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सही न्यूट्रिशन है जरूरी

भोजन का मतलब सिर्फ पेट भरनेवाले आहार ही नहीं. आपके भोजन में वह सब कुछ होना चाहिए, जिसकी जरूरत आपके शारीरिक अंगों को है. तभी आप स्वस्थ रहेंगे. नेशनल न्यूट्रिशन वीक (1-7 सितंबर) पर दिल्ली व पटना से हमारे आहार विशेषज्ञ दे रहे हैं संतुलित खान-पान की विशेष जानकारी. शिशुओं की जरूरत स्तनपान शिशु का […]

भोजन का मतलब सिर्फ पेट भरनेवाले आहार ही नहीं. आपके भोजन में वह सब कुछ होना चाहिए, जिसकी जरूरत आपके शारीरिक अंगों को है. तभी आप स्वस्थ रहेंगे. नेशनल न्यूट्रिशन वीक (1-7 सितंबर) पर दिल्ली व पटना से हमारे आहार विशेषज्ञ दे रहे हैं संतुलित खान-पान की विशेष जानकारी.
शिशुओं की जरूरत
स्तनपान शिशु का सर्वोत्तम पोषण है. जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान की शुरुआत शिशु के पूरे जीवन के लिए बेहतर साबित होती है. छह माह की उम्र तक सिर्फ मां का दूध पीने से बच्चे की कई बीमारियों से रक्षा होती है. इसे बढ़ावा देने के कई प्रयास किये जा रहे हैं और इसमें वृद्धि भी हुई है, लेकिन अब भी इसे बढ़ावा देने के लिए और प्रयास किये जाने की जरूरत है.
छह माह बाद शिशु को अन्य आहार दे सकते हैं. छ: माह से ऊपर के बच्चे की शारीरिक जरूरतें बढ़ती हैं, इसलिए मां के दूध के साथ ऊपरी आहार का शुरुआत करना जरूरी है.
हमारे शरीर को काम करने के लिए जो एनर्जी चाहिए, वह भोजन से ही मिलती है. लेकिन एनर्जी देनेवाले न्यूट्रिएंट्स के अलावा भी शरीर की बहुत-सी जरूरतें हैं, वह भी भोजन से ही प्राप्त करनी होती हैं. अगर शरीर की ये जरूरतें पूरी न हों, तो इनकी कमी से शरीर रोगों की चपेट में आ जाता है. इसलिए भोजन का पौष्टिक होना बेहद जरूरी है.
संतुलित भोजन की परिभाषा
अक्सर लोग समझते हैं कि घर का बना खाना, जिसमें ज्यादा तेल-मसाला न हो, वही संतुलित भोजन होता है, जबकि ऐसा नहीं है. संतुलित भोजन का तात्पर्य ऐसे भोजन से है, जिसमें वे सभी तत्व मौजूद हों जिनकी जरूरत शरीर को होती है. सभी तत्वोंवाला भोजन एक साथ नहीं लिया जा सकता. अत: इसके लिए आहार की प्लानिंग जरूरी है.
जैसे-एक दिन में अलग-अलग चीजों को भोजन में शामिल करना. यह इसलिए जरूरी है, क्योंकि इन न्यूट्रिएंट्स की कमी से भी शरीर में कई प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं और शरीर कुपोषित हो जाता है. संतुलित भोजन में संतुलित मात्र में न्यूट्रिएंट्स होने चाहिए.
दो तरह के होते हैं न्यूट्रिएंट्स
भोजन से मिलनेवाले न्यूट्रिएंट्स को दो भागों में विभाजित किया जाता है, जो इस प्रकार हैं
मैक्रोन्यूट्रिएंट्स : इसमें प्रोटीन, फैट और काबरेहाइड्रेट होते हैं. ये शरीर को एनर्जी देते हैं, साथ ही शरीर के लिए बेहद जरूरी भी हैं. मस्तिष्क के लिए फैट जरूरी है, इसके अलावा शरीर के जोड़ों में चिकनाहट बनाने के लिए भी फैट चाहिए. प्रोटीन शरीर के इम्यून सिस्टम के लिए जरूरी है.
प्रोटीन हार्मोंस, स्किन, अंगों आदि के लिए भी काफी जरूरी है. यह शरीर में टिश्यू का निर्माण करता है और पुराने टिश्यू को रिपेयर करने में भी अहम भूमिका निभाता है. काबरेहाइड्रेट को एनर्जी का मुख्य स्नेत भी कहा जाता है.
माइक्रोन्यूट्रिएंट्स : इसमें विटामिन्स और मिनरल्स होते हैं. इन्हें माइक्रोन्यूट्रिएंट्स इसलिए कहते हैं, क्योंकि शरीर को इनकी जरूरत मैक्रोन्यूट्रिएंट्स के मुकाबले बहुत कम होती है. विभिन्न अंगों को विकसित होने के लिए इनकी जरूरत होती है. कैल्शियम और आयरन भी मिनरल्स हैं.
दूध, पनीर, केला आदि में कैल्शियम भरपूर मात्र में होता है. आयरन की मात्र को बढ़ाने के लिए भोजन में हरी पत्तेदार सब्जियां, मछली, मांस, अंडा आदि शामिल कर सकते हैं. फल और सब्जियां विटामिन्स और मिनरल्स के अच्छे स्नेत हैं. सब्जियों में फाइबर के अलावा विटामिन ए और सी भी भरपूर मात्र में होते हैं.
स्वस्थ रखते हैं ये पोषक तत्व
भोजन न हो ज्यादा मसालेदार
कुछ सब्जियों को हम कच्चा भी प्रयोग कर सकते हैं, जैसे खीरा, टमाटर, गाजर आदि. यदि सब्जियों को पकाना है, तो इसमें मसाले, घी या तेल का प्रयोग कम-से-कम करें. मसाले और तेल का प्रयोग अधिक करने से इनकी पौष्टिकता कम हो जाती है और शरीर को जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते.
आजकल भोजन पकाने की कई ऐसी विधियां प्रचलित हो चुकी हैं, जिनसे पोषक तत्व नष्ट नहीं होते, जैसे-ग्रिल्ड फूड, रोस्टेड आदि. भाप में पका हुआ भोजन सबसे ज्यादा पौष्टिक माना जाता है. इसलिए चावल, दलिया आदि को कम पानी में भाप में पका कर प्रयोग करें. कुछ ऐसी रेसेपी भी आ चुकी हैं, जिन्हें कम तेल-मसालों के प्रयोग से स्वादिष्ट बनाया जा सकता है.
बातचीत व आलेख : कुलदीप तोमर
यह रोग आयरन की कमी से होता है. बार-बार मलेरिया होने या महिलाओं में माहवारी में अधिक खून बहने से भी यह हो सकता है.
किशोरावस्था में दुष्प्रभाव : किशोरों में यह रोग होने पर इसका असर पूरे जीवन में दिखता है. कार्यक्षमता और भूख कम हो जाती है. सही पोषण नहीं मिलने से आयु के अनुसार शारीरिक वृद्धि नहीं होती है. महिलाओं में यह रोग आगे जाकर गर्भावस्था को भी प्रभावित करता है. बच्चे कम वजन के पैदा होते हैं.
बचाव : संतुलित आहार लें. मलेरिया से बचाव करें. सप्ताह में एक बार आयरन की गोली लें. बाजरा, अंकुरित दालें, हरी पत्तेदार सब्जियां अंडा, मांस, मछली इत्यादि ज्यादा-से-ज्यादा करें. विटामिन-सी युक्त खाद्य पदार्थ जैसे-नीबू, आंवला, संतरा आदि लें.
कुछ ऐसा हो आपका खाना 15 साल तक के बच्चों के लिए
नाश्ते में अंकुरित अनाज दें. इससे बच्चों का मानसिक विकास तेजी से होता है. इसके अलावा स्मरण शक्ति भी बढ़ती है. इसके अलावा एक गिलास दूध और फल भी दे सकते हैं. बच्चों के टिफिन या लंच में आप एक कटोरी दाल, एक रोटी, चावल और दही भी दे सकते हैं. शाम के समय फलों का जूस या फल देना भी बेहतर होता है. रात के समय दोपहर की तुलना में हल्का खाना दें. शाम में हरी सब्जियों के साथ चपाती दे सकते हैं.
15-26 साल तक के लिए
इस उम्र में शरीर तेजी से विकसित होता है. ऐसे में इस आयु के बीच के लोगों का आहार ज्यादा होना चाहिए, क्योंकि इस उम्र में पाचन क्रिया भी अत्यधिक सक्रिय होती है. इस उम्र में दिन में तीन बार खाना खाने के बजाय यदि थोड़ी-थोड़ी मात्र में चार या पांच बार खाना खाया जाये, तो ज्यादा बेहतर रहेगा.
26-55 साल तक के लिए
इस उम्र के लोग नाश्ते में उबला अंडा, कम फैटयुक्त दूध के साथ दो ब्रेड खा सकते हैं. इसके अलावा सुबह के समय फलों का जूस भी सही रहेगा. दोपहर के खाने में एक कटोरी सब्जी, एक कटोरी दाल, तीन-चार चपाती, एक कटोरी चावल और दही का सेवन कर सकते हैं.
शाम के समय वेजिटेबल सूप या कोई हेल्दी ड्रिंक्स जैसे-ग्रीन टी आदि ले सकते हैं. रात के खाने में हरी सब्जी, सलाद और चपाती ले सकते हैं. यदि नॉनवेज खाते हैं, तो डिनर में नॉनवेज भी ले सकते हैं, लेकिन कम मात्र में लेना ही ठीक है.
55 साल से ऊपर
इस आयु के लोग काम के हिसाब से अपने भोजन का चयन करें. यदि दिनचर्या काफी व्यस्त है, तो आप हेवी खाना खा सकते हैं, अन्यथा हल्का भोजन ही लें, ताकि पचाने में आसानी हो सके. वैसे नाश्ते में फलों का जूस या लो फैट मिल्क ले सकते हैं. दोपहर के भोजन में दाल, रोटी, चावल व हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन कर सकते हैं. शाम के समय चाय या
कॉफी ले सकते हैं. रात में हल्का भोजन ही करें.
बचें कीटनाशक से
आजकल बाजार में सामान्य से बड़े आकार की सब्जियां भी दिखती हैं. इन्हें लेने से बचें. इनमें केमिकल का प्रयोग अधिक होता है. इसी कारण इनका आकार सामान्य से अधिक हो जाता है.
आजकल किसान सब्जियों पर कीटनाशक का प्रयोग भी अधिक करने लगे हैं. इससे सब्जियों का उत्पादन तो बढ़ जाता है, लेकिन ये कीटनाशक शरीर में जाकर गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं. इनसे कैंसर जैसे रोगों के होने का खतरा भी होता है. अत: सब्जियों को प्रयोग से पहले अच्छी तरह से धो लें. इससे काफी हद तक कीटनाशक धुल जाएंगे.
पहले यह माना जाता था कि सब्जी को काटने के बाद नहीं धोना चाहिए. इससे पोषक तत्व धुल कर बह जाते हैं. आज के समय में पोषक तत्वों से ज्यादा जरूरी इन कीटनाशकों से बचाव है. अत: सब्जियों को काटने के बाद भी धोएं. पानी में थोड़ा सिरका मिला कर धोने से भी कीटनाशक निकल जाते हैं. गोभी जैसी सब्जियों को पानी में डाल कर हल्का गरम करके धोने से भी कीटनाशक निकल जाते हैं. जिन सब्जियों को छील कर इस्तेमाल कर सकते हैं उन्हें छील कर ही प्रयोग करें, तो बेहतर है.
भोजन संबंधी कुछ भ्रांतियां-
– कुछ लोगों को भ्रांति होती है कि सर्दी होने पर फल वगैरह नहीं खाने चाहिए जबकि ऐसा नहीं है. कुछ फलों को खाया जा सकता है. इससे शरीर को विभिन्न जरूरी पोषक तत्व मिलते रहते हैं.
– कुछ लोग ऑपरेशन के बाद दूध और दाल खाने से मना करते हैं, जबकि यह गलत है. दूध से शरीर को कई पोषक तत्व प्राप्त होते हैं. दाल से शरीर को प्रोटीन प्राप्त होता है. ये चीजें रिकवरी में मदद करती हैं.
– डायबिटिक लोगों को भी बिल्कुल सादा खाना खाने के लिए दिया जाता है, जो गलत है. इससे उनके शरीर के लिए जरूरी अन्य पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं. डायटीशियन से सलाह लेकर उन्हें भी उचित और संतुलित भोजन दिया जाना चाहिए.
बातचीत : अजय कुमार

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