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पूर्वांचल : 2014 के लोस चुनाव में भाजपा को 26 में से मिली थीं 23 सीटें, कांग्रेस नहीं खोल पायी थी खाता
लोकसभा चुनाव से पहले राहुल का सियासी मास्टर स्ट्रोक, सक्रिय राजनीति में आयीं प्रियंका देश की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर जाता है और यूपी को जीतने के लिए पूर्वांचल को जीतना जरूरी है. इसी फॉर्मूले से 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में यूपी में सबसे ज्यादा सीटें हासिल करने वाली […]
लोकसभा चुनाव से पहले राहुल का सियासी मास्टर स्ट्रोक, सक्रिय राजनीति में आयीं प्रियंका
देश की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर जाता है और यूपी को जीतने के लिए पूर्वांचल को जीतना जरूरी है. इसी फॉर्मूले से 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में यूपी में सबसे ज्यादा सीटें हासिल करने वाली भाजपा अब 2019 की जंग फतह करने के लिए पूर्वांचल में पैठ बनाने की कोशिश में है.
उधर, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अब तक चुनावों के दौरान सिर्फ अमेठी और रायबरेली तक सीमित रहने वाली प्रियंका को मैदान में उतारकर बड़ा सियासी मास्टरस्ट्रोक खेला है.
यूपी में सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं किये जाने के बाद उभरे समीकरणों में प्रियंका का अचानक पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनना बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है. प्रियंका के जरिये कांग्रेस यूपी में अपने खोये जनाधार को हासिल करने की जुगत में है.
आंकड़े बताते हैं कि 2009 के लोकसभा चुनाव से ही कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं रही है. उस वक्त कांग्रेस को पूर्वांचल की 26 सीटों में महज चार सीटें ही मिली थीं. वहीं, 2014 में तो कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था. 2017 के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल में कांग्रेस की स्थिति काफी खराब थी.
दरअसल, पूर्वांचल ब्राह्मणों का मजबूत गढ़ माना जाता है. पूर्वांचल की अधिकतर सीटों पर ब्राह्मण वोटरों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. एक दौर में ब्राह्मण पारंपरिक तौर पर कांग्रेस के समर्थक थे, लेकिन मंडल आंदोलन के बाद उनका झुकाव भाजपा की ओर हो गया.
बाद में ब्राह्मण वोटरों के एक बड़े हिस्से का झुकाव मायावती की बसपा की तरफ भी हुआ और 2014 के आम चुनाव में इस तबके का झुकाव फिर भाजपा की ओर हो गया. माना जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में इन्हीं ब्राह्मणों को एकजुट करने और अपनी तरफ लाने की रणनीति के तहत प्रियंका को पूर्वांचल की जिम्मेदारी सौंपी गयी है.
देश की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर और यूपी को जीतने के लिए पूर्वांचल को जीतना जरूरी
पूर्वांचल का गणित समझिए
21 जिले
26 लोकसभा सीटें
130 विधानसभा सीटें
किसको कितनी सीटें
लोकसभा चुनाव
2014 2009
पार्टी सीटें सीटें
भाजपा 23 09
अपना दल 02 00
सपा 01 09
कांग्रेस 00 04
बसपा 00 04
2017 विधानसभा
पार्टी सीटें
भाजपा 87
अपना दल 09
भासपा 04
सपा 14
कांग्रेस 00
बसपा 10
अन्य 04
ये हैं लोकसभा सीटें
कुशीनगर, गोरखपुर, देवरिया, बांसगांव, फैजाबाद, बहराइच, श्रावस्ती, गोंडा, डुमरियागंज, महराजगंज, आंबेडकरनगर, बस्ती, संत कबीर नगर, आजमगढ़, घोषी, सलेमपुर, बलिया, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, वारणसी, भदोही, मिर्जापुर, फतेहपुर, फूलपुर, इलाहबाद, प्रतापगढ़.
1999 में सोनिया के लिए कैंपेन
प्रियंका की राजनीतिक गतिविधि की शुरुआत 1998 में मां सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद हुई. 1999 के आम चुनाव में सोनिया अमेठी और बेल्लारी से एक साथ चुनाव लड़ीं. इस दौरान प्रियंका ने अमेठी के प्रचार की कमान संभाली. तब से राजनीति में सक्रिय हैं.
चर्चा है कि प्रियंका अपनी मां सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली से 2019 का लोकसभा का चुनाव लड़ सकती हैं. सोनिया गांधी के स्वास्थ्य कारणों से लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने की खबर आ रही है.
इंदिरा गांधी ने कहा था प्रियंका आयेगी, तो लोग मुझे भूल जायेंगे
इंदिरा गांधी के भरोसेमंद नेता माखनलाल फोतेदार ने 2015 में एक इंटरव्यू के दौरान बताया था, ‘उस वक्त इंदिराजी ने मुझे कहा कि मेरे यहां एक लड़की है जिसका नाम प्रियंका है. उसका भविष्य बहुत अच्छा है. जब वह बड़ी हो जायेगी. थोड़ा-बहुत सोचने लगेगी. लोग मुझे भूल जायेंगे, उसको याद करेंगे. इंदिरा प्रियंका के पीएम की कुर्सी पर काबिज होने का सपना देखती थीं.
कार्यकर्ताओं ने कहा- इंदिरा इज बैक
प्रियंका को महासचिव बनाये जाने के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नया जोश जाग उठा है. कार्यकर्ताओं ने लखनऊ में प्रियंका को मां दुर्गा का अवतार बताने वाले पोस्टर भी लगा दिये. इस पोस्टर्स में लिखा है, इंदिरा इज बैक.
प्रियंका जी महासचिव बनी हैं, मेरी ओर से उन्हें शुभकामनाएं. चूंकि यह परिवार का मसला है, तो इस तरह के पद अस्वभाविक नहीं हैं. मैं केवल यह कहना चाहता हूं कि उन्हें केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश में सीमित भूमिका क्यों दी गयी? रविशंकर प्रसाद, केंद्रीय मंत्री
राहुल जी ने बहुत बड़ा फैसला किया है. इसका भारतीय राजनीति में बड़ा असर होगा. इसके दूरगामी परिणाम होंगे. इससे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस में नयी जान आयेगी. भाजपा प्रियंका जी के राजनीति में आने से घबरा गयी है.राजीव शुक्ला, कांग्रेस नेता
प्रियंका गांधी के अच्छे व्यक्तित्व, खुद को पेश करने के तरीके और मतदाताओं से जोड़ने के कौशल से कांग्रेस को फायदा होगा. उनमें उनकी दादी के गुण हैं. उनके सक्रिय राजनीति में आने के कदम का स्वागत करती हूं. मनीषा कायन्दे, प्रवक्ता, शिवसेना
सोशल मीडिया पर दिखेगा चुनावी जंग
12000 करोड़ खर्च होंगे इस बार चुनाव प्रचार में
2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियां सोशल मीडिया पर अपने चुनावी प्रचार के लिए जमकर पैसा खर्च करने वाली हैं. इसे लेकर सोशल मीडिया काफी उत्साहित है. विभिन्न मीडिया एजेंसियों के अनुमान के मुताबिक, इस बार चुनावी प्रचार में 12000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. यह 2014 के मुकाबले 150 फीसदी अधिक है.
फेसबुक करेगा लीड
16800 करोड़ के खर्च का अनुमान लगाया एडलिफ्ट ने
2021 तक 25000 करोड़ पहुंचने की उम्मीद
मीडिया एजेंसी डेंत्सू एजिस नेटवर्क के अनुसार, 2018 में विभिन्न चुनावों पर कुल मिलाकर 10819 करोड़ रुपये खर्च हुए, जिसके 2021 तक 24920 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है.
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