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सभी स्वास्थ्य उपकेंद्र बीमार

अरवल : कुर्था प्रखंड की मानिकपुर पंचायत में स्थित स्वास्थ्य उपकेंद्र खुद ही बीमार है. गांव में प्रवेश करते ही इस स्वास्थ्य उपकेंद्र के बोर्ड पर लिखे स्लोगन को देखकर लोग विभाग की भी खिल्ली उड़ा रहे हैं. उपस्वास्थ्य केंद्र के बोर्ड पर पीले रंग से रोजाना खुलने का समय लिखा गया है, जो हास्यास्पद […]

अरवल : कुर्था प्रखंड की मानिकपुर पंचायत में स्थित स्वास्थ्य उपकेंद्र खुद ही बीमार है. गांव में प्रवेश करते ही इस स्वास्थ्य उपकेंद्र के बोर्ड पर लिखे स्लोगन को देखकर लोग विभाग की भी खिल्ली उड़ा रहे हैं. उपस्वास्थ्य केंद्र के बोर्ड पर पीले रंग से रोजाना खुलने का समय लिखा गया है, जो हास्यास्पद है. यह स्थिति सिर्फ मानिकपुर में बने स्वास्थ्य उपकेंद्र की नहीं है. सच्चाई यह है कि पूरे जिले में बने स्वास्थ्य उपकेंद्रों की स्थिति बेहद खराब है.

मरीजों के इलाज के लिए बने इन स्वास्थ्य उपकेंद्रों को खुद इलाज की जरूरत है. नियमों के आधार पर कागजी कोरम पूरा करने के लिए सभी जगह एएनएम की प्रतिनियुक्ति कर दी गयी है, लेकिन महीनों तक इन उपकेंद्रों में ताला लटका रहता है. स्वास्थ्य विभाग के पदाधिकारी मैन पावर की कमी बताकर इस समस्या से पल्ला झाड़ लेते हैं. करपी, कलेर, अरवल और वंशी प्रखंड के हालात भी कुछ ऐसा ही है.
भवन भी बनता जा रहा है खंडहर : भवन को बाहर से देखने ही पता चल जाता है कि यह खंडहर खुद बोर्ड का भार लेकर अपना इलाज कराने की बाट खोज रहा है. यहां न तो पानी की व्यवस्था है और न ही बिजली का कनेक्शन. इससे यहां आने वाली एएनएम ने भी यहां बैठना बंद कर दिया है. हालत यह हो गयी है कि भवन पूर्ण रूप से जर्जर हो चुका है. अरवल जिले में कुल 65 स्वास्थ्य उपकेंद्र हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर हमेशा बंद पड़े रहते हैं. अरवल में 9, कलेर में 17, कुर्था में 11 और बाकी के करपी एवं वंशी प्रखंड में बनाये गये हैं.
जिला स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी और पद के हिसाब से नियुक्ति नहीं होने की वजह से सारे के सारे स्वास्थ्य उपकेंद्र बगैर काम के हैं.
क्या कहते हैं लोग
यह दुर्भाग्य की ही बात है कि यहां इलाज नहीं हो पा रहा है. लोग अब अपने छोटे-मोटे इलाज आदि कराने के लिए डिस्पेंसरियों की शरण लेने को मजबूर हैं. उप-स्वास्थ्य केंद्र पर चिकित्सा सुविधा का लाभ नहीं मिलने से लोग निजी क्लिनिक में महंगी दवा लेने को मजबूर हैं.
राकेश कुमार
यहां एक महिला कर्मी आती थी, जिनके द्वारा इलाज किया जाता था. अब यहां कोई नहीं आता है. रोजाना नहीं आने की वजह से अगर कभी आ भी गयीं, तो हम गांव वालों को पता भी नहीं चलता. भवन पूरी तरह जर्जर हो गया है. अब तो इलाज की उम्मीद भी हमलोगों ने छोड़ दी है.
अजीत विश्वकर्मा
स्वास्थ्य उपकेंद्रों की हालत में सुधार आये, इसके लिए विभाग प्रयासरत है. मैन पावर की कमी की वजह से रोजाना नहीं खुल पा रहा है. स्थिति ऐसी है कि प्रखंडों के पीएचसी और सदर अस्पताल को चलाने में भी परेशानी होती है. बगैर मैन पावर बढ़ाये उपकेंद्रों की स्थिति में सुधार संभव नहीं है.
डॉ अरविंद कुमार, सिविल सर्जन, अरवल

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