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12 साल में 1109 पत्रकारों की हुई हत्या, 90 फीसदी मामलों में नहीं हुई किसी को सजा

मिथिलेश झा रांची : पत्रकारों की सुरक्षा के लिए यूनेस्को (UNESCO) दो नवंबर को इंटरनेशनल डे टू इंड इम्प्यूनिटी फॉर क्राइम्स अगेंस्ट जर्नलिस्ट्स (पत्रकारों के खिलाफ अपराधों की रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस) मनायेगा. इस दिवस का उद्देश्य यह बताना है कि पत्रकारों की जान जा रही है और किसी को इसकी फिक्र नहीं है. […]

मिथिलेश झा

रांची : पत्रकारों की सुरक्षा के लिए यूनेस्को (UNESCO) दो नवंबर को इंटरनेशनल डे टू इंड इम्प्यूनिटी फॉर क्राइम्स अगेंस्ट जर्नलिस्ट्स (पत्रकारों के खिलाफ अपराधों की रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस) मनायेगा. इस दिवस का उद्देश्य यह बताना है कि पत्रकारों की जान जा रही है और किसी को इसकी फिक्र नहीं है. 2 नवंबर, 2013 को इंडोनेशिया की राजधानी माली में मारे गये फ्रांस के दो पत्रकारों की याद में हर साल यह दिवस मनाया जाता है.

पत्रकारों के खिलाफ अपराधों की रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस (2 नवंबर) की पूर्व संध्या पर यूनेस्को ने एक रिपोर्ट जारी की. इसमें कहा गया है कि पिछले दो वर्ष में 55 प्रतिशत पत्रकारों की हत्या संघर्षरहित क्षेत्रों में हुई, जो राजनीति, अपराध और भ्रष्टाचार पर रिपोर्टिंग के लिए खबरनवीसों को निशाना बनाने की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है. यूनेस्को ने बताया है कि वर्ष 2006 से 2018 तक दुनिया भर में 1,109 पत्रकारों की हत्याओं के लिए जिम्मेदार लोगों में से करीब 90 फीसदी को दोषी करार नहीं दिया गया.

रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो वर्षों (2017-2018) में 55 प्रतिशत पत्रकारों की मौत संघर्षरहित क्षेत्रों में हुई. यह रिपोर्ट पत्रकारों की हत्याओं की प्रवृत्ति में आये बदलाव को दिखाती है, जिन्हें अक्सर राजनीति, अपराध और भ्रष्टाचार पर उनकी रिपोर्टिंग के लिए निशाना बनाया जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक, पत्रकारों के लिए काम करने के लिहाज से अरब देश सबसे खतरनाक हैं, जहां 30 प्रतिशत हत्याएं हुई. इसके बाद लातिन अमेरिका और कैरीबियाई क्षेत्र (26 प्रतिशत) और एशिया तथा प्रशांत देश (24 प्रतिशत) आते हैं. यूनेस्को ने पिछले साल इतनी ही अवधि के मुकाबले वर्ष 2019 में पत्रकारों की कम हत्याएं दर्ज की हैं.

यूनेस्को का कहना है कि दुनिया भर में जितने पत्रकार मारे गये हैं उनमें से 93 फीसदी मामले स्थानीय हैं. यानी पत्रकार अपने ही देश में काम करते हुए मारे गये. वर्ष 2006 से 2017 के बीच करीब 1,010 पत्रकार अपना काम करते हुए मारे गये थे, जो जिसकी संख्या 2018 तक 1109 हो गयी. यह आंकड़ा दर्शाता है कि हर चौथे दिन एक पत्रकार की हत्या हो रही है. और इससे भी चिंताजनक बात यह है कि 90 फीसदी हत्या के मामलों में दोषी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई.

यूनेस्को का कहना है कि अपराधियों को सजा नहीं मिलने की वजह से उनके हौसले बुलंद हो जाते हैं. वे ऐसे ही कई और अपराध को अंजाम देते हैं. कानून और न्याय व्यवस्था को धता बताते हैं. यूनेस्को की नजर में यह मानवाधिकार का गंभीर उल्लंघन है. अपराधियों को सजा नहीं होने की वजह से पूरे समाज पर खतरा उत्पन्न हो जाता है. इससे आमजन के मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है, भ्रष्टाचार और अपराध को बढ़ावा मिलता है. यूनेस्को ने सभी देशों की सरकारों, सिविल सोसाइटी, मीडिया और एक-एक व्यक्ति से आह्वान किया है कि वे इस वैश्विक अभियान से जुड़ें.

180 देशों के इंडेक्स में भारत 136वें स्थान पर

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत वर्ष 2019 में 140वें पायदान पर था. वर्ष 2018 की तुलना में भारत ने अपनी स्थिति में सुधार करते हुए दो पायदान की छलांग लगायी है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RWB) ने कहा है कि वर्ष 2019 में भारत में किसी पत्रकार की हत्या नहीं हुई. वर्ष 2017 की RWB की रिपोर्ट बताती है कि 180 देशों की सूची में भारत 136वें स्थान पर था. इस संगठन के मुताबिक, वर्ष 1992 से 2017 के बीच भारत में 75 पत्रकारों की हत्या हुई.

इधर, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014 में भारत में जितने पत्रकारों पर हमले हुए, उनमें से 70 फीसदी मामले अकेले उत्तर प्रदेश में दर्ज किये गये. वर्ष 2015 में पत्रकारों की हत्या के दो मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किये गये. पत्रकारों पर हमलों के मामले में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है और उसके बाद बिहार का नंबर आता है. ऐसे मामलों में अब तक किसी को सजा नहीं हुई है. यह चिंता की बात है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, वर्ष 2018 में बिहार और झारखंड में दो-दो पत्रकारों की हत्या हुई. कहीं पत्रकार को पीट-पीटकर मार डाला गया, तो कहीं गाड़ी से कुचल दिया गया. यूनेस्को का कहना है कि आमतौर पर यह मान लिया जाता है कि युद्ध प्रभावित देशों में सबसे ज्यादा पत्रकार मारे जाते हैं, लेकिन यह सच नहीं है. स्थानीय स्तर पर सबसे ज्यादा पत्रकारों को काम के दौरान अपनी जान गंवानी पड़ती है. इन मामलों को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया जाता है, जिसकी वजह से पत्रकार निर्भीक होकर पूरी ईमानदारी से काम नहीं कर पाते.

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