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गीत गातीं स्त्रियां

मिथिलेश कु राय युवा कवि mithileshray82@gmail.com कहीं कीर्तन होता है, तो कक्का उसमें भाग जरूर लेते हैं. कहते हैं कि गीत गाने या सुनने से जिस आनंद की प्राप्ति होती है, उसमें घुल कर दुख-दर्द और थकान विलोपित हो जाता है. कक्का कहते हैं कि कीर्तन में भाग लेनेवाले हरेक व्यक्ति को गाने का सऊर […]

मिथिलेश कु राय
युवा कवि
mithileshray82@gmail.com
कहीं कीर्तन होता है, तो कक्का उसमें भाग जरूर लेते हैं. कहते हैं कि गीत गाने या सुनने से जिस आनंद की प्राप्ति होती है, उसमें घुल कर दुख-दर्द और थकान विलोपित हो जाता है.
कक्का कहते हैं कि कीर्तन में भाग लेनेवाले हरेक व्यक्ति को गाने का सऊर नहीं होता. आगे-आगे गानेवाले और वाद्य-यंत्र बजानेवाले दो-चार ही होते हैं. लेकिन, पीछे से तल्लीन होकर गाने में भी उतना ही मजा है. गाते-गाते झूमने लगना और ताली पीटने लगना, यह गीतों के जादू को दर्शाता है कि किस तरह लोग उसमें खो सा जाया करते हैं.
गीतों से कक्का को स्त्रियों के बारे में कुछ याद आ जाता है. वे बताने लगते हैं कि भले ही ज्यादातर पुरुषों को कोई एक गीत ढंग से याद न रहता हो, लेकिन किसी भी स्त्री को कई-कई गीत कंठस्थ रहती हैं.
कक्का हैरत के साथ यह बताते हैं कि सभी स्त्री का स्वर भी सुरीला नहीं होता है. लेकिन जब वे गीत गाना शुरू करती हैं, तो उनमें उपस्थित लय के ज्ञान के कारण वह कर्ण-प्रिय बन जाता है. कक्का कहते हैं कि इस तरह से देखें, तो स्त्रियों की स्मरण-शक्ति अद्भुत होती हैं. वे एक साथ कई सारे गीतों को अपने मस्तिष्क में संजो कर रखती हैं.
अभी परसों की बात है. मैं चलते-चलते रुक गया. सड़क तक एक मीठा स्वर, जो दर्द में डूब हुआ था, तैर कर आ रहा था. पता चला कि एक लड़की को उसकी बड़ी मां बट-गवनी नोट करा रही हैं. शायद लड़की के लिखने की गति धीमी है और माताजी अनपढ़ हैं.
वह जैसे ही गीत नोट कराने लगती हैं, उसमें लय उत्पन्न हो जाता है और वह गाती चली जाती हैं. लड़की टोकती है, तो उन्हें रुक जाना पड़ता है. इससे उन्हें बड़ी कोफ्त होती है. वे कह रही हैं कि उन्होंने गीत को रट नहीं रखा है. गीत उनके कंठ में बसे हुए हैं. जब तक वे गाने की मुद्रा में नहीं आतीं, आगे की पंक्ति नहीं निकलती. जब गाने लगतीं हैं, तो शब्द स्वतः निकलने लगते हैं.
बड़ी मां की उम्र की ज्यादातर स्त्रियों को शब्द का कुछ भी ज्ञान नहीं है. उनके पास कोई डायरी या गीत की पुस्तिका नहीं है. उनके पास यह एक थाती के रूप में उनसे पहले की स्त्री से उन्हें मिली है. इसे उन्होंने मांगलिक अवसर पर युगल स्वर में गातीं स्त्रियों के पास खड़ी होकर अपने में उतारा है. शब्द के साथ-साथ लय और भाव को भी ग्रहण किया है.
गीत नोट करती लड़की को माताजी यही बताना चाहती हैं कि गीत के कई प्रकार हैं. विभिन्न अवसरों पर अलग-अलग गीत अलग-अलग ढंग से गाये जाते हैं. सिर्फ नोट कर लेने से यह कैसे बताया जा सकता है कि सोहर, बट-गवनी, बिरहा किस लय में गाये जायेंगे? लय के लिए गीत को कंठ में बसना ही होगा.
हालांकि, लड़की इस बात को जान रही है कि यहां कोई भी मांगलिक कार्य बिना स्त्रियों के युगल-गीतों से संपन्न नहीं होता. शायद वह गीतों के उस शक्ति के बारे में भी जानती है कि भाव को अभिव्यक्त करके मन हलका हो जाता है. अभी गीत को नोट कर रही वह लड़की एक दिन गीत को उसके पूरे भाव और लय के साथ जरूर अपनी बड़ी मां के साथ सुर में सुर मिलायेगी.

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