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कागज पर ही न रह जाये यूपीए!

-आकार पटेल- ओपिनियन पोल नरेंद्र मोदी को 195 सीट दे रहे हैं. यह अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में मिली भाजपा को मिली सीटों से भी ज्यादा है. यह अविश्वसनीय सफलता है. ओपिनियन पोल लोकसभा में भाजपा और कांगे्रस की सीटों की संख्या को पलट दे रहे हैं. वर्तमान लोकसभा में कांगे्रस के 200 के […]

-आकार पटेल-

ओपिनियन पोल नरेंद्र मोदी को 195 सीट दे रहे हैं. यह अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में मिली भाजपा को मिली सीटों से भी ज्यादा है. यह अविश्वसनीय सफलता है. ओपिनियन पोल लोकसभा में भाजपा और कांगे्रस की सीटों की संख्या को पलट दे रहे हैं. वर्तमान लोकसभा में कांगे्रस के 200 के करीब सांसद हैं और भाजपा के 110 के करीब. करीब 90 सीटों का अंतर है. एनडीटीवी के सर्वे के अनुसार कांगे्रस को 100 के करीब सीटें मिलेंगी. इससे दोनों पार्टियों के बीच 100 सीटों का अंतर हो जाएगा.

मोदी की सफलता पश्चिम और मध्य भारत के राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, और कर्नाटक में वोटों के बिखराव को रोकने से हुआ है. ये वही राज्य हैं जहां भाजपा का प्रभाव बहुत ज्यादा है इसलिए यह कोई आश्चर्य नहीं है. इसके साथ ही यह भी भविष्यवाणी की गई है कि उत्तर प्रदेश की 80 में से 40 सीटों और बिहार की 40 में से 24 सीटों पर भाजपा का कब्जा होगा. यहीं पर मोदी का व्यक्तिगत प्रभाव देखने को मिल रहा है.

कुछ हद तक यूपी मुझे अचरज में नहीं डाल रहा क्योंकि मुजफ्फरनगर दंगों की वजह से बड़ी संख्या में किसानों का झुकाव फिर से भाजपा की तरफ हुआ है. अचरज में डालनेवाला बिहार है. इस राज्य में सुशील मोदी और मंगल पांडे के नेतृत्व में भाजपा की कमान अगड़ी जातियों के हाथ में थी. जदयू के साथ गठबंधन ने इस पार्टी के साथ कुर्मी और अन्य मझोले जातियों को इसके साथ जोड़ा. इस गठबंधन को चुनाव में सफलता भी मिली. शुरू से यह बात साफ थी कि गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका जदयू के पास थी.

अगर मोदी इस गंठबंधन से बने समीकरण को उलटने और पहले से स्थापित बड़े प्रतियोगी लालू प्रसाद को मात देने में सफल होते हैं तो यह उनके लिए किसी भी राज्य में सबसे बड़ी सफलता होगी. बिहार को नीतीश कुमार के अच्छे शासन के लिए जाना जाता है. वहां के मतदाता भी इस बात को मानते हैं. अगर इस समय वोटर मोदी के लिए नीतीश को छोड़ते हैं तो इसका मतलब है कि इस गुजराती में कुछ विशेष जरूर है.

बिहार के बारे में मेरी पहले की धारणा थी कि ओडि़शा की तरह वहां के भी परिणाम होंगे. ओडि़शा में नवीन पटनायक के नेतृत्व में बीजू जनता दल को भाजपा के साथ गठजोड़ करके उसी तरह सफलता मिली. जब गठबंधन टूटा तब राज्य से भाजपा का सफाया हो गया क्योंकि वहां उसका कोई अपना आधार नहीं था. एनडीटीवी के पोल के अनुसार यह सिलसिला जारी रहेगा और पटनायक को 21 में से 17 सीटें मिलेंगी. कांगे्रस को तीन और मोदी, जबरदस्त प्रचार के बावजूद सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ेगा.

पोल में सोनिया गांधी के लिए बहुत कम ही अच्छी खबर है. सिर्फ पंजाब में ही चमक दिख रही है जहां कांगे्रस को आठ सीटें मिलने की संभावना है. इसके अलावा कांगे्रस के लिए अच्छी खबर सिर्फ उन्हीं राज्यों से है जहां मोदी से लड़ाई नहीं है. ऐसे राज्यों में केरल है जहां 13 सीटों के साथ कांगे्रस के नेतृत्व वाली यूडीएफ वाम मोर्चे से आगे रहेगी और असम. कांगे्रस को सबसे बड़ा झटका आंध्र प्रदेश में लगेगा जहां सीमांध्र से जगन मोहन रेड्डी को मदद मिल रही है, साथ ही भाजपा-तेलगु देशम गठबंधन की ओर भी वोटरों का झुकाव है. तेलंगाना पर कांगे्रस ने जो जुआ खेला है उसकी सजा सीमांध्र में मिलेगी और तेलंगाना में भी अच्छी सफलता की उम्मीद कम है.

सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी को जीवित करने और तीन चुनावों मंे सीटों की संख्या को बढ़ाने के बाद, आज फिर से कांगे्रस की स्थिति 1990 के उत्तरार्द्ध वाली हो गई है. पिछले दशक के एनडीए की तरह ही यूपीए भी आने वाले समय में सिर्फ कागज पर रह जायेगा क्योंकि मोदी की वजह से क्षेत्रीय पार्टियां अपनी रणनीति बदलेंगी.

अंत में, हालांकि मोदी को बहुमत जुटाने के लिए तीन या चार दर्जन सांसदों की जरूरत होगी लेकिन यह उनके लिए बहुत मुश्किल नहीं होगा. इस समय 185 वैसे सीट हैं जो तटस्थ हैं और मई के बाद भी उनके तटस्थ रहने की संभावना है. इनमें तमिलनाडु की जयललिता और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी को चुनाव में बड़ी सफलता की उम्मीद है. ये दोनों भी मोदी को आसानी से सरकार बनाने दे सकती हैं. मोदी सरकार का स्वरूप भी कुछ-कुछ वैसा ही होगा जैसा आज मनमोहन मंत्रिमंडल का है.

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