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‘बंगाल में धार्मिक नारा नहीं, प्रतिवाद का प्रतीक है जय श्रीराम’

कोलकाता : राज्यसभा के सांसद व पत्रकार पद्म भूषण डॉ स्वपन दासगुप्ता की गणना देश के प्रभावशाली मीडियाकर्मी, विचारक और वक्ता के रूप में होती है. देश के कई प्रमुख मीडिया घरानों को संपादकीय नेतृत्व देने वाले डॉ दासगुप्ता हिंदुत्ववाद, राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक एकता के प्रमुख पैरोकार माने जाते हैं और आपके स्तंभ देश के […]

कोलकाता : राज्यसभा के सांसद व पत्रकार पद्म भूषण डॉ स्वपन दासगुप्ता की गणना देश के प्रभावशाली मीडियाकर्मी, विचारक और वक्ता के रूप में होती है. देश के कई प्रमुख मीडिया घरानों को संपादकीय नेतृत्व देने वाले डॉ दासगुप्ता हिंदुत्ववाद, राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक एकता के प्रमुख पैरोकार माने जाते हैं और आपके स्तंभ देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं. देश की राष्ट्रीय नीतियों के निर्धारण में डॉ दासगुप्ता भाजपा के थिंक टैंक में से एक हैं.
प्रभात खबर के विशेष संवाददाता अजय विद्यार्थी ने राज्यसभा के सांसद पद्म भूषण डॉ स्वपन दासगुप्ता से देश और राज्य की वर्तमान स्थिति को लेकर बातचीत की, जिससे डॉ दासगुप्ता ने स्वीकार किया कि बंगाल में जय श्रीराम धार्मिक नारा नहीं, वरन ममता बनर्जी की सरकार के खिलाफ प्रतिवाद का प्रतीक है. प्रस्तुत है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश:
सवाल : संसद में जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने की पूरी प्रक्रिया के आप हिस्सा रहे हैं. आप इसे किस रूप में देखते हैं और इसका प्रभाव क्या होगा?
जवाब : तीन तलाक कानून पारित होने के बाद धारा 370, 35 ए तथा लद्दाख के बारे में केंद्र सरकार कोई निर्णय लेगी. यह सभी लोग सोच रहे थे, लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि एक ही साथ तीनों निर्णय लिये जायेंगे. धारा 370 और 35 ए हटा लिये जायेंगे और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जायेगा. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के हिम्मत के कारण ही हो पाया है, लेकिन इसे लेकर जितनी चिंताएं थीं.
वह धरी की धरी रह गयीं और धारा 370 ‘एक पेपर टाइगर’ साबित हुआ. इसे लेकर देश में मिले अपार जन समर्थन के कारण कुछ एक-दो को छोड़ कर किसी ने पूर्ण रूप से इसका विरोध नहीं किया. बीजेडी, टीआरएस, टीडीपी, बीएसपी ने समर्थन किया तो गुलाम नबी आजाद सहित कुछ लोगों ने विरोध किया. तृणमूल कांग्रेस ने भी धारा 370 को हटाये जाने का पूरी तरह से विरोध नहीं किया. तृणमूल कांग्रेस ने केवल संसदीय तरीके से विरोध किया था.
तृणमूल कांग्रेस ने इस बाबत ह्वीप भी जारी की थी, लेकिन धारा 370 हटाये जाने के बाद एक ओर जम्मू-कश्मीर की दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियां पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस का अस्तित्व संकट में आ गया है. इससे वहां नयी लीडरशिप तैयार करना प्रमुख चुनौती होगी. यह समझना होगा कि पूरे देश में 543 लोकसभा की सीटें हैं. उनमें जम्मू कश्मीर में कुल छह सीटें हैं. इनमें तीन सीटों पर भाजपा का कब्जा है. कश्मीर में केवल तीन लोकसभा सीटें हैं. यह समस्या मात्र वही तीन सीटों की है.
सवाल : जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाया जाना डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी का सपना सच होने जैसा है. इसका बंगाल की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
जवाब : वामपंथी पार्टियों के शासनकाल में और फिर बाद में तृणमूल कांग्रेस के शासनकाल पश्चिम बंगाल को राष्ट्रीय राजनीति के परिपेक्ष्य में इस तरह से पेश किया जा रहा था और जा रहा है कि केंद्र सरकार बंगाल सरकार की हितों की अवहेलना कर रही है. बंगाल के साथ पक्षपात हो रहा है. बंगाल को पूरे देश से अलग है. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी वर्ष 1953 में दक्षिण कोलकाता से पहले सांसद निर्वाचित हुए थे. उन्होंने एक विधान, एक संविधान और एक प्रधान का नारा दिया था. उनका सपना पूरा हुआ है. यह बंगाल के लिए गौरवपूर्ण क्षण है. इसने बंगाल को एक पहचान दी कि बंगाल पूरे देश से अलग नहीं है और बंगाल का कश्मीर के साथ-साथ देश के अन्य हिस्सों से भी जुड़ाव है. क्षेत्रीयता को बढ़ावा देने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने जय बांग्ला का नारा दिया है, इसके खिलाफ जय श्रीराम का नारा दिया गया है.
सवाल : नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने कहा है कि जय श्रीराम बंगाल की संस्कृति नहीं है ?
जवाब : हां, मैं जय श्रीराम पारंपरिक रूप से बंगाल में नहीं बोला जाता रहा है, जिस तरह से हिंदी प्रदेशों में बोला जाता रहा है, लेकिन यह समझना होगा कि बंगाल में जय श्रीराम किस परिपेक्ष्य बोला जा रहा है. बंगाल में जय श्रीराम का नारा धार्मिक नारा नहीं हैं, वरन एक प्रतिवाद का स्लोगन है. यह स्लोगन प्रतिवाद का प्रतीक है, लेकिन यह भी सच है कि अब बंगालियों ने यह स्वीकार करना शुरू कर दिया है कि उनकी एक पहचान है और वह हिंदू बंगाली की पहचान है और यहां रामधेनु नहीं बोला जाना, दुर्गोत्सव को शारदोत्सव का नाम देना जैसी छोटी-छोटी बातों से इनको बढ़ावा मिला है. अब बंगाल के लोग यह स्वीकार कर रहे हैं कि बंगाल की संस्कृति हिंदू संस्कृति से जुड़ी है. ममता बनर्जी की हिंदू विरोधी बातों ने ही हिंदू बंगालियों को एकजुट किया है.
सवाल : चुनाव में घुसपैठ एक बड़ा मुद्दा बना था. अब इसे आप किस रूप में देखते हैं?
जवाब : विभाजन के समय पूर्वी बंगाल में 30 फीसदी हिंदू थे, लेकिन धार्मिक कारणों से उसका एक बड़ा हिस्सा पश्चिम बंगाल आने के लिए बाध्य हुआ, क्योंकि जब उन्हें वहां उत्पीड़ित किया गया, तो उनके लिए ‘भारत अपना ही घर था’, लेकिन इसके साथ ही मुस्लिम भी बड़ी संख्या में आयें, लेकिन वे आर्थिक कारणों से आयें, क्योंकि वहां की तुलना में भारत में ज्यादा सुविधाएं थी. इसके कारण कई सीमावर्ती जिलों में जनसं‍ख्या का अनुपात ही बदल गया है.
इसे लेकर केंद्र सरकार नागरिकता विधेयक लाने पर विचार कर रही है. संसद में पेश भी किया गया था. हालांकि असम में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद पहले एनआरसी हुआ, लेकिन, लेकिन ऐसी सोच है कि पहले नागरिकता विधेयक लाकर 2014 के पहले भारत में आने वाले हिंदुओं को नागरिकता दी जाये. उसके बाद ही एनआरसी लागू हो.
सवाल : तीन तालाक, धारा 370 के बाद अब सरकार का एजेंडा क्या है?
जवाब : केवल तीन तालाक कानून लाने से मुस्लिम महिलाओं की स्थिति में सुधार पूरी तरह संभव नहीं है. मुस्लिम पर्सनल लॉ आदि कानून में संशोधन की जरूरत है, ताकि देश के प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार एवं समान सुविधाएं मिले, हालांकि यूनीफार्म कोड की बात अभी दूर है, लेकिन संभव है कि धार्मिक कानून में समानता लाने के लिए केंद्र सरकार कोई कदम उठाये.
सवाल : भाजपा की चिंतन बैठक में अन्य पार्टियों से भाजपा में शामिल होने के एजेंडा पर मुहर लगा दी है. इस बारे में आपका क्या विचार है?
जवाब : यदि आपको अपनी शक्ति बढ़ानी है, तो अन्य पार्टियों से लोगों को लेना ही होगा, लेकिन इसके साथ ही यह जरूरी है कि एक फिल्ट्रीकरण की भी प्रक्रिया हो, जिसमें यह तय किया जाये कि किसे शामिल करना है और किसे शामिल नहीं करना है.

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