नयी दिल्ली:पूर्व केंद्रीय कोयला सचिव पीसी पारख ने सीबीआइ निदेशक रंजीत सिन्हा पर आरोप लगाया है कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को खुश करने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई की है. सवाल किया है कि सीबीआइ प्रमुख ने कोल ब्लॉक आवंटन में साजिश के मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का उल्लेख क्यों नहीं किया, जबकि संबंधित मामले में अंतिम निर्णय उन्होंने ने ही किया था.
पारख ने इस बात का उल्लेख अंगरेजी में लिखी अपनी पुस्तक ‘क्रूसेडर ऑर कॉन्सपिरेटर, कोलगेट एंड अदर ट्रथ’ (नायक या खलनायक : कोलगेट एवं अन्य सत्य) में किया है. हालांकि पुस्तक में प्रधानमंत्री सिंह के प्रति निष्पक्षता बरतते हुए लिखा है कि उनसे पीएमओ ने कभी किसी मामले में कोई सिफारिश नहीं की. पुस्तक का विमोचन सोमवार को होगा.
दिग्विजय सिंह ने संजय बारु और इस किताब को बीजेपी प्रायोजित बताया है. उन्होंने कहा कि आजकल नरेंद्र मोदी जी का पैसा खूब बह रहा है. ये किताबें बीजेपी प्रायोजित हैं.
निशाने पर निदेशक : पुस्तक में पारख ने मंत्रियों और राजनीतिज्ञों के साथ काम करते हुए नौकरशाही के सामने पेश आने वाली समस्याओं को उजागर किया है. सीबीआइ निदेशक सिन्हा पर तथ्यों और कायदे कानून को ‘ठीक- ठीक समङो’ बगैर कार्रवाई करने का आरोप लगाया है.
स्वायत्त हुआ भी तो क्या होगा : पारख ने आगाह किया कि जब तक इस संगठन के मुखियाओं का को दूसरा एजेंडा होगा. वे अपनी स्वायत्ता का प्रयोग करने को तैयार नहीं होंगे. ऐसे में जांच एजेंसी को कितना भी स्वायत्त कर दिया जाये, वह स्वायत्त नहीं रहेगी. बगैर निगरानी व जवाबदेही के आपराधिक मामले में कार्रवाई शुरू करने का बेलगाम अधिकार सीबीआइ को देना एक ऐसे इलाज के समान होगा जो बीमारी से भी ज्यादा दुखदाई होगा.
सीबीआइ से सवाल
पारख ने पुस्तक में लिखा है कि तालाबीरा कोयला परियोजना के लिए हिंडाल्को को लाने का निर्णय उनका था. इस मामले पर पीएमओ द्वारा उन पर कोई दबाव नहीं डाला गया था, पर इस मुद्दे पर नौ सवाल उठाये हैं, जो निम्न प्रकार है:-
1. एफआइआर में उनका नाम शामिल करने से पहले पीएमओ की फाइलों की छानबीन क्यों नहीं की गयी.
2. कोई भी सचिव किसी विषय में संबंधित मंत्री को केवल सिफारिश भेजता है. अंतिम निर्णय मंत्री को करना होता है. यदि मामले में साजिश थी तो एफआइआर में पीएम का नाम क्यों नहीं.
3. क्या कोई कानून किसी सरकारी अधिकारी को एक ऐसे नागरिक (बिड़ला से मुलाकात) से मिलने से रोकता है, जो सरकार के निर्णय से खुद को सताया हुआ महसूस कर रहा हो.
4. क्या किसी पीड़ित पक्ष के आवेदन पर किसी सरकारी अधिकारी द्वारा किसी मामले पर पुनर्विचार करना षड्यंत्र या भ्रष्टाचार है.
5. यह सूचना कहां से मिली कि तालाबीरा-2 को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को आवंटित करने के लिए आरक्षित रखा गया था. यदि यह सच है तो हिंडाल्को कैसे आवेदन कर सकती थी.
6. यदि हिंडाल्को को तालाबीरा-2 का आवंटन अनुचित लाभ पहुंचाने का मामला है, तो निजी कंपनियों के पक्ष में किये गये दो सौ ब्लॉकों के आवंटन को इस श्रेणी में क्यों नहीं रखा गया.
7. हिंडाल्को के सिफारिशी चिट्ठी लिखने के लिए ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक पर सवाल खड़ा किया गया, सिर्फ इसलिए कि कंपनी के पक्ष में सिफारिश की. क्या एक सीएम अपने प्रदेश में रोजगार सृजन के लिए ऐसा नहीं कर सकता.
8. आशंका है कि कोलगेट की जांच का भी अंजाम बोफोर्स जैसा होगा, जिसमें वास्तविक दोषी बच निकलेंगे. लगता है जांच एजेंसी कोई ऐसी गहरी चाल चल रही है, जो मेरी समझ से परे है.
9. एजेंसी में सच्चई का पता लगाने की क्षमता नहीं. दोषारोपण और दोषमुक्त करने में महारथ है. क्योंकि सीबीआइ में लगभग सभी कर्मचारी पुलिस अधिकारी हैं, जिन्हें नीति निर्माण व क्रियान्वयन का बहुत कम या न के बराबर अनुभव है. मामला कोर्ट में है, नहीं तो देते जवाब हम बिंदुवार सभी आरोपों का जवाब दे सकते हैं, लेकिन चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में है, इस लिए मैं कुछ नहीं कहूंगा. यह पुस्तक ‘‘खांटी सरकारी बाबू की किताब’’ है. इसमें लेखक अपने ही महिमामंडन में लिप्त है. रंजीत सिन्हा, सीबीआइ निदेशक