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छत्तीसगढ़: मॉब लिंचिंग के शिकार लोगों को सरकार देगी मुआवज़ा

<figure> <img alt="सांकेतिक तस्वीर" src="https://c.files.bbci.co.uk/148A3/production/_107513148_c426e41f-8979-4928-9d4d-147cd698a54c.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP</footer> </figure><p>छत्तीसगढ़ में उन्मादी हिंसा के शिकार लोगों को राज्य सरकार मुआवज़ा देगी. उम्मीद जताई जा रही है कि मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं में घायल होने या मारे जाने की स्थिति में लोगों को इससे बड़ी राहत मिलेगी. </p><p>इसके लिये सरकार ने 2011 के पीड़ित क्षतिपूर्ति क़ानून […]

<figure> <img alt="सांकेतिक तस्वीर" src="https://c.files.bbci.co.uk/148A3/production/_107513148_c426e41f-8979-4928-9d4d-147cd698a54c.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP</footer> </figure><p>छत्तीसगढ़ में उन्मादी हिंसा के शिकार लोगों को राज्य सरकार मुआवज़ा देगी. उम्मीद जताई जा रही है कि मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं में घायल होने या मारे जाने की स्थिति में लोगों को इससे बड़ी राहत मिलेगी. </p><p>इसके लिये सरकार ने 2011 के पीड़ित क्षतिपूर्ति क़ानून में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं. </p><p>पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने उन्मादी भीड़ की हिंसा रोकने के लिए राज्यों को क़ानूनी कार्रवाइयों के अलावा मुआवज़ा संबंधी नीति बनाने का निर्देश जारी किया था.</p><p>राज्य के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहु ने बीबीसी से कहा, &quot;आम तौर पर जिसका कोई दोष नहीं होता, ऐसे लोग उन्मादी भीड़ की हिंसा के शिकार हो जाते हैं. जिसके बाद उनका परिवार बदहाल हो जाता है. ऐसे लोगों को हमारी सरकार ने राहत देने की कोशिश की है.&quot;</p><p>उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने एक संवेदनशील शुरूआत की है. आने वाले दिनों में इस क़ानून से जुड़े दूसरे सभी पहलू पर समय-समय पर विचार किया जाएगा.</p><p>साहु ने कहा, &quot;अगर ज़रूरी हुआ तो राज्य सरकार उन पुराने मामलों की भी समीक्षा करेगी, जिसमें लोग उन्मादी हिंसा के शिकार हुए हैं. हमारी साफ़ राय है कि एक सभ्य समाज में इस तरह की हिंसा के लिए कोई भी जगह नहीं होनी चाहिए.&quot;</p><p>इस नये क़ानून में मॉब लिंचिंग में जान गंवाने वालों को राज्य सरकार तीन लाख रुपये तक का मुआवज़ा देगी. अगर हिंसा से पीड़ित व्यक्ति नाबालिग़ है तो 50 फ़ीसदी अतिरिक्त मुआवज़ा राशि का प्रावधान किया गया है.</p><p>गृह विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि बिहार, झारखंड और मणिपुर जैसे राज्यों में भी इस तरह के मामलों में नये क़ानून लागू किए गए हैं लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने चोट के अनुसार मुआवज़ा की राशि तय की है. </p><p>इसके अलावा पीड़ित के पुनर्वास का भी प्रावधान छत्तीसगढ़ में किया गया है. इस तरह की हिंसा में घायल व्यक्ति का राज्य सरकार अपने ख़र्च पर अस्पताल में इलाज करवाएगी. राज्य के कई हिस्सों से बच्चा चोरी और गौ-तस्करी के नाम पर भीड़ द्वारा हिंसा की कई घटनायें सामने आती रही हैं. </p><p>पिछले साल जून में सरगुजा के ज़िला मुख्यालय से लगे मेंड्राकला गांव में बच्चा चोर के शक में ग्रामीणों ने एक विक्षिप्त व्यक्ति को पीट-पीटकर मार डाला था.</p><p>उसी इलाके में लखनपुर के अंधला और दरिमा के बेलखरिखा में भी बच्चा चोर के शक में दो लोगों को भीड़ ने पीट-पीट कर अधमरा कर दिया था.</p><p><strong>ये भी पढ़ें- </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-41204624?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’रेप, लिंचिंग…शुक्र है हमारे पास सुप्रीम कोर्ट है'</a></p><p>इसी तरह पिछले महीने 6 मई को जांजगीर चांपा ज़िले के तालदेवरी गांव में एक सड़क दुर्घटना के बाद भीड़ ने प्रकाश भारती नामक ड्राइवर को कई घंटों तक पीट-पीट कर मार डाला था.</p><p>इस घटना के बाद कई लोगों को गिरफ़्तार किया गया था.</p><p>भीड़ के हमले में मारे गए प्रकाश भारती के छोटे भाई विकास का कहना है कि राज्य सरकार इस तरह के मामलों में मुआवज़ा दे रही है, इसका स्वागत किया जाना चाहिए. लेकिन विकास का कहना है कि इस तरह क़ानून को हाथ में लेने की प्रवृत्ति पर रोक लगाए जाना कहीं अधिक ज़रूरी है.</p><p>जिस समय भीड़ ने प्रकाश भारती को पीट-पीट कर मार डाला, उन्हीं दिनों प्रकाश की शादी की बात चल रही थी. चार भाइयों में सबसे बड़े प्रकाश भारती की मौत के बाद सारी ख़ुशियों पर पानी फिर गया.</p><p><strong>ये भी पढ़ें- </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48736930?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">झारखंड में ‘मॉब लिंचिंग’ के बाद मुस्लिम युवक की मौत</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48004804?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">ग्राहम स्टेंसः भारत में ‘मॉब लिंचिंग’ का पहला बड़ा मामला</a></p><p>विकास कहते हैं, &quot;भाई किराए की गाड़ी चलाता था. परिवार को उसका बहुत सहारा था. पिता जी रोजी-मज़दूरी करते हैं. मैं भी अब गाड़ी चलाता हूं. लेकिन भाई नहीं रहा तो अब दूसरी चीज़ों का क्या मोल!&quot;</p><h1>सुप्रीम कोर्ट का निर्देश</h1><p>देश में पिछले दो सालों में मॉब लिंचिंग की कई घटनायें सामने आई हैं. नौ राज्यों में अब तक 40 से अधिक लोगों को उन्मादी भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला है.</p><p>पिछले साल 17 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की हिंसा को लेकर अपने एक फ़ैसले में कहा था कि भीड़तंत्र को मंज़ूरी नहीं दी जा सकती. सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा से निपटने और दोषियों को सज़ा देने के लिए नये प्रावधान बनाने पर विचार करने के लिए कहा था. </p><p>इसके अलावा कोर्ट ने भीड़ की हिंसा से पीड़ितों के लिए मुआवज़ा संबंधी नियम बनाने के लिये कहा था.</p><p>इस फ़ैसले के बाद इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को दिशा निर्देश जारी किए थे.</p><p>केंद्र ने हर ज़िले में इस तरह के मामलों पर नज़र रखने के लिये पुलिस अधीक्षक स्तर के एक अधिकारी की नियुक्ति के निर्देश दिए थे.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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