आम चुनाव में भाजपा की भारी जीत के बाद, देश की राजधानी का दिल कहे जानेवाले लुटियन जोन में इन दिनों काफी खदबदाहट है. 10 साल या इससे ज्यादा समय से यहां के बड़े-बड़े बंगलों पर काबिज रहे अनेक नेताओं को अब अचानक इनसे महरूम होना पड़ा है. इसके साथ सरकारी गाडि़यों एवं अन्य विशेष लाभों से भी हाथ धोना पड़ा है.
पिछले हफ्ते, दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में शाम बिताने के बाद योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को पोर्टिको में अपनी गाड़ी का इंतजार करते देखा गया. उनको अपने एक मित्र से कहते सुना गया कि उन्होंने अपनी सरकारी गाड़ी वापस कर दी है और अभी निजी कार से चलने की आदत नहीं बन पायी है.
पूर्व कानून तथा विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद कुशक रोड स्थित अपना सर्वसुविधासंपन्न बंगला छोड़ कर दक्षिण दिल्ली स्थित जामिया नगर के अपने पैतृक आवास में शिफ्ट कर गये हैं. सलमान अपने सामान के साथ अपने करीब सौ तरह के पालतू पशु-पक्षियों को भी ले गये हैं. इन पशु-पक्षियों में गाय, बिल्ली, कुत्ते, गिलहरी, खरगोश और चूहे भी शामिल हैं. पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने तो बहुत जल्दी सरकारी मकान छोड़ दिया. पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल लुटियन जोन में ही रहने के लिए किराये का एक निजी बंगला ढूंढ़ रहे हैं. कपिल कहते हैं, मैं एक अच्छी और रहने लायक जगह देख रहा हूं, लेकिन मुश्किल यह है कि जल्दी में मिल नहीं रही है. मैं जल्दी से जल्दी सरकारी बंगला छोड़ना चाहता हूं.
दिलचस्प यह है कि भाजपा के पूर्व नेता जसवंत सिंह, जो चुनाव के दौरान बागी हो गये थे और बाड़मेर से निर्दलीय लड़ कर हार गये, भी सरकारी बंगले पर कब्जा जमाये हुए हैं. जसवंत सिंह को तीन मूर्ति लेन स्थित बंगला तुरंत खाली करने का नोटिस दिया जा चुका है.
यह तो सर्वविदित है कि लुटियन जोन में सिर्फ मंत्रियों को बंगले आवंटित किये जाते हैं. बाकी को सांसद फ्लैट दिये जाते हैं. नरेंद्र मोदी सरकार की दिक्कत यह है कि कौन रिश्ते खराब करे. करीब-करीब सभी दलों के वरिष्ठ नेता सरकार और भाजपा के बड़े नेताओं के इस आस में चक्कर लगा रहे हैं कि बंगले खाली करने में ज्यादा सख्ती न दिखायी जाये.
पिछली लोकसभा के तकरीबन एक तिहाई (260) सदस्य इस बार चुनाव हार गये हैं. इनमें से अधिकतर ने सरकारी आवास तुरंत खाली करने में असमर्थता जतायी है. किसी को सेहत की दिक्कत है, तो किसी की बच्चा पढ़ाई कर रहा है. सबके अपने-अपने बहाने हैं. कुल मिला कर कोई मकान खाली करने की जल्दी में नहीं दिख रहा है. यह हालत तब है, जब पहली बार चुन कर आये 315 सांसदों के रहने का अब तक स्थायी इंतजाम नहीं हो पाया है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एक नयी आवास समिति अगले सप्ताह नये सदस्यों को मकान आवंटित करते समय मकान खाली न करने के सभी अनुरोध पत्रों पर फैसला करेगी. आवास समिति के अध्यक्ष भाजपा सांसद किरीट सोमैया कहते हैं, ह्यहम लोग मकान आवंटन के मामले में संसद के दिशा-निर्देशों से बंधे हैं. फिर भी हम वाजिब मामलों में मानवता के आधार पर काम करेंगे, सदस्य की वरिष्ठता का भी ध्यान रखा जायेगा. हम कुछ लोगों को रियायत दे सकते हैं, लेकिन यह कोई नियम नहीं बन जायेगा.ह्ण
पूर्व में भी सरकारी आवासों पर कब्जा जमाये राजनीतिज्ञों से कभी जबरन मकान खाली नहीं कराया गया. शहरी विकास मंत्रालय सबको मकान खाली करने के लिए नोटिस जारी करता है. अगर कोई मकान खाली नहीं करता, तो उससे बाजार भाव से किराया वसूल किया जाता है और महीनों पत्राचार चलता रहता है.
इससे पहले तक, मंत्रियों को जब तक लुटियन जोन में बंगला नहीं मिलता था, वे पांच सितारा होटलों में ठहराये जाते थे. लेकिन इस बार मोदी सरकार में ज्यादातर सांसद, यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री अपने राज्य के सरकारी भवनों में ठहरे थे. बहुत से सदस्य अब भी उन्हीं में रह रहे हैं.
शहरी विकास मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि राजधानी के विभिन्न सरकारी होटलों में संसद सत्र के दौरान 180 कमरे बुक कराये गये थे. चार दिन में करीब 1.2 करोड़ रुपये इन कमरों का किराया चुकाया गया. नये सांसद नियमानुसार टाइप 4 और टाइप 5 के आवास के हकदार होते हैं. इसमें चार बेडरूम और एक स्टडी रूम होता है. दूसरी बार निर्वाचित सांसद और मंत्री लुटियन जोन में बंगले के हकदार होते हैं. इनमें बहुत सारी सुविधाएं होती हैं. पूर्व पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी का बंगला इतना बड़ा है कि उसमें पांच बैडमिंटन कोर्ट बनाये गये हैं.
अंग्रेजों द्वारा बनाये गये लुटियन जोन में करीब 1100 बंगले हैं. इनमें से 65 निजी आवास हैैं. बाकी सभी बंगले सरकार के हैं. इनमें देश के बड़े राजनीतिज्ञ, नौकरशाह, जज और सेना के उच्च अधिकारी रहते हैं. वरिष्ठ पत्रकार और लेखिका तवलीन सिंह, ने लुटियन जोन के सत्ता केंद्र पर तो एक किताब ही लिख दी है. तवलीन कहती हैं कि सांसद जो संसद सत्र के दौरान दिल्ली आते हैं, उनको सरकारी हास्टलों में ठहराया जा सकता है. उन्हें क्यों होटल अशोका या अन्य पांच सितारा होटल में ठहराया जाता है? अच्छा तो यह होगा कि सभी मंत्रियों को 600 एकड़ में फैले राष्ट्रपति भवन में निवास दे दिया जाये. और प्रधानमंत्री आवास 7 रेसकोर्स की बजाय तीन मूर्ति भवन को बना दिया जाये. इससे बहुत सारे बंगले खाली हो जायेंगे और सुरक्षा व्यवस्था भी आसान हो जायेगी.
लुटियन जोन के बंगलों की हेरिटेज वैल्यू है. राजनीतिज्ञों, पूंजीपतियों और अफसरों के लिए इन बंगलों में रहना प्रतिष्ठा का कारण बन जाता है. इसी वजह से इन बंगलों में रहने के लिए इतनी मारा-मारी है. नियम यह कहता है कि राजनीतिज्ञों को पद छोड़ते ही इन बंगलों को खाली कर देना चाहिए, लेकिन कौन मानता है? 5 मार्च 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक दिशा-निर्देश में कहा था कि किसी भी मंत्री को पद छोड़ने के एक माह के अंदर सरकारी आवास छोड़ देना चाहिए. अगर वह ऐसा करने में असफल रहता है, तो लोकसभा अध्यक्ष, सभापति को इस पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए.
पिछले साल बिहार के पूर्व राज्यपाल बूटा सिंह को अपने सरकारी बंगले में रहने के लिए एक लाख रुपये महीने किराया देने का निर्देश दिया गया था. इस पर बूटा सिंह ने पीएमओ में दरखास्त देकर कहा था कि वह इतना किराया नहीं दे सकते क्योंकि उनको मात्र 60 हजार रुपये महीने पेंशन मिलती है. तत्कालीन सरकार ने उन पर कृपा की, लेकिन उनका किराया कम नहीं हो पाया. आरटीआइ से मिली सूचना के मुताबिक 22 पूर्व मंत्रियों ने अपने सरकारी आवास खाली नहीं किये हैं और वर्षों से इनमें जमे हैं. इनमें ए राजा, मुकुल राय, सीपी जोशी, दयानिधि मारन, मुकुल वासनिक, अगाथा संगमा, सुदीप बंद्योपाध्याय, सुल्तान अहमद, सौगत राय और शिशिर अधिकारी आदि शामिल हैं.
असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई, यूआइडीआइए के चेयरमैन नंदन नीलेकणि, राज्यसभा सांसद मुरली देवड़ा, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को सरकार ने अक्तूबर 2014 तक के लिए रियायत दे दी है. आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल को सरकारी आवास खाली करने के लिए अब तक चार नोटिस दिये जा चुके हैं, लेकिन उन्होंने एक का भी जवाब नहीं दिया. आप के नेता मनीष सिसोदिया को भी सरकारी नोटिस मिल चुका है.
शहरी विकास मंत्रालय ने सभी पूर्व मंत्रियों को 26 जून तक सरकारी आवास खाली करने का नोटिस दिया है. इस बार कहा गया है कि लुटियन जोन में सिर्फ मंत्रियों को ही बंगले आवंटित किये जायेंगे.
साभार: दि इकोनॉमिक टाइम्स