नयी दिल्ली : चीफ जस्टिस के खिलाफ कांग्रेस के अभियान को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ उसके महाभियोग प्रस्ताव को खारिज कर दिया. राज्यसभा के सभापति ने कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों द्वारा चीफ जस्टिस के खिलाफ दिये महाभियोग के नोटिस में ठोस कारणों की कमी बताते हुए सोमवार को उसे खारिज कर दिया. जैसे ही इसकी खबर आयी, कांग्रेस नेता पीएल पुनिया ने इस पर आश्चर्य और नाराजगी जतायी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस और अन्य दल विशेषज्ञों की राय लेने के बाद इस पर आगे बढ़ेंगे. वहीं, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि उपराष्ट्रपति ने बिल्कुल सही फैसला किया है. उन्होंने विचार के लिए दो दिन लिये, वह वक्त भी नहीं लेना चाहिए था. जैसे ही यह प्रस्ताव आया, उसे खारिज कर देना चाहिए था.
This is a really important matter. We don't know what was the reason for the rejection. Congress & other opposition parties will talk to some legal experts & take the next step: PL Punia, Congress on rejection of Impeachment Motion notice against CJI Dipak Misra. pic.twitter.com/8YFu1Fq2tC
— ANI (@ANI) April 23, 2018
नायडू ने इस संबंध में शीर्ष कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों के साथ गहन विचार-विमर्श के बाद यह फैसला लिया. सूत्रों का कहना है कि उपराष्ट्रपति नायडू ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अपने यात्रा कार्यक्रमों में बदलाव किया और इस मामले में कई विशेषज्ञों के साथ सलाह मश्विरा किया. कांग्रेस सहित सात राजनीतिक दलों ने महाभियोग नोटिस दिया था. यह पहली बार है, जब किसी वर्तमान प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग का नोटिस दिया गया था.
उपराष्ट्रपति के फैसले से कांग्रेस बेहद नाराज है. पार्टी के नेता पीएल पुनिया ने कहा, ‘सचमुच यह एक महत्वपूर्ण विषय है. हमें नहीं मालूम प्रस्ताव को क्यों खारिज कर दिया गया. कांग्रेस और अन्य विरोधी दल इस विषय पर कानून के विशेषज्ञों की राय लेगी और उसके बाद अगला कदम उठायेगी.’उधर, भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाकर कांग्रेस ने आत्महत्या की है. उन्होंने कहा कि उपराष्ट्रपति ने बिल्कुल सही फैसला किया है. पहले ही दिन इस प्रस्ताव को खारिज कर देना चाहिए था. राज्यसभा के सभापति ने फैसला करने में दो दिन लगा दिये, जो उन्हें नहीं लगाना चाहिए था.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष के महाभियोग के नोटिस को खारिज करते हुए श्री नायडू ने कहा कि प्रस्ताव में न्यायमूर्ति के खिलाफ लगाये गये आरोप न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमतर आंकने वाले हैं. नायडू ने अपने आदेश में कहा कि उन्होंने न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ लगाये गये प्रत्येक आरोप के प्रत्येक पहलू का विश्लेषण करने के बाद पाया कि आरोप स्वीकार करने येाग्य नहीं हैं. उन्होंने आरोपों की विवेचना के आधार पर आदेश में लिखा, ‘इन आरापों में संविधान के मौलिक सिद्धातों में शुमार न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कम करने वाली प्रवृत्ति गंभीर रूप से दिखती है.’
नायडू ने कहा कि वह इस मामले में शीर्ष कानूनविदों, संविधान विशेषज्ञों, संसद के दोनों सदनों के पूर्व महासचिवों और देश के महान्यायवादी केके वेणुगोपाल, पूर्व महान्यायवादी के पारासरन तथा मुकुल रोहतगी से विचार-विमर्श के बाद इस फैसले पर पहुंचे हैं. उन्होंने विपक्षी सदस्यों द्वारा पेश नोटिस में खामियों का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें सदस्यों ने जो आरोप लगाये हैं, वे स्वयं अपनी दलीलों के प्रति स्पष्ट रूप से अनिश्चिचत हैं.
उन्होंने कहा कि सदस्यों ने न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ कदाचार के आरोप को साबित करने के लिए पेश किये गये पहले आधार में कहा है, ‘प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट में वित्तीय अनियमितता के मामले में प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि प्रधान न्यायाधीश भी इसमें शामिल रहे होंगे.’ इस आधार पर सदस्यों ने कहा कि देश के प्रधान न्यायाधीश को भी मामले की जांच के दायरे में रखा जा सकता है.
नायडू ने आरोपों की पुष्टि के लिए इसे अनुमानपरक आधार बताते हुए कहा कि देश के प्रधान न्यायाधीश को पद से हटाने की मांग करने वाला प्रस्ताव महज शक और अनुमान पर आधारित है. जबकि संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत न्यायाधीश को पद से हटाने लिए कदाचार को साबित करने वाले आधार पेश करना अनिवार्य शर्त है. इसलिए पुख्ता आधारों के अभाव में यह स्वीकार किये जाने योग्य नहीं हैं.
नायडू ने सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों की सुनवाई हेतु विभिन्न पीठों को उनके आवंटन में प्रधान न्यायाधीश द्वारा अपने प्रशासनिक अधिकारों का दुरुपयोग करने के आरोप को भी अस्वीकार कर दिया. उन्होंने कहा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने अपने फैसले में निर्धारित कर दिया है कि प्रधान न्यायाधीश ही मुकदमों के आवंटन संबंधी ‘रोस्टर का प्रमुख’ है. ऐसे में अधिकारों के दुरुपयोग का आरोप भी स्वीकार्य नहीं है.
राज्यसभा के सभापति ने कहा कि पुख्ता और विश्वसनीय तथ्यों के अभाव में पेश किये गये प्रस्ताव को स्वीकार करना अनुपयुक्त और गैरजिम्मेदाराना होगा. उन्होंने इस तरह के आरोप लगाने से बचने की सदस्यों को नसीहत देते हुए कहा, ‘लोकतांत्रिक व्यवस्था के संरक्षक होने के नाते इसे वर्तमान और भविष्य में मजबूत बनाना तथा संविधान निर्माताओं द्वारा सौंपी गयी इसकी समृद्ध एवं भव्य इमारत की नींव को कमजोर नहीं होने देना हम सबकी यह सामूहिक जिम्मेदारी है.’