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कालेधन पर अंकुश के लिये सट्टेबाजी, ट्रस्टों को मिलने वाले दान पर होनी चाहिए नजर : SIT

नयी दिल्ली : विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने कालेधन की समस्या पर अंकुश के लिये क्रिकेट में सट्टेबाजी पर रोक के लिये कडे नियम और शेयर बाजार में पी-नोट के जरिये होने वाले निवेश को मजबूत नियमन के दायरे में लाने के साथ साथ शैक्षणिक और धार्मिक संस्थानों को मिलने वाले दान को कर दायरे […]

नयी दिल्ली : विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने कालेधन की समस्या पर अंकुश के लिये क्रिकेट में सट्टेबाजी पर रोक के लिये कडे नियम और शेयर बाजार में पी-नोट के जरिये होने वाले निवेश को मजबूत नियमन के दायरे में लाने के साथ साथ शैक्षणिक और धार्मिक संस्थानों को मिलने वाले दान को कर दायरे में लाने की वकालत की है.

उच्चतम न्यायालय द्वारा कालेधन की समस्या पर रिपोर्ट तैयार करने के लिये गठित एसआईटी ने यह भी कहा है कि सेबी को पी-नोटधारकों के संबंध में लाभान्वित स्वामित्व का ब्यौरा और उसके लिये नियमन भी तैयार करना चाहिये. बाजार में शेयर मूल्यों में अचानक आने वाली तेजी की निगरानी की भी व्यवस्था होनी चाहिये.

एसआईटी ने सट्टेबाजी के साथ साथ स्कूलों, कालेजों और धार्मिक संस्थानों को दिये जाने वाले दान में बडे पैमाने पर कालेधन के इस्तेमाल और इसके सृजन पर गहरी चिंता जताई है. एसआईटी ने अपनी तीसरी रिपोर्ट में क्रिकेट में होने वाले सट्टेबाजी, विशेषतौर पर इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में होने वाले सट्टेबाजी में भारी मात्रा में अवैध धन के इस्तेमाल का उल्लेख करते हुए इससे निपटने के लिये प्रभावी कानूनी कदम उठाने की सिफारिश की है.
न्यायमूति (सेवानिवृत) एम.बी. शाह की अध्यक्षता में गठित एसआईटी ने रिपोर्ट में कहा है, …. यह स्पष्ट है कि क्रिकेट में सट्टेबाजी की गैर-कानूनी गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिये कोई ने कोई प्रावधान होना चाहिये जिससे कि सभी लोग डरें. कालेधन का शेयर बाजार में दरपयोग के मुद्दे पर समिति ने कहा है कि सेबी को शेयर मूल्यों में अचानक तेजी आने जैसी गतिविधियों पर नजर रखने के लिये एक प्रभावी प्रणाली बनानी चाहिये और जरुरी कारवाई के लिये इसकी सूचना सीबीडीटी और वित्तीय खुफिया इकाई (एफआईयू) जैसी दूसरी एजेंसियों को भी दे दीन चाहिये.
पूंजी बाजार नियामक सेबी ने हाल ही में कई कंपनियों और व्यक्तियों को प्रतिभूति बाजार में कारोबार करने से रोक दिया है. इन कंपनियों पर शेयर बाजार का दुरपयोग करते हुये कर अपवंचना और कालेधन के इस्तेमाल का संदेह है. एसआईटी ने यह भी कहा है कि बाजार नियामक को पी-नोट के लाभप्राप्तकर्ता मालिकों का भी पता लगाना चाहिये. भारतीय प्रतिभूतियों के आधार पर विदेशी में जारी पी-नोट के जरिये धनी विदेशी निवेशक भारत में निवेश करते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि केमैन आईलैंड से पी-नोट के जरिये करीब 85,000 करोड रपये आए जबकि उस आईलैंड की कुल जनसंख्या 2010 में मात्र 54,000 थी. ….. इससे यह नहीं लगता है कि वहां से विदेश (भारत) में किए गए इस निवेश के अंतिम लाभान्वित व्यक्ति केमैन आईलैंड्स के ही होंगे. शिक्षा क्षेत्र में कालेधन सृजन और परमार्थ संस्थानों एवं ट्रस्टों को दिये जाने वाले मोटे अनुदान के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को इनका शीघ्रता से आकलन करना चाहिये और यदि जरुरी हो तो दंडात्मक कारवाई करनी चाहिये.
एसआईटी ने मुखौटा कंपनियों पर भी कारवाई करने का सुझाव दिया है. इन कंपनियों को कर चोरी के लिये बनाया जाता है और इससे कालाधन पैदा होता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्पोरेट कार्य मंत्रालय के तहत आने वाले गंभीर धोखाधडी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) को मुखौटा कंपनियों का पता लगाने के लिये नियमित तौर पर एमसीए 21 डेटाबेस को खंगालते रहना चाहिये और उसकी सूचना प्रवर्तन एजेंसियों को देनी चाहिये.
सौदा आधारित मनी-लांड्रिंग के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है, गलत जानकारी देने और जाली दस्तावेज जैसी गतिविधियों में लिप्त कंपनियों और लोगों के खिलाफ संबंधित कानून के तहत कडी कारवाई की जानी चाहिये. नकद धन के बारे में अपनी दूसरी रिपोर्ट का जिक्र करते हुये एसआईटी ने कहा है कि नकद राशि रखने की सीमा तय करने के सुझाव पर अमल किया जाना चाहिये ताकि कालेधन को नियंत्रित किया जा सके. समिति के अनुसार, यदि नकद राशि रखने पर रोक लगाई जाये और इसे नियमन के दायरे में लाया जाये तो काफी हद तक इससे देश के भीतर कालेधन के प्रवाह को नियंत्रित किया जा सकता है और विदेशों में भी कालाधन रखने को हतोत्साहित किया जा सकता है.
शिक्षण संस्थानों, धार्मिक ट्रस्टों और न्यासों को अनुदान के जरिये कालेधन के सृजन के मुद्दे पर इसमें कहा गया है, इनमें जो व्यक्ति अनुदान स्वीकार करता है और जो दान देता है उन्हें भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दंडित किये जाने की आवश्यकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है, इसके लिये कानून में बदलाव की जरुरत है, और यह जरुरी भी है क्योंकि आजकल शिक्षण संस्थानों में अनुदान जोरशोर से दिया जाता है. कई बार तो यह राशि एक करोड रपये और इससे भी अधिक होती है. कानून में बदलाव से कालेधन के सृजन और प्रवाह को रोकने में काफी मदद मिलेगी.
राजस्व विभाग से पूछे सवाल के जवाब पर एसआईटी ने कहा : कोई भी धर्मार्थ संस्थानों को अनुदान पर एतराज नहीं कर सकता है लेकिन इसके साथ ही जब बडी राशि दान में दी जाती है तो यह खाते में दर्ज राशि होनी चाहिये और चेक के जरिये धर्मार्थ संस्थान के खाते में इसका भुगतान होना चाहिये. यहां तक कि यदि आभूषण उपहार स्वरुप दिये जाने पर भी दानदाता का नाम और पैन नंबर दर्ज होना चाहिये.
एसआईटी ने केंद्रीय केवाईसी रजिस्टरी को जल्द से जल्द अधिसूचित करने पर भी जोर दिया है. समूह ने विशेष आर्थिक क्षेत्रों के मामले में सीमा शुल्क कानून का उल्लंघन अथवा मूल्य कम करके आंकने जैसे मामले में राजस्व आसूचना निदेशक को जांच का अधिकार दिये जाने पर भी जोर दिया.

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