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इसराइली भाषा हिब्रू पढ़ाने वाला मुसलमान प्रोफ़ेसर

जब-जब भारत और इसराइल के संबंधों की बात आती है तो जेहन में इसराइल की एक छवि उभरती है. मेरे दिमाग में उभरने वाली इन छवियों में सबसे प्रभावी छवि ख़ुर्शीद इमाम की है. आप सोच रहे होंगे ये ख़ुर्शीद इमाम कौन हैं और इनका क्या ही रिश्ता होगा इसराइल से और अगर होगा भी […]

जब-जब भारत और इसराइल के संबंधों की बात आती है तो जेहन में इसराइल की एक छवि उभरती है.

मेरे दिमाग में उभरने वाली इन छवियों में सबसे प्रभावी छवि ख़ुर्शीद इमाम की है.

आप सोच रहे होंगे ये ख़ुर्शीद इमाम कौन हैं और इनका क्या ही रिश्ता होगा इसराइल से और अगर होगा भी तो वही होगा जो एक मुसलमान का इसराइल के साथ होता है.

आलोचना का.

लेकिन ख़ुर्शीद इमाम थोड़े से उलट हैं…न न न…वो कोई इसराइल प्रशंसक भी नहीं हैं.

ख़ुर्शीद इमाम संभवत: एकमात्र भारतीय मुसलमान होंगे जो अरबी और हिब्रू भाषा पर समान अधिकार रखते हैं.

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पांच वक्त की नमाज

हिब्रू इसराइल की भाषा है और ख़ुर्शीद जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर की हैसियत से हिब्रू पढ़ाते हैं.

ख़ुर्शीद इमाम सूट बूट वाले मुसलमान भी नहीं हैं. दाढ़ी रखते हैं टोपी पहनते हैं और पांच वक्त की नमाज़ भी पूरे ईमान से पढ़ते हैं.

उन्हें देख कर लगता है कि वो शायद अरबी के टीचर हों.

इस बात का जवाब वो कुछ यूं देते हैं, ‘मुझे देखकर तो लोग ये भी सोचते होंगे कि मुसलमान है तो कम पढ़ा लिखा होगा. पढ़ा होगा तो मदरसे से पढ़ा होगा. वो इस पहनावे की वजह से है और कुछ नहीं. स्टीरियोटाइपिंग तो होती ही है. मैं महसूस करता हूं लेकिन अब इससे आगे निकल चुका हूं.’

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हिब्रू यूनिवर्सिटी

इसराइल में रूचि कैसे हुई. ख़ुर्शीद कहते हैं, ‘आप खबरें पढ़िए, मस्जिद में जाइए किसी बहस में जाइए. एक मुसलमान की ज़िंदगी में इसराइल घूम फिर कर आ ही जाता है तो मैंने सोचा कि इस देश के बारे में दूसरों से सुनने की बजाय खुद जाकर देखा जाए.’

गोपालगंज के रहने वाले ख़ुर्शीद ने जेएनयू में पढ़ाई की और फिर स्कॉलरशिप के लिए हिब्रू यूनिवर्सिटी में अप्लाई किया.

वो बताते हैं, ‘मुझे लगा नहीं था कि मुझे स्कालरशिप मिलेगी. लेकिन मिली तो मैं बहुत खुश हुआ. चार साल रहा इसराइल में और सच कहूं तो लौटते समय करीब दस-पंद्रह दोस्त होंगे जिन्होंने आंखों में आंसूओं से विदा किया था.’

लेकिन एक मुसलमान होकर हिब्रू पढ़ाने का फैसला क्या आसपास के लोगों के लिए अटपटा नहीं था.

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प्रधानमंत्री का इसराइल दौरा

ख़ुर्शीद के अनुसार कई लोग उन्हें इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद का एजेंट मानते हैं तो कुछ लोग उन्हें मुसलमान विरोधी भी समझ लेते हैं.

वो कहते हैं, ‘मानवीय भावनाएं सबसे ऊपर होती हैं. इसराइल में रहने के दौरान मैंने समझा कि कई मिसकॉन्सेप्शन्स हैं. अगर इसराइल ऐसा है तो उसके कारण हैं. असुरक्षा की भावना है. मुझे इसराइल और फ़लस्तीनी दोनों लोगों से समान प्रेम है.’

तो फिर दोनों के बीच सुलह क्यों नहीं होती है, ख़ुर्शीद के अनुसार आम लोग सुलह के पक्षधर हैं, लेकिन राजनीति तो फिर राजनीति ही है.

भारत और इसराइल संबंधों पर खुर्शीद कहते हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री का इसराइल दौरा इसराइल के लिए अहम है क्योंकि इससे उनकी वैधता और अधिक पुख्ता होती है जबकि भारत को इसराइल से बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है, मसलन वहां का सामाजिक ताना-बाना, वहां की संस्कृति और टेक्नोलॉजी से सीखने की बहुत गुंजाइश रहती है.

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अरबी हो या हिब्रू

अपने मज़हब और अपने प्रोफ़ेशन में संतुलन बिठाते ख़ुर्शीद इमाम पिछले कई सालों से हिब्रू पढ़ा रहे हैं. उनसे हिब्रू पढ़ने वालों में भारतीय सेना के भी लोग हैं और आम छात्र भी.

वो कहते हैं, ‘मुझे भाषा पसंद है चाहे अरबी हो या हिब्रू. हिब्रू पढ़ाता हूं तो ज़ाहिर है कि हिब्रू पढ़ता भी रहता हूं. बाकी इसराइल की जिन कदमों के लिए आलोचना होनी चाहिए उस आलोचना से भी पीछे नहीं हटता हूं.’

हिब्रू से जुड़ने के कारण कई बार आलोचना का शिकार हो चुके ख़ुर्शीद अब बेफ़िक्र हैं और कहते हैं कि भाषाएं इंसानों को जोड़ती हैं और बचाती भी हैं इसलिए इस मुद्दे पर लोगों की आलोचना पर अब वो बिल्कुल ध्यान नहीं देते हैं.

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