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अदालत ने UPPSC अध्यक्ष पद पर अनिल यादव की नियुक्ति रद्द की

इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) अध्यक्ष पद पर अनिल यादव की नियुक्ति को ‘‘अवैध’ करार देते हुए आज रद्द कर दिया। अदालत ने इसके साथ ही समाजवादी पार्टी सरकार को इसके लिए आडे हाथ लिया कि उसने उनकी ‘‘ईमानदारी और पात्रता’ के बारे में उचित जांच के बगैर ही […]

इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) अध्यक्ष पद पर अनिल यादव की नियुक्ति को ‘‘अवैध’ करार देते हुए आज रद्द कर दिया। अदालत ने इसके साथ ही समाजवादी पार्टी सरकार को इसके लिए आडे हाथ लिया कि उसने उनकी ‘‘ईमानदारी और पात्रता’ के बारे में उचित जांच के बगैर ही उन्हें नियुक्त करके ‘‘अपने संवैधानिक कर्तव्यों का उल्लंघन किया.’

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पीठ ने यादव की यूपीपीएससी अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को दरकिनार करते हुए कहा कि यह ‘‘मनमानी’, ‘‘अवैध’, ‘‘संविधान के अनुच्छेद 316 के अधिकार से बाहर’ है जो ‘‘सोच विचार के बगैर, अन्य उम्मीदवारों की योग्यता और उपलब्धता को नजरंदाज’ करते हुए की गई थी.

यादव ने अपना पदभार अप्रैल 2013 में संभाला था और उनका चयन उन 83 उम्मीदवारों में से किया गया था जिन्होंने पद के लिए राज्य सरकार के समक्ष अपने बायोडाटा जमा किये थे. यह आदेश अधिवक्ता सतीश कुमार सिंह और कई अन्य की ओर से इस वर्ष के शुरु में दायर याचिकाओं का निस्तारण करते हुए दिया गया.
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि यादव की नियुक्ति इन तथ्यों को नजरंदाज करते हुए की गई कि वह अपने गृह जिला आगरा में भारतीय दंड संहिता की धारा 307 :हत्या का प्रयास: और गुंडा कानून के तहत दर्ज दर्ज मामलों में नामजद हैं
द्यपि यादव की ओर से यह कहा गया कि उन्हें मामलों में बरी कर दिया गया है जबकि उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि वह आज का आदेश ‘‘प्रतिवादी के कथित आपराधिक पूर्ववृत्त के गुणदोष पर गौर किये बिना’ दे रहा है. इसके अलावा याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि यादव अपने वर्तमान कार्यभार से पहले मैनपुरी जिले के चित्रगुप्त डिग्री कालेज में एक लेक्चरर के तौर पर तैनात थे और उन्होंने अपने बायोडाटा में यह झूठा दावा किया कि वह प्रचार्य थे.
अदालत ने रिकार्ड में रखी गई सामग्री पर गौर करने के बाद अप्रसन्नता के साथ यह उल्लेख किया कि यादव ने इस तथ्य को छुपाया कि यद्यपि उन्हें कई वर्ष पहले प्रचार्य के पद पर पदोन्नत कर दिया गया था, उनकी पदोन्नति को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई और अदालत ने उसे दरकिनार कर दिया था। इसके साथ ही उन्होंने यह भी तथ्य छुपाया कि उनके द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर विशेष अनुमति याचिका भी ठुकरा दी गई थी.
इसके साथ ही अदालत ने चयन प्रक्रिया में कई अन्य अनियमितताओं का भी उल्लेख किया जिसमें यह भी तथ्य शामिल था कि यादव का बायोडाटा ‘‘समाजवादी पार्टी के एक कार्यालय से फैक्स द्वारा राज्य सरकार को भेजा गया था

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