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सांसद सुष्मिता देव ने चलाया जीएसटी में सैनिटरी नैपकिंस को टैक्स फ्री करने का अभियान, वरुण गांधी ने भी किया समर्थन

नयी दिल्ली : सुष्मिता देव भारत के पूर्वोत्तर के राज्य असम के सिलचर संसदीय क्षेत्र की कांग्रेस की सांसद हैं. उन्होंने सरकार की ओर से सदन में पेश किये गये वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) विधेयक में सैनिटरी नैपकिन को करमुक्त रखने के लिए एक अनोखा अभियान चलाया है. उन्होंने करीब एक पखवाड़ा पहले अपने इस […]

नयी दिल्ली : सुष्मिता देव भारत के पूर्वोत्तर के राज्य असम के सिलचर संसदीय क्षेत्र की कांग्रेस की सांसद हैं. उन्होंने सरकार की ओर से सदन में पेश किये गये वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) विधेयक में सैनिटरी नैपकिन को करमुक्त रखने के लिए एक अनोखा अभियान चलाया है. उन्होंने करीब एक पखवाड़ा पहले अपने इस ऑनलाइन अभियान की शुरुआत की थी. उनके इस ऑनलाइन अभियान के समर्थन में अभी तक करीब दो लाख से अधिक लोगों ने शामिल होकर अपने-अपने हस्ताक्षर किये हैं.

बता दें कि सुष्मिता देव ने बीते आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर अपने इस ऑनलाइन अभियान की शुरुआत की थी, जिसमें व्यक्तिगत तौर पर उनके तीन प्रतिद्वंद्वदी राजनीतिक दलों के लोगों ने भी खुद को शामिल करते हुए अपना समर्थन दिया है. उनके इस ऑनलाइन अभियान में भाजपा के वरुण गांधी, बीजू जनता दल के बैजयंत पांडा और तेलंगाना राष्ट्र समिति के के कविता ने उनके इस अभियान में खुद को शामिल करते हुए सोशल मीडिया पर भी इसे साझा किया है. इतना ही नहीं, कांग्रेस के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने तो उनके इस अभियान में खुद को शामिल करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखकर इस लक्जरी उत्पाद को करमुक्त करने की मांग भी की है. इसके साथ ही, संसद के दोनों सदनों के सदस्यों ने भी कांग्रेसी सांसद सुष्मिता देव के इस अभियान का समर्थन करते हुए इसे करमुक्त करने की मांग सरकार से की है.

सिलचर की सांसद सुष्मिता देव ने बीते 25 फरवरी को वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखकर मांग की थी कि कंडोम और गर्भनिरोधक दवाओं की तरह सैनिटरी नैपकिन को भी करमुक्त किया जाना चाहिए, क्योंकि यह महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवन के लिए महत्वपूर्ण है. सरकार इस बात को बार-बार दोहरा रही है कि इस साल के मध्य तक वह पूरे देश में एक तरह के कर ढांचे को मूर्तरूप देने के लिए इस जीएसटी को लागू कर देगी.

गौरतलब है कि इस समय देश के विभिन्न राज्यों में सैनिटरी नैपकिन पर अलग-अलग तरह के कर वसूले जाते हैं. आम तौर पर इसके लिए सरकार की ओर से करीब 12 फीसदी कर निर्धारित किया गया है, लेकिन कुछ राज्यों में 14 फीसदी तक कर वसूले जाते हैं. इस मसले पर चर्चा के दौरान संसद में अपने पक्ष को मजबूती से रखते हुए उन्होंने कहा था कि यदि सरकार की ओर से जीएसटी में नैपकिन को करमुक्त कर दिया जाता है, तो स्कूलों में छात्राओं और कार्यस्थल पर महिलाओं की उपस्थिति में इजाफा होगा. इसके साथ ही, उन्होंने यह भी कहा था कि नैपकिन को करमुक्त कर दिये जाने की वजह से नरेंद्र मोदी सरकार की ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ और ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को बल मिलेगा.

सांसद सुष्मिता देव कहती हैं कि सैनिटरी नैपकिन पर टैक्स लगाना अनुचित है और कानून में समानता के अधिकार के नियम को दरकिनार करता है. उन्होंने कहा कि महिलाओं को करीब 39 वर्ष तक विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन उन्हें बारहों महीने कर का भुगतान करना पड़ता है. वित्त मंत्री को दिये गये पत्र में पर्यावरणविदों की राय का हवाला देते हुए कहा गया है कि मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला नैपकिन पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है और इसका पुनर्चक्रण करना भी आसान है. उसमें कहा गया है कि अगर नैपकिन पर कर का भार कम करने से पर्यावरण के अनुकूल हेल्थ फ्रेंडली पैड्स को बढ़ावा मिलेगा. वहीं, एक अध्ययन में यह पाया गया है कि भारत की करीब 70 फीसदी महिलाएं भारी कर की वजह से नैपकिन का इस्तेमाल करने में समर्थ नहीं हैं.

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