सिंह के नेतृत्ववाली जनता पार्टी सेक्यूलर को 41 सीटें मिलीं, जबकि चंद्रशेखर की अगुआई वाली जनता पार्टी 264 सीटें खो कर केवल 31 सीटें जीत सकी. इस चुनाव में 36 पार्टियां मैदान में थीं, जिनमें से 12 पहली बार चुनाव लड़ रही थीं.
1984-85
आठवां चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या के बाद लोस भंग किये जाने के कारण समय से पूर्व हुआ. सहानुभूति की लहर में कांग्रेस ने 414 सीटें जीतीं. यह कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था. दूसरी सबसे बड़ी पार्टी तेलुगुदेशम थी, जिसने 30 सीटें जीती थीं. यह भारत के संसदीय इतिहास का दुर्लभ रिकॉर्ड है, जिसमें एक क्षेत्रीय पार्टी मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी थी. एनटी रामाराव विपक्ष के नेता बने थे.
1989
नौवां चुनाव ऐतिहासिक रहा. भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा बना. राजीव मंत्रिमंडल के मंत्री वीपी सिंह ने बोफोर्स को मुद्दा बनाया व 143 सीटें जीत कर 85 सीटों वाली भाजपा के बाहरी समर्थन से एनएफ की सरकार बनायी. आडवाणी की रथयात्रा को रोके जाने पर भाजपा ने सरकार गिरा दी. तब कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर पीएम बने. राजीव गांधी की जासूसी मामले में कांग्रेस ने सरकार गिरा दी.
1991
10वां चुनाव समय पूर्व कराया गया. चुनाव प्रचार के दौरान 21 मई 1991 को तमिलनाडु में राजीव गांधी की हत्या हो गयी. इस चुनाव में सहानुभूति का लाभ मिला आैर 244 सीटें जीत कर वह छोटे दलाें के सहयोग से सत्ता में आयी. सोनिया गांधी के नाम की संभावनाओं के बीच इंदिरा गांधी के करीबी रहे पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने. भाजपा के एलके आडवाणी विपक्ष के नेता बने.
1996
11वें चुनाव के नतीजों ने फिर त्रिशंकु संसद बनायी. दो साल तक राजनीतिक अस्थिरता रही. इस दौरान तीन प्रधानमंत्री बने. भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 13 दिन में गिर गयी. तब जद नेता एचडी देवेगौड़ा गठबंधन सरकार के पीएम बने, पर 18 माह में यह सरकार भी गिर गयी. तब इंद्रकुमार गुजराल ने पीएम की कुर्सी संभाली, मगर यह सरकार भी 28 नवंबर, 1997 को गिर गयी.
1998
12वें चुनाव में भी किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. 413 दिनों बाद अगला चुनाव कराने की नौबत आ गयी. हालांकि भाजपा को 182 सीटें मिलीं. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाले गठबंधन को पीएम पद की शपथ दिलायी गयी, पर 24 पार्टियों और 254 सांसदों वाले राजग में सामंजस्य की कमी और जयललिता की पार्टी अन्नाद्रमुक के पीछे हटने के कारण 13 महीने बाद यह सरकार भी एक वोट से गिर गयी. कांग्रेस के खाते में 141 सीटें गयी थीं.
1999
13वें चुनाव में छह राष्ट्रीय पार्टी सहित 45 दलों ने चुनाव लड़ा, मगर स्पष्ट बहुमत किसी को नहीं मिला. भाजपा को 180 और कांग्रेस को 114 (27 सीटों के नुकसान के साथ) सीटें मिलीं. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी, जिसमें एनडीए के 270 सांसद थे और उसेे टीडीपी के 29 सांसदों का समर्थन था. इस सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. सोनिया गांधी के नेत‍ृत्व वाले यूपीए के खाते में 136 सीटें आयीं. 40 महीने में यह तीसरा चुनाव था.
2004
14वें चुनाव में फील गुड फैक्टर और ‘भारत उदय’ भी भाजपा की मदद नहीं कर सके. सत्ता विरोधी लहर में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनी. कांग्रेस को 145 और भाजपा को 138 सीटें मिलीं. यूपीए को 275 सीटें आयीं. बसपा, सपा, एमडीएमके व वाम मोर्चा का बाहर से समर्थन था. सोनिया गांधी की प्रबल संभावना के बीच डॉ मनमोहन सिंह पीएम बने.
2009
15वें चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए ने सत्ता में वापसी की. मनमोहन सिंह दोबारा पीएम बने. अकेले कांग्रेस को 206 सीटें मिलीं. यूपीए ने 262 सीटें जीतीं और सपा, बसपा, राजद, जेडीएस आदि के कुल 322 सांसदों के बाहर से समर्थन से उसकी सरकार बनी. भाजपा को 116 सीटें मिलीं, जबकि एनडीए के पक्ष में 159 सीटें आयीं. इस चुनाव में थर्ड व फोर्थ फ्रंट को क्रमश: 79 व 27 सीटें मिलीं. सबसे ज्यादा 27 सीटों का नुकसान सीपीएम को हुआ. उसे 16 सीटें मिलीं.
2014
16वां चुनाव ऐतिहासिक रहा. इस चुनाव ने भारतीय राजनीति में भाजपा को केंद्रबिंदु बना दिया और कांग्रेस एक झटके से हाशिये पर चली गयी. वह महज 44 सीटों पर सिमट गयी. राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड सहित कई राज्यों में उसका सफाया हो गया. वहीं, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने अकेले 282 सीटें हासिल कीं. एनडीए को 336 सीटें मिलीं. नरेंद्र मोदी पीएम बने.

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