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मध्य वर्ग पर भी ध्यान दें पार्टियां

डॉ जयंतीलाल भंडारी अर्थशास्त्री, इंदौर jlbhandari@gmail.com इन दिनों आम चुनाव, 2019 के लिए विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने घोषणा-पत्र तैयार करने में जुट गये हैं. इन घोषणा-पत्रों में विभिन्न वर्गों को लुभाने के लिए चमकीली घोषणाएं शामिल की जायेंगी. ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा-पत्रों में मध्य वर्ग के हितों के लिए भी उपयुक्त […]

डॉ जयंतीलाल भंडारी
अर्थशास्त्री, इंदौर
jlbhandari@gmail.com
इन दिनों आम चुनाव, 2019 के लिए विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने घोषणा-पत्र तैयार करने में जुट गये हैं. इन घोषणा-पत्रों में विभिन्न वर्गों को लुभाने के लिए चमकीली घोषणाएं शामिल की जायेंगी. ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा-पत्रों में मध्य वर्ग के हितों के लिए भी उपयुक्त घोषणाएं अपेक्षित हैं. निश्चित रूप से छलांगें लगा कर बढ़ते हुए भारत के उपभोक्ता बाजार और भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में जिस मध्य वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका है, वह विभिन्न सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है. इन चुनौतियों के निराकरण की संभावनाओं वाली घोषणाओं की मध्य वर्ग को इंतजार है.
चूंकि देश का मध्य वर्ग देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में सबसे प्रभावी भूमिका निभा रहा है. अतएव सरकार के किसी भी नये आर्थिक-सामाजिक सहयोग से उसका उत्साह बढ़ेगा. हाल ही में प्रकाशित विश्व प्रसिद्ध कंसल्टेंसी फर्म बीसीजी की रिपोर्ट, 2019 में कहा गया है कि भारत के उपभोक्ता बाजार को दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाले बाजार की पहचान दिलाने में मध्य वर्ग की प्रभावी भूमिका है.
इसी वर्ग के कारण 2008 में भारत का जो उपभोक्ता बाजार महज 31 लाख करोड़ रुपये का था, 2018 में 110 लाख करोड़ रुपये का हो गया. भारत का उपभोक्ता बाजार 2028 तक तीन गुना बढ़ कर 335 लाख करोड़ रुपये का हो जायेगा. मध्य वर्ग की बढ़ती क्रयशक्ति अर्थव्यवस्था को नयी गति दे रही है. हाल ही में प्रख्यात ग्लोबल कंसल्टेंसी फर्म पीडब्ल्यूसी ने कहा है कि 2019 में भारत ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए क्रय शक्ति के आधार पर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा. निस्संदेह इस समय जब भारत की विकास दर दुनिया में सर्वाधिक 7% से अधिक के स्तर पर है, तो उसमें मध्य वर्ग की अहम भूमिका है.
इसी ताकत के बल पर भारत ने 2008 के ग्लोबल वित्तीय संकट से सबसे पहले निजात पायी. 1991 से शुरू हुए आर्थिक सुधारों के बाद देश में मध्य वर्ग के लोगों की संख्या और खरीदी की क्षमता चमकीली ऊंचाई पर पहुंच गयी है और चारों ओर भारतीय मध्य वर्ग का स्वागत हो रहा है.
देश में मध्य वर्ग के लोगों की संख्या 30 करोड़ से अधिक है. नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च की नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में देश में उच्च मध्यम वर्ग के 17 करोड़ लोग पूरे देश में 46 फीसदी क्रेडिट कार्ड, 49 फीसदी कार, 52 फीसदी एसी तथा 53 फीसदी कंप्यूटर के मालिक हैं.
वैश्विक परिदृश्य के अनुरूप ही भारत में भी मध्य वर्ग की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कहा है कि दुनिया के अधिकांश देशों में मध्यम वर्ग की प्रगति रुक गयी है. उसके जॉब्स कम होने और काम के लिए जरूरी कौशल न होने से आय में असमानता बढ़ी है.
2000 के बाद यूरोपियन यूनियन के दो तिहाई देशों में मध्य वर्ग में शामिल लोगों की संख्या कम होने लगी है. इसी तरह की गिरावट अमेरिका में भी आयी है. खासतौर से 2008 के आर्थिक संकट के बाद विभिन्न देशों में मध्य वर्ग की मुश्किलें तेजी से बढ़ी हैं.
भले मध्य वर्ग के करोडों लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट दिखाई दे रही है, पर इस मुस्कुराहट के पीछे महंगाई, सामाजिक सुरक्षा, बच्चों की शिक्षा, रोजगार, कर्ज पर बढ़ता ब्याज जैसी कई सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां भी छिपी हुई हैं. निजी क्षेत्र की महंगी शिक्षा को बढ़ावा मिला है.
परिणामस्वरूप मध्य वर्ग की स्तरीय शैक्षणिक सुविधाओं संबंधी कठिनाइयां बढ़ती जा रही हैं. मध्य वर्ग दैनिक जीवन में कर संबंधी आर्थिक मुश्किलें भी अनुभव कर रहा है. सामाजिक प्रतिष्ठा और जीवन स्तर के लिए मध्य वर्ग के द्वारा लिए जाने वाले सबसे जरूरी हाउसिंग लोन, ऑटो लोन, कंज्यूमर लोन आदि पर ब्याज दर बढ़ने के परिदृश्य ने उसकी चिंताएं बढ़ा दी हैं. इन सबके अलावा, जो मध्यम वर्ग शताब्दियों से देश के सांस्कृतिक मूल्यों का रक्षक है, अपने परिवार में उपभोक्ता संस्कृति और पश्चिमी संस्कृति के खतरों को नहीं रोक पा रहा है.
इसमें कोई दो मत नहीं है कि विभिन्न दलों के द्वारा तैयार किये जा रहे घोषणा-पत्रों में मध्य वर्ग को लाभान्वित करने वाली ऐसी घोषणाएं जरूरी हैं, जिनके कार्यान्वयन से उसकी आर्थिक-सामाजिक चुनौतियां कम हो सकें, पर ऐसे कई और प्रभावी प्रयासों की जरूरत बनी हुई है.
यह स्पष्ट समझाना होगा कि मध्य वर्ग की मौजूदा शैक्षणिक परेशानियों को कोई विदेशी निवेशक और विदेशी संस्थान सरलता से बदल नहीं सकते. अतएव केंद्र सरकार के द्वारा उच्च शिक्षा व्यवस्था में सुधार के एजेंडे को तत्काल आगे बढ़ाना चाहिए.
बड़े शहरों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को कारगर बनाया जाना चाहिए, ताकि यातायात पर मध्य वर्ग के बढ़ते हुए व्यय में कमी आ सके. गरीबी रेखा के ऊपर (एपीएल) आने वाले निम्न मध्य वर्ग के परिवारों को भी विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाले लाभ जरूर दिये जाने चाहिए.
मध्य वर्ग को लाभान्वित करने के लिए सरकार के द्वारा एक प्रभावी प्रत्यक्ष कर प्रणाली के तहत प्रत्यक्ष कर व्यवस्था को सरल और पारदर्शी बनाना होगा. उद्योग-कारोबार के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को और सरल करना होगा. निश्चित रूप से नयी सरकार के द्वारा मध्य वर्ग की सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के निराकरण से वह देश की आर्थिक-सामाजिक तस्वीर को और चमकीला बनाता हुआ दिखाई देगा.

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