-अनुप्रिया अनंत-
कलाकार : शाहरुख़ खान , दीपिका, शयोनी, योगेंद्र टिकु, वालुसचा, श्रिया पिलगावनकर
लेकिन आर्यन के पास वे पांच मिनट भी नहीं. आर्यन एक एगोइस्टिक सुपरस्टार है. गौरव के दामन जब सच्चाई आती है तो एक फैन का प्यार नफरत में किस कदर तब्दील होता है. यही इस फैन की कहानी है. शाहरुख खान गौरव के रूप में जब जब परदे पर आते हैं चौकाते हैं. उन्होंने पूरी शिद्दत से यह कोशिश की है कि वे अपने कंफर्ट जोन से बाहर आकर अभिनय करें. यह उनके परफॉरमेंस की खासियत है कि वे वाकई साबित नहीं होने देते कि वे शाहरुख खान हैं. दिल्ली के लड़के के किरदार और लहजे में उन्होंने बरकत प्रदान की है. फिल्म में एक सुपरस्टार और एक फैन के बीच की नजदीकी और दूरियों की खाई को बखूबी निभाया है.
फिल्म का संवाद है ‘फैन है तो तुम हो फैन नहीं तो कुछ भी नहीं. ’ एक सुपरस्टार हमेशा इस बात को दोहराते नजर आते हैं. वे हर सार्वजनिक स्थानों पर यह बातें दोहराते नजर आते हैं कि थैंक्स टू माई फैन. जब वे यह बात दोहराते हैं तो शायद वह इस बात से अनजान होते हैं कि कहीं न कहीं उनकी इन बातों का असर किसी फैन के दिल और दिमाग पर हो रहा होता है. इन्हीं में से एक है गौरव का किरदार, जिसकी बस एक छोटी सी ख्वाहिश है. इस फ़िल्म में निर्देशक ने फैन की जुबान को एक सुपरस्टार तक पहुंचाई है. शाहरुख खान ने अपने किरदार को बखूबी जिया है. फिल्म की शुरुआत बेहद रोचक है और दर्शकों को जरूर पसंद आएगी. मगर फिल्म की कुछ कमियां हैं जो काफी चुभती हैं.
इस फिल्म के सुपरस्टार कभी अपने हुजूम के साथ नजर नहीं आता. फिल्म में फैन के कारनामे हो रहे हैं लेकिन सिर्फ आर्यन अकेले सब कुछ सुलझा रहा. यह बातें लॉजिकल नहीं लगी है. चूंकि सुपरस्टार अकेले कभी नहीं होते. लॉजिक को भूल जायें तो गौरव के कारनामे संभव नजर आते हैं. फिल्म में भावनात्मक पहलू को और मजबूती से प्रस्तुत किया जाता तो दर्शक गौरव के साथ अधिक कनेक्ट कर पाते. एक सुपरस्टार का निहत्था होना भी एक बड़ा सवाल खड़ा करता है. अगर इसे और विश्वसनीय तरीके से दर्शाया जाता तो फिल्म दिल को छूती. कम से कम बॉलीवुड की जिंदगी में किसी आम आदमी का आसानी से दखल हो जाना इतना आसान नहीं है. कहानी में दृश्यों और परिस्थियों के माधयम से इसे दर्शाया जा सकता था. यह कमियां खलती हैं.
एक तरफ गौरव फेसबुक और ट्विटर के दौर की बात करता है और उसी फिल्म में हम देखते हैं की गौरव की गर्लफ्रेंड नेहा उसके कैफे में आती है चैटिंग के लिए. आज के दौर में फोन रहते कैफे कौन जाता है. आर्यन कभी गौरव. गौरव कभी आर्यन बनता है. यहां निर्देशक शायद यह स्थापित करना चाहते होंगे कि एक स्टार की जर्नी आम ही होती है. लेकिन हर किसी की मेहनत उन्हें मुकाम दिलाती है. यह एक तरह से आई ओपनर भी है कि जो लोग सिर्फ फैन होने का दावा करते और सारी जिंदगी सिर्फ किसी की पूजा में व्यर्थ कर देते.
यह उचित नहीं है. फैन कई लिहाज से अलग विषय, अप्रोच के साथ बनी फिल्म है. लेकिन कई जगह संवाद न होना खलता है. फिल्म के चेजिंग दृश्य हद से अधिक रखे गए हैं. शायद इसकी बड़ी वजह है कि शाहरुख के लिए यह लकी चार्म रहा है तो शायद इस वजह से अधिक दृश्य हैं. फिल्म में दर्शक अधिक कनेक्ट महसूस करते अगर फिल्म में इमोशनल दृश्य अधिक होते. फ़िल्म के संवाद हबीब फैसल और शरत ने लिखे हैं लेकिन इसके बावजूद कमजोर संवाद हैं. खासियत यह है कि निर्देशक ने इसे रीयलिस्टिक अप्रोच देने का भरसक प्रयास किया है.इस फ़िल्म में एक फैन के जूनून के हद की कहानी बयां की गयी है. नि:संदेह यह फिल्म शाहरुख खान के फैंस के लिए ट्रीट है.