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पाक से प्रतिद्वंद्विता के प्रभाव

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया aakar.patel@gmail.com मैं स्पष्ट रूप से उन गिने-चुने भारतीय में से हूं, जो पिछले सप्ताह हुई घटनाओं से उत्साहित नहीं हैं. मेरा आशय पाकिस्तान पर हवाई हमले, उसकी प्रतिक्रिया और फिर वायुसेना के पायलट के साथ हुए प्रकरण से है. इसके कई कारण हैं और कुछ कारण ऐसे हैं, […]

आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक,
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
aakar.patel@gmail.com
मैं स्पष्ट रूप से उन गिने-चुने भारतीय में से हूं, जो पिछले सप्ताह हुई घटनाओं से उत्साहित नहीं हैं. मेरा आशय पाकिस्तान पर हवाई हमले, उसकी प्रतिक्रिया और फिर वायुसेना के पायलट के साथ हुए प्रकरण से है. इसके कई कारण हैं और कुछ कारण ऐसे हैं, जिनसे आप असहमत भी हो सकते हैं.
पहला कारण, मैं पाकिस्तान से घृणा नहीं करता. मैं कुछ समय वहां रहा हूं और वहां के कई लोगों को मैं जानता हूं. मैं मानता हूं कि वहां की सरकार ने कुछ भयावह काम किये हैं, लेकिन उसके लिए मैं वहां के लोगों को दोषी नहीं मानता. अगर हम सब मिलकर अपने यहां, विशेषकर कश्मीर में, काम करने में सक्षम हुए होते, तो उनकी सरकार के रवैये का प्रभाव इस तरह नहीं पड़ा होता. यहीं से मेरा दूसरा कारण जुड़ता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कड़े शासन के तहत कश्मीर में मृतकों की संख्या बढ़ी है. यह संख्या 2014 में 189, 2016 में 267, 2017 में 357 और पिछले वर्ष 451 पर पहुंच गयी. यहां मरनेवाले हमारे सैनिकों की संख्या 47 से बढ़कर 91 हो गयी. क्या यह एक अच्छा रिकॉर्ड है और क्या यह भारत के लिए अच्छा है कि बिना किसी विशेष कारण के हम इतने सारे योद्धाओं का बलिदान दें? मेरा उत्तर है- नहीं. और अगर मुझे अपनी सरकार के काम-काज और नीतियों को परखना है, तो इन आंकड़ों और संख्याओं को देखना ही होगा. हम कश्मीर में असफल हो रहे हैं तथा काम-काज की जगह तमाशे और दिखावे का सहारा ले रहे हैं.
तीसरा कारण यह है कि पाकिस्तान पर हमला करने के भारत सरकार के कदम का मुझे कोई फायदा नहीं दिखायी देता है. यह स्पष्ट कर दूं कि मैं प्रधानमंत्री मोदी के तर्क को समझ सकता हूं, लेकिन मेरा मानना है कि वे गलत हैं.
पिछले सप्ताह सैन्य कार्रवाई के पक्ष में जो तर्क दिये गये, वे इस प्रकार हैं, 1- पाकिस्तान हमें हानि पहुंचाता है, इसलिए हमें भी उसे किसी तरीके से हानि पहुंचाना होगा, 2- अगर हम उस पर कड़ी कार्रवाई करते हैं, तो भविष्य में हम पर हमला करने से पहले वह दो बार सोचेगा, 3- यह हमला पाकिस्तान पर उसकी आतंकी संरचनाओं को बंद करने के लिए दबाव डालने में मददगार होगा. मुझे इनमें से किसी भी बिंदु पर कोई विशेष आपत्ति नहीं है. मैं बस इतना मानता हूं कि वे प्रभावी नहीं हैं और मैंने जाना है कि इससे जो नुकसान होता है, उससे अधिक भारतीयों का जीवन खतरे में आ जाता है. इसमें फायदे से ज्यादा नुकसान है.
चौथा कारण, इस तरह की कार्रवाई पहले से मजबूत तर्क को और भी मजबूत करती हैं कि हमें सेना और लड़ाकू विमानों जैसे साजो-सामान पर ज्यादा खर्च करना चाहिए. सुरक्षा पर हमारा कुल खर्च चार लाख करोड़ रुपये सालाना है. यह वह धन है, जो सबसे गरीब देशों में से एक भारत में स्वास्थ्य और शिक्षा के मद पर खर्च होने के बजाय दूसरी जगह इस्तेमाल होता है. जाहिर है, जब सेना पर इतना ज्यादा ध्यान हो, तब राजनीतिक लोगों के लिए इस खर्च का विरोध करना बेहद मुश्किल हो जाता है.
पांचवां कारण यह है कि सरकारें इसका इस्तेमाल ध्यान हटाने के लिए करती हैं. पिछले सप्ताह यह खबर आयी थी कि अर्थव्यवस्था धीमी हो गयी है और वृद्धि दर नीचे आ गयी है. बेरोजगारी सात प्रतिशत से अधिक है, जो चार दशकों में सबसे ज्यादा है. ऐसे मुद्दों पर बहुत कम या बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जाता है, क्योंकि हम अन्य मामलों की ओर देखने के लिए बाध्य होते हैं.
मेरा छठा कारण तो मेरे खुद के पेशे पत्रकारिता से मेरी चिढ़ है. जिस तरीके से उत्साहित होकर हम भारतीयों को युद्ध की ओर धकेला जा रहा है, वह बहुत घिनौना है. पाठक या दर्शक नहीं जान पायेंगे कि समाचार चैनल जो भी कर रहे हैं, वह पैसे से तय होता है. पैसों के लिए जान-बूझकर देश को नुकसान पहुंचाना राजद्रोह है और उनके बारे में यह कहा जाना चाहिए.
मेरा आखिरी और सबसे अहम कारण यह है कि मैं भारत को एक ऐसे देश और संस्कृति के रूप में देखता हूं, जिसे मानव जाति और समूची दुनिया के लिए योगदान देना है.
हमने बीते कुछ वर्षों में मुख्य रूप से एक छोटे दक्षिण-एशियाई देश के प्रतिद्वंद्वी के तौर पर खुद को सीमित कर लिया है. किसी तरीके से पाकिस्तान को सबक सिखा कर ही हम खुश हैं. हमने वास्तव में उसे ठीक नहीं किया है, लेकिन यह एक अलग मसला है.
हमारी आकांक्षा और हमारी दृष्टि बहुत संकुचित हो गयी है. हमारे पास अमेरिका, पश्चिमी यूरोप या चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए कुछ नहीं है. यहां तक कि हम उनके साथ वास्तविक प्रतिस्पर्धा के बारे में भी नहीं सोचते हैं. हमारा महत्वपूर्ण लक्ष्य पाकिस्तान से बेहतर करना है.
ऐसा होना इस महान देश की महत्वाकांक्षा के लिए बहुत छोटा, बहुत गौण और बहुत नकारात्मक है. हम इससे कहीं बड़े देश हैं, और हम जैसा सोचते हैं, उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण और सार्थक तरीके से विश्व में योगदान देने में सक्षम हैं. जिस गहनता के साथ हम, विशेष तौर से हमारी सरकार और हमारी मीडिया, पाकिस्तान पर दृष्टि जमाये रहती हैं, अंतत: इससे हमें ही नुकसान पहुंचता है और हमारी महानता कमतर होती है.

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