पटना में दशहरे के दिन रावण दहन के मौके पर हुए हादसे ने हमारी धार्मिक और प्रशासनिक समझदारी पर लगे सवालिया निशानों को ज्यादा गहरा कर दिया है. बेहतर होगा कि हम गांधी मैदान जैसे सार्वजनिक स्थलों पर प्रवेश शुल्क लें और पटना के इस गौरव की देखरेख का अच्छा इंतजाम करें. ज्यादा गहराई से सोचने से लगता है कि विकास की केंद्रीकृत नीतियों ने हमारे शहरों को लोगों से भर दिया है और सुविधाओं के असमान वितरण से ज्यादा समस्या पैदा हो रही है.
धार्मिक स्थलों पर या संबंधित आयोजनों में अक्सर भगदड़ मचने की खबर आती है. क्या हमारे धर्मगुरुओं को इसका संज्ञान नहीं लेना चाहिए? कहने को तो राज्य सरकार ने कुछ प्रशासनिक अधिकारियों का तबादला कर दिया. लेकिन क्या यही समस्या का एकमात्र हल है? घटना का असल दोषी कौन है?
विनय भट्ट, हजारीबाग