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बांकुरा की जंग : कहीं माकपा और भाजपा की लड़ाई में टीएमसी न मार ले बाजी

बांकुरा: एक वक्त में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का गढ़ रहे बांकुरा में इस बार भाजपा की तेज हो रही लहर और वामपंथ का कमजोर पड़ रहा किला पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के दुर्जेय संगठनात्मक कौशल की परीक्षा लेता नजर आ रहा है. राजनीतिक विश्लेषक सोमनाथ बरात के मुताबिक राज्य के कई हिस्सों […]

बांकुरा: एक वक्त में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का गढ़ रहे बांकुरा में इस बार भाजपा की तेज हो रही लहर और वामपंथ का कमजोर पड़ रहा किला पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के दुर्जेय संगठनात्मक कौशल की परीक्षा लेता नजर आ रहा है.

राजनीतिक विश्लेषक सोमनाथ बरात के मुताबिक राज्य के कई हिस्सों में वामपंथियों की ताकत कमजोर पड़ गयी है लेकिन बांकुरा में अब भी उसका जनाधार अच्छा है. उन्होंने कहा कि माकपा एवं भाजपा यहां एक-दूसरे का खेल बिगाड़ सकते हैं और विपक्ष के मतों को विभाजित कर सकते हैं जो टीएमसी के लिए बड़ी राहत की बात होगी. बरात स्थानीय पत्रिका के संपादक भी हैं.

माकपा एवं भाजपा दोनों ही उस तथ्य को भुना रहे हैं कि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रत्याशी सुब्रत मुखर्जी कोलकाता से हैं और दोनो दल दावा कर रहे हैं कि अगर वह चुनाव जीतते हैं तो वह यहां बहुत कम ही नजर आएंगे. तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने अपने मंत्रिमंडल के मंत्री मुखर्जी को अभिनेत्री से नेता बनीं मुनमुन सेन की जगह उतारा है. सेन ने 2014 में टीएमसी की लहर का लाभ लेते हुए नौ बार के सांसद रहे माकपा के बासुदेव आचार्य को हराया था.

बाहरी के टैग के बारे में पूछे जाने पर मुखर्जी ने कहा, “जिस तरह गुजरात के नरेंद्र मोदी वाराणसी को विकसित कर रहे हैं, मैं भी उसी तरह से बांकुरा का ख्याल रखूंगा.” उन्होंने कहा कि वह जिले से अनभिज्ञ नहीं हैं और पंचायत विभाग जिसके वह मंत्री हैं उसकी 13 परियोजनाएं फिलहाल यहां चल रही हैं. मुखर्जी 2009 में टीएमसी प्रत्याशी के तौर पर बासुदेब आचार्य से हार गये थे लेकिन 2004 के चुनावों में जिस अंतर से आचार्य जीते थे उसको कम करने में सफल रहे थे. आचार्य को 2004 में कुल डाले गये मतों का 60 प्रतिशत हासिल हुआ था लेकिन 2009 में यह नीचे खिसक कर 47.66 प्रतिशत पर आ गया था.

टीएमसी ने 2016 के विधानसभा चुनावों में बांकुरा लोकसभा क्षेत्र की सात में से पांच सीटों पर जीत हासिल की थी और रेवोल्युशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) एवं कांग्रेस ने एक-एक सीट जीती थी. भाजपा सभी सीटों पर बड़े अंतर के साथ तीसरे स्थान पर रही थी. भाजपा प्रत्याशी सुभाष सरकार ने भले ही इस बार यह सीट टीएमसी से छीनने का भरोसा जताया है लेकिन मुखर्जी ने भाजपा को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी स्वीकार करने से इनकार किया है.

उन्होंने कहा कि कैसे एक पार्टी जिसे पिछले राज्य चुनावों में मामूली वोट मिले थे उसे टीएमसी का मुख्य प्रतिद्वंद्वी माना जा सकता है. साथ ही वह अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी माकपा को भाजपा के मुकाबले ज्यादा बड़ी चुनौती मानते हैं. वहीं माकपा प्रत्याशी अमीय पात्रा ने माना कि पिछले साल के पंचायत चुनाव में भाजपा का वोट शेयर बढ़ा था लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इसका यह मतलब नहीं कि वह लोकसभा चुनाव में कुछ लाभ ले पाएगी.

बांकुरा में 16,44, 523 मतदाता हैं. यहां लोकसभा के छठे चरण यानि 12 मई को चुनाव होने हैं.

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