नेता अपने देश के युवाओं के लिए प्रेरणा होते हैं. हमारे देश में बड़ी संख्या में नेता हैं, जो करोड़ों के मालिक हैं. इनमें सांसद, विधायक से लेकर मुखिया तक शामिल हैं. नेताओं की काली कमाई और काली करतूत के किस्से चारों ओर सुने और पढ़े जाते हैं. लेकिन, भगौती प्रसाद जैसे नेता और जनप्रतिनिधि की कहीं चर्चा नहीं होती. दो बार विधायक रहे भगौती प्रसाद ने चाय और चने बेच कर जीवन यापन किया. गांववालों ने चंदा कर उनका अंतिम संस्कार किया.
।।राजेंद्र कुमार।।
लखनऊः आज सांसद और विधायक लाखों की लक–दक गाड़ियों में घूमते हैं. वहीं बहराइच जिले की इकौना से दो बार विधायक रहे भगौती प्रसाद ने गरीबी से संघर्ष करते हुए मंगलवार को दुनिया से विदा ले ली. भगौती प्रसाद सूबे की राजनीतिमें चर्चित नहीं हैं, पर उनकी ईमानदारी के किस्से कांग्रेस, भाजपा, बसपा और सपा के वरिष्ठ नेताओं को भी याद हैं. उन्होंने हमेशा क्षेत्र की समस्या दूर करने प्रयास किया. कभी अपने या अपने परिवार के लिए जमीन या मकान का जुगाड़ नहीं किया.
जीप या कार तक नहीं खरीदी. लखनऊ हमेशा बस या रेल से ही आते थे. सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव उनकी ईमानदारी और उसूलों के हमेशा कायल रहे. मुलायम सिंह ने भगौती प्रसाद की खराब आर्थिक स्थिति की जानकारी होने पर वर्ष 2006 में उन्हें एक लाख रु पये आर्थिक सहायता के रूप में मुहैया कराये थे. भगौती बाबू मरने से पहले अपने हमदर्द मुलायम सिंह यादव से मिलना चाहते थे, लेकिन गरीबी के चलते पुत्र राधेश्याम उनकी इच्छा पूरी नहीं कर सके.
राधेश्याम के पास तो मंगलवार को इतने भी पैसे नहीं थे कि वह पिता का अंतिम संस्कार कर सकें. जो थोड़े पैसे थे, इलाज में खर्च हो गये. गांववालों ने ही चंदा कर भगौती बाबू का अंतिम संस्कार किया. यूपी के श्रवस्ती जिले में इकौना थाना क्षेत्र के मदारा गांव के रहनेवाले भगौती प्रसाद ने अपना राजनीतिक सफर पूर्व सांसद केके नैयर के मार्गदर्शन में वर्ष 1964 में शुरू किया. जनसंघ के टिकट पर 1967 और 1969 में इकौना के विधायक चुने गये. गांधीवादी विचारधारा के भगौती प्रसाद ने कभी सिद्धांतों और आदर्शो से समझौता नहीं किया. राजनीतिक गुटबाजी में उनका कभी यकीन नहीं रहा.
ईमानदारी से राजनीति की और जब चुनाव हारे, तो जीवन यापन के लिए चाय की दुकान खोल ली. चने भी बेचे. आज के राजनीतिक माहौल में किसी भी दल के सक्रि य सांसद एवं विधायकों को देख कर भगौती प्रसाद का चाय की दुकान खोलना अचंभित करता है. ईमानदारी को महत्व देनेवाले भगौती प्रसाद ने यह किया. उनके पुत्र राधेश्याम कहते हैं, ‘मेरे पिता कहते थे कि जीवन यापन के लिए ईमानदारी से किया गया कोई काम छोटा नहीं होता. वह पैसा भले ही ना दे, पर थोड़ी दिक्कतों के साथ सुख जरूर देता है. इसे कभी न छोड़ना.
भगौती प्रसाद हार्निया और दमा से पीड़ित थे. गरीबी के चलते वह अच्छे अस्पताल में इलाज नहीं कर सके. बीते सप्ताह तबीयत बिगड़ी, तो पुत्र राधेश्याम ने शहर के एक निजी नर्सिग होम में भरती कराया. घर की सारी जमा पूंजी खत्म हो गयी, तो बहराइच के जिला अस्पताल ले आये. यहां अस्पताल प्रशासन ने उन्हें भरती करने में आनाकानी की. पूर्व विधायक फर्श पर तड़पते रहे. इसकी खबर मीडियाकर्मियों को हुई, तो डॉक्टरों ने उन्हें भरती तो किया, लेकिन इलाज नहीं. और मंगलवार को भगौती प्रसाद का निधन हो गया.
भगौती प्रसाद की मौत से आहत लखनऊ के सांसद लालजी टंडन कहते हैं कि सूबे की राजनीति से जुड़े एक ईमानदार विधायक का ऐसे जाना ईमानदार आदमी के मनोबल को तोड़नेवाला है. उनकी मौत ईमानदारी के उसूलों को डिगा देती है. हालांकि, भगौती प्रसाद ने कभी भी अपनी गरीबी की परवाह नहीं की. उन्हें पूर्व विधायक के रूप में प्रतिमाह 10,500 रुपये पेंशन मिलती थी, लेकिन डेढ़–दो साल से बीमारी के चलते भगौती प्रसाद लखनऊ आ ही नहीं पाये, सो पेंशन भी नहीं मिल पायी.
सरकार–प्रशासन ने नहीं ली सुध: भगौती प्रसाद को राज्य सरकार ने इसी वर्ष विधानमंडल उत्तरशती समारोह में सम्मानित किया था. समारोह बीतने के बाद किसी ने उनकी सुध नहीं ली. उनकी बीमारी की जानकारी होने के बाद भी जिला प्रशासन ने डॉक्टरों को उनके बेहतर इलाज का निर्देश नहीं दिया. जिला अस्पताल के वरिष्ठ अधिकारी भी पूर्व विधायक का हाल जानने नहीं पहुंचे. जूनियर डॉक्टरों के भरोसे छोड़ दिया. हालांकि, अब पूर्व विधायक के इलाज में लापरवाही बरते जाने की जांच का आदेश हुआ है.
नहीं मिला कोई दानवीर: प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक दलों से जुड़े तमाम सांसद और विधायक करोड़पति हैं. नसीमुद्दीन सिद्दीकी, रंगनाथ मिश्र, रामवीर उपाध्याय, रामअचल राजभर, राकेश धर त्रिपाठी जैसे कई विधायक हैं, जिनके पास आय से अधिक संपत्ति सतर्कता जांच में पायी गयी. इनमें से कई विधायकों को करोड़ों की जमीन और हीरे–जेवरात लोगों ने दान में दिये, लेकिन भगौती प्रसाद के इलाज की खातिर कोई आगे नहीं आया.