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बुंदेलखंड: पानी की तलाश में घर और गांव छोड़ने को मजबूर लोग

<figure> <img alt="बुंदेलखंड जल संकट" src="https://c.files.bbci.co.uk/EB4F/production/_107393206_0d7b7ccf-8595-4558-aa37-87237d16400d.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Jitendra Tripathi/BBC</footer> </figure><p>भीषण धूप और गर्मी में तपकर पत्थर जैसे बन चुके खेत, इन्हीं खेतों में चारा और पानी की आस में दूर-दूर तक भटकते मवेशी, सिर पर घड़े रखकर पानी की तलाश में निकली महिलाएं, सूखे हुए जलस्रोत और तमाम घरों पर लटके हुए ताले […]

<figure> <img alt="बुंदेलखंड जल संकट" src="https://c.files.bbci.co.uk/EB4F/production/_107393206_0d7b7ccf-8595-4558-aa37-87237d16400d.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Jitendra Tripathi/BBC</footer> </figure><p>भीषण धूप और गर्मी में तपकर पत्थर जैसे बन चुके खेत, इन्हीं खेतों में चारा और पानी की आस में दूर-दूर तक भटकते मवेशी, सिर पर घड़े रखकर पानी की तलाश में निकली महिलाएं, सूखे हुए जलस्रोत और तमाम घरों पर लटके हुए ताले सूखे बुंदेलखंड की कहानी और यहां के लोगों की जिजीविषा को बताने के लिए काफ़ी हैं. लंबे समय से लगातार सूखे का सामना करते-करते पूरे बुंदेलखंड की जैसे यही पहचान ही हो गई हो.</p><p>महोबा ज़िले में सदर तहसील के डढ़हत गांव में दोपहर के वक़्त एक बरगद के पेड़े के नीचे बैठे कुछ गांव वाले आराम कर रहे थे या फिर ताश खेल रहे थे. बगल में ही एक बड़ा कुंआ था जो अब भले ही सूख चुका हो लेकिन अपनी ऐतिहासिकता और ज़रूरत को ख़ुद बयां कर रहा था. गांव के भीतर जाने पर ऐसा लगा जैसे सारे गांव वाले सिर्फ़ इसी बरगद के पेड़ के नीचे ही सिमट गए हों क्योंकि गांव में जो भी दरवाज़े दिख रहे थे उनमें से ज़्यादातर पर ताले लगे हुए थे.</p><figure> <img alt="बुंदेलखंड जल संकट" src="https://c.files.bbci.co.uk/177EF/production/_107393269_2cc14faa-cc19-4765-b81a-7113faa1ba91.jpg" height="808" width="1458" /> <footer>Jitendra Tripathi/BBC</footer> </figure><p>गांव के कुछ मकान पक्के भी थे लेकिन ज़्यादातर मिट्टी के बने हुए और बेहद साफ़ सुथरे थे. पुराने और खंडहर हो चुके मकानों पर तो लटके ताले समझे जा सकते थे लेकिन बेहद सलीके से संवारे गए मकानों पर लटके ताले हैरान करने वाले थे. आमतौर पर गांवों में ऐसा नहीं होता कि घर में कोई हो ही नहीं और ताले लटक रहे हों, एकाध अपवाद को छोड़कर. लेकिन यहां ये स्थिति आम थी. </p><p>गांव के ही एक बुज़ुर्ग ईश्वर दास इसकी वजह बताने लगे, &quot;भैया, पानी बिना सब सून है. गांव में कोई तालाब बचा नहीं, कुंए सूख चुके हैं, बिना पानी के खेती-बाड़ी कुछ होती नहीं, तो लोग गांव में रहकर करें क्या ? कुछ लोग तो आस-पास के इलाक़ों में काम करने गए हैं लेकिन बहुत से लोग तो गांव छोड़कर ही चले गए हैं. तिथि-त्योहार पर आ जाते हैं अपना गांव-घर देखने. कुछ लोग तो शाम को आ जाते हैं लेकिन कई लोग गांव छोड़कर चले भी गए हैं.&quot;</p><p>लगभग पूरा गांव घूमने के बाद यही स्थिति हर तरफ़ देखने को मिली. पानी के संकट से जूझते लोग तो थे ही, जिन्हें ज़रा भी उम्मीद दिखी वो गांव छोड़कर चले गए. गांव वालों ने बताया कि कुछ लोग तो रोज़गार की तलाश में गए हैं लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो महोबा, हमीरपुर इत्यादि जगहों पर चले गए हैं जहां उन्हें पानी के लिए इतना संघर्ष नहीं करना पड़ता. ये वो लोग हैं जो या तो नौकरी करते हैं या फिर जिनके पास खेती के अलावा आजीविका के दूसरे साधन भी हैं. ये अलग बात है कि ऐसे लोगों की संख्या बेहद कम है.</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48568818?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">ग़रीबों की पहुंच से दूर होता जा रहा है पानी</a></p><figure> <img alt="बुंदेलखंड जल संकट" src="https://c.files.bbci.co.uk/13587/production/_107393297_35e7818b-066f-49e0-827b-df5b0adacc17.jpg" height="800" width="625" /> <footer>Jitendra Tripathi/BBC</footer> </figure><p>गांव के ही कुछ युवक बताने लगे कि पूरे महोबा गांव में सब्ज़ी पैदा करने वाला उनका गांव कभी एक नंबर पर रहता था. दिनेश कुमार कहते हैं, &quot;पानी के चलते सब्ज़ी अब खाने के लिए नहीं उगा पाते. सात-आठ साल पहले पूरे ज़िले में सबसे ज़्यादा सब्ज़ी यहीं पैदा होती थी. तमाम लोगों का रोज़गार उसी से चलता था.&quot;</p><p>यही हाल महोबा में गौरहारी गांव का भी था जो कि चरखारी तहसील में पड़ता है. महिलाएं सिर पर स्टील के घड़ों और प्लास्टिक के बड़े डिब्बों में पानी भरकर ला रही थीं तो पुरुष साइकिल पर कई डिब्बे लादे चले आ रहे थे. बलवीर कुम्हार अपने कुछ सूखे कच्चे घड़ों के साथ पेड़ की छांव में बैठे थे. बोले, &quot;गर्मी में ही हमारा धंधा होता है और गर्मी में हम इन्हें बना नहीं सकते. क्योंकि एक तो पानी नहीं है, दूसरे मिट्टी निकालने में भी काफ़ी मेहनत लगती है.&quot;</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48573442?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">गांव जो साल में सिर्फ़ एक बार पानी से बाहर आता है</a></p><figure> <img alt="बुंदेलखंड जल संकट" src="https://c.files.bbci.co.uk/4357/production/_107393271_13d9c619-18b8-49b4-a83f-afb2b35959aa.jpg" height="820" width="1472" /> <footer>Jitendra Tripathi/BBC</footer> </figure><h3>’आज तक कोई समाधान नहीं…'</h3><p>कबरई के रहने वाले समाजसेवी पंकज सिंह परिहार कहते हैं कि इस समस्या के समाधान के लिए हर साल कोशिश की जाती है लेकिन आज तक कोई स्थाई समाधान न तो हुआ और न ही ऐसी कोई योजना बनाई गई. </p><p>पंकज सिंह परिहार के मुताबिक़, &quot;यदि सिर्फ़ महोबा की बात की जाए तो शायद ही कोई ऐसा गांव हो जहां तीस से चालीस प्रतिशत लोगों ने पलायन न किया हो. इस समस्या की जड़ में पानी का अभाव तो है ही, रोज़गार भी बहुत बड़ा कारण है. पानी के अभाव में खेती हो नहीं रही है. बीच में दशा सुधरी थी जब मज़दूरों से खनन होता था. अब मशीनें खनन कर रही हैं. बहुत से लोग तो हमेशा के लिए पलायन कर गए हैं और ये स्थिति हर गांव में है. पानी और रोज़गार के लिए कभी ठोस रणनीति बनी नहीं. रोज़गार और पानी मिल जाए तो पलायन अपने आप रुक जाए.&quot;</p><p>झांसी ज़िले में मऊरानीपुर तहसील के गांव परसारा गांव की आबादी आठ सौ की है. गांव में छह हैंडपंप लगे हैं जिनमें से पांच ख़राब हैं. सिर्फ़ एक हैंडपंप से ही सभी लोग पानी भर रहे हैं. गांव के रहने वाले कुंवरलाल कुशवाहा ने बताया कि एक बोर (ट्यूबवेल) स्वीकृत हुआ है लेकिन अभी लगा नहीं है. </p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48609897?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">राशन कार्ड से पानी हासिल करने को मजबूर क्यों हैं ये लोग</a></p><figure> <img alt="बुंदेलखंड जल संकट" src="https://c.files.bbci.co.uk/9177/production/_107393273_d6a874c3-7a5d-4153-a1b4-699d1f710a3c.jpg" height="817" width="1455" /> <footer>Jitendra Tripathi/BBC</footer> </figure><p>किसान नेता शिवनारायण सिंह परिहार कहते हैं, &quot;पूरे बुंदेलखंड में जल स्तर काफ़ी नीचे चला गया है. सारे तालाब, कुंए सूख गए हैं. पंद्रह दिन और यदि बारिश न हुई तो हालात बहुत ख़राब होने वाले हैं. टैंकर की तो जितनी ज़रूरत है भेजे तो जाते हैं लेकिन कुछ जन प्रतिनिधि और अधिकारी उसमें बंदर बांट कर लेते हैं जिसकी वजह से गांव वालों को पानी ठीक से मिल नहीं पाता है.&quot; </p><p>दरअसल, बुंदेलखंड में पानी का संकट कोई नया नहीं है बल्कि ये सदियों से रहा है लेकिन पहले लोगों ने जल संचयन का उचित प्रबंध किया था जिसकी वजह से जलस्तर बहुत ज़्यादा नीचे नहीं जा पाता था. स्थानीय पत्रकार और समाजसेवी आशीष सागर दीक्षित कहते हैं कि पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, तालाबों पर अतिक्रमण, कुंओं की दुर्दशा जैसे कारणों ने जल संचय के प्राकृतिक तरीकों को नष्ट कर दिया, जिसका प्रभाव जल संकट के रूप में दिख रहा है.</p><figure> <img alt="बुंदेलखंड जल संकट" src="https://c.files.bbci.co.uk/164CB/production/_107393319_fb2f8a44-ab8a-4731-8172-77a3190be54e.jpg" height="819" width="1071" /> <footer>Jitendra Tripathi/BBC</footer> </figure><p>बांदा के ज़िलाधिकारी हीरालाल कहते हैं कि उन्होंने स्थानीय लोगों के सहयोग से तालाब और कुंओं को पुनर्जीवित करने का अभियान चलाया है जिसमें जनसहभागिता ख़ूब बढ़ रही है. उनके मुताबिक, &quot;पानी का संकट सिर्फ़ इसलिए है क्योंकि पुराने स्रोतों का रखरखाव ठीक से नहीं है. हम लोग तालाबों के किनारे गड्ढा खोदकर पानी संचयन का तरीक़ा अपना रहे हैं. जब बारिश होगी तो वहां पानी इकट्ठा होगा और फिर अंदर जाएगा. आगे चलकर इससे जलस्तर में सुधार होगा.&quot;</p><figure> <img alt="बुंदेलखंड जल संकट" src="https://c.files.bbci.co.uk/DF97/production/_107393275_961e7746-f7e8-4134-96d5-8aae8c952b0e.jpg" height="826" width="609" /> <footer>Jitendra Tripathi/BBC</footer> </figure><h3>काग़ज पर ही बन पाए तालाब</h3><p>सूखे के संकट को देखते हुए कुछ साल पहले केंद्र सरकार की ओर से दिए गए बुंदेलखंड पैकेज के तहत इस इलाक़े में बड़ी संख्या में नए तालाब भी खुदवाए गए थे लेकिन ज़्यादातर तालाब कागज़ों पर ही बने रहे और जो वास्तविक धरातल पर दिखे भी, उनमें किसी ने कभी पानी नहीं देखा, सिवाय बरसात के कुछ दिनों को छोड़कर. </p><p>चित्रकूट-बांदा इलाक़े का पठारी भाग पाठा कहा जाता है और जलसंकट यहां की सदियों पुरानी पहचान है. मानिकपुर इलाक़े के गोपीपुर गांव में जब हम पहुंचे, उस वक़्त दिन के क़रीब तीन बजने वाले थे. सूखे और वीरान खेतों के दूसरी ओर कुछ कच्चे और कुछ पक्के मकानों की एक छोटी सी आबादी थी. कुछ देर पहले ही एक सरकारी टैंकर आया था और लोग अपने बर्तन भरने के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे.</p><p>गांव के ही गुलाब सिंह बताने लगे, &quot;यही टैंकर ही इस समय जीवन का सहारा बने हुए हैं. दिन में दो तीन बार आता है. पीने का पानी मिल जाता है. बाक़ी ज़रूरत का पानी क़रीब डेढ़ किलोमीटर दूर बोर (ट्यूबवेल) से लाते हैं. जानवरों को तो लोगों ने खेतों में ही छोड़ रखा है. कुछ दुधारू जानवर हैं तो उनके पानी की व्यवस्था भी इसी तरह की जाती है.&quot;</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48545575?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">जहां पानी के टैंकर से तय होते हैं शादी के मुहूर्त</a></p><figure> <img alt="बुंदेलखंड जल संकट" src="https://c.files.bbci.co.uk/12DB7/production/_107393277_bf2a9159-2626-47cf-909a-635e389405b5.jpg" height="805" width="1440" /> <footer>Jitendra Tripathi/BBC</footer> </figure><p>टैंकर के पास दो बड़े प्लास्टिक के डिब्बे लिए हुए विमला भी खड़ी थीं. दोनों डिब्बे भरने के बाद उन्होंने बताया, &quot;सारा दिन हमारा पानी के इंतज़ाम में ही चला जाता है. कुछ पानी टैंकर से मिलता है और जब टैंकर नहीं आता तो काफ़ी दूर से लाना पड़ता है.&quot;</p><p>बुंदलेखंड में पानी और पानी की वजह से होने वाली तमाम समस्याएं जगज़ाहिर हैं. स्थानीय लोगों ने कई बार यह मुद्दा उठाया, संघर्ष किया और अभी भी कर रहे हैं लेकिन कोई स्थाई समाधान नहीं निकल सका. यहां तक कि चुनाव के वक़्त कई जगहों पर पानी की समस्या को लेकर लोगों ने मतदान का बहिष्कार भी किया था लेकिन उनके इस प्रतिरोध का भी कोई असर नहीं हुआ.</p><figure> <img alt="बुंदेलखंड जल संकट" src="https://c.files.bbci.co.uk/4B27/production/_107393291_dd1a01b4-2adf-4d10-a318-32e78834fafc.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Jitendra Tripathi/BBC</footer> </figure><h3>जल संकट के लिए ख़ुद जनता भी ज़िम्मेदार?</h3><p>जानकार बताते हैं कि इसके लिए व्यवस्था से ज़्यादा स्थानीय लोग ख़ुद भी ज़िम्मेदार हैं क्योंकि बड़ी संख्या में बने तालाब या तो नष्ट हो गए या फिर उन पर अवैध कब्ज़ा करके लोगों ने मकान बना लिए. ट्यूबवेल की संख्या बढ़ने के साथ ही लोग इन पर निर्भर होने लगे और दूसरी ओर भूमिगत जलस्तर घटता गया. </p><p>बुंदेलखंड के सबसे पिछड़े इलाके पाठा की प्यास बुझाने के लिए सत्तर के दशक ‘पाठा पेयजल परियोजना’ नामक एक महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की गई जिसके तहत मानिकपुर के आस-पास के इलाक़े में पाइपलाइन के ज़रिए पानी पहुंचाने की व्यवस्था की गई. लेकिन यह परियोजना पूरी तरह से सफल नहीं हो पाई. हालांकि स्थानीय लोगों की मांग है कि यदि पानी सप्लाई के ज़रिए उनके घरों तक पहुंचाने की व्यवस्था हो जाए तो शायद इतनी दूर से उन्हें न लाना पड़े.</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/vert-fut-47951385?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">एक दिन में आख़िर कितना पानी पीना चाहिए</a></p><figure> <img alt="बुंदेलखंड जल संकट" src="https://c.files.bbci.co.uk/9947/production/_107393293_6c938832-c655-42d1-ad2e-fb28e8123964.jpg" height="818" width="1097" /> <footer>Jitendra Tripathi/BBC</footer> </figure><p>पाठा परियोजना के सफल न होने की वजह आशीष सागर कुछ इस तरह बताते हैं, &quot;इस परियोजना के तहत मंदाकिनी और बाल्मीकि नदियों से पानी को पहुंचाया जाना था लेकिन ये दोनों नदियां अब ख़ुद ही पानी को तरस रही हैं. दूसरे, कई जगह पहाड़ों में काफ़ी ऊंचाई पर पानी पहुंच ही नहीं पाता है. इसके लिए जगह-जगह बड़ी टंकियां बनाई जानी थीं लेकिन ऐसा नहीं हुआ.&quot;</p><p>पूरे बुंदेलखंड में क़रीब ढाई हज़ार गांव ऐसे हैं जहां आज भी पाइपलाइन से पानी नहीं पहुंच पाया है.</p><p>बुंदेलखंड में पानी की कमी और रोज़गार की कमी के कारण लोग वर्षों से पलायन जारी है और इसके पीछे सबसे बड़ी वजह पानी और रोज़गार की कमी है. पलायन की बात से अधिकारी भी इनकार नहीं करते हैं लेकिन इसकी वजह पानी नहीं बल्कि रोज़गार को मानते हैं. बांदा के ज़िलाधिकारी हीरालाल कहते हैं कि यह कोई बुंदेलखंड की ही समस्या नहीं बल्कि पूरे राज्य की है क्योंकि नौकरी और रोज़गार के लिए सभी जगहों से लोग बाहर जाते हैं.</p><figure> <img alt="बुंदेलखंड जल संकट" src="https://c.files.bbci.co.uk/E767/production/_107393295_a050146e-9d1c-4468-9d36-c6cec0c4a849.jpg" height="793" width="1084" /> <footer>Jitendra Tripathi/BBC</footer> </figure><p>बहरहाल, ये माना भी जा सकता है कि नौकरी और रोज़गार की तलाश में लोग बाहर जाते हैं और यहां से भी लोग गए होंगे, लेकिन बुंदेलखंड के इन गांवों के लोगों के अलावा घरों पर लटके ताले भी ये बता रहे हैं कि उन्हें लगाने वालों ने किन परिस्थितियों में अपनी मातृभूमि से रुख़सत होना पड़ा है. </p><p>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप <a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a> कर सकते हैं. आप हमें <a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a>, <a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a>, <a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a> और <a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</p>

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