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लंबित परियोजनाओं में ‘प्रगति’ फूंक रही नयी जान

वर्षों से ठप पड़े प्रोजेक्ट्स के आये अच्छे दिन देश भर में पुरानी और लंबित परियोजनाओं में मोदी सरकार नयी जान फूंक रही है. इनमें कोई योजना दस वर्ष पुरानी है, तो कोई 18 वर्ष़ अलग-अलग वजहों से ये लटकी हैं. दरअसल, प्रगति (प्रो एक्टिव गवर्नेंस एंड टाइमली इंप्लीमेंटेशन) के प्लेटफॉर्म पर प्रधानमंत्री सड़क, रेल, […]

वर्षों से ठप पड़े प्रोजेक्ट्स के आये अच्छे दिन
देश भर में पुरानी और लंबित परियोजनाओं में मोदी सरकार नयी जान फूंक रही है. इनमें कोई योजना दस वर्ष पुरानी है, तो कोई 18 वर्ष़ अलग-अलग वजहों से ये लटकी हैं. दरअसल, प्रगति (प्रो एक्टिव गवर्नेंस एंड टाइमली इंप्लीमेंटेशन) के प्लेटफॉर्म पर प्रधानमंत्री सड़क, रेल, मेट्रो, इस्पात, विद्युत क्षेत्र की बुनियादी संरचना परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा करते हैं.
हर महीने के चौथे बुधवार को अपराह्न 3:30 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पीएमओ में अन्य अधिकारियों के साथ बैठ कर देश भर में चल रहीं योजनाओं का जायजा लेते हैं. इनमें सड़क, रेल, मेट्रो, इस्पात, विद्युत क्षेत्र की बुनियादी संरचना परियोजनाएं शामिल होती हैं, जिन पर काम चल रहा है
कई एेसी भी योजनाएं होती हैं, जिन पर पहले काम हो रहा था और अब फंड की कमी, भू-अधिग्रहण और विस्थापन या अन्य किसी वजह से वे लंबित पड़ी हैं. दरअसल, मोदी सरकार ने पिछले साल इस बाबत एक नयी प्रणाली शुरू की, जिसे हम प्रगति के नाम से जानते हैं. प्रगति यानी प्रो एक्‍टिव गवर्नेंस एंड टाइमली इंप्लीमेंटेशन का छोटा रूप.
इसमें डिजिटल डेटा मैनेजमेंट, वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग और जिओ-स्पेशियल तकनीकों की मदद से भारत सरकार के सचिव और राज्यों के मुख्य सचिव एक मंच पर आते हैं. इसमें योजनाओं से संबंधि‍त मुद्दों से जुड़ी पूरी जानकारी, डेटा, विजुअल और ग्राउंड रिपोर्ट भी रहती है, जिसके आधार पर प्रधानमंत्री अधिकारियों के साथ उनके राज्यों में चल रही परियोजनाओं की समीक्षा करते हैं.
यही नहीं, अगर किसी योजना को तय समय में पूरा करने में किसी तरह की कोई दिक्कत आ रही हो तो प्रधानमंत्री उस राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश देते हैं कि वे अपने स्तर से योजना पूरा कराएं. अगर बात मुख्य सचिव के बस के बाहर की होती है, तो प्रधानमंत्री पीएमओ के स्तर से उस योजना को रफ्तार पकड़ाने की कोशिश करते हैं. गौरतलब है कि यह किसी प्रधानमंत्री की अपने तरह की पहली कोशिश है और यह खासा कामयाब भी रही है.
आंकड़ों पर गौर करें तो केंद्र और राज्य सरकार की 350 में से 108 योजनाएं पुनर्जीवित की जा चुकी हैं. तीन लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की बुनियादी संरचना की ये परियोजनाएं नागरिक उड्डयन सड़क, रेल, मेट्रो, इस्पात, विद्युत आदि क्षेत्रों से संबंधित हैं और चार से 15 वर्षों से लटकी पड़ी थीं.
बहरहाल, पीएमओ में डेढ़ से दो घंटों तक चलनेवाली प्रगति की इस बैठक में कैबिनेट सेक्रेटरी नृपेंद्र मिश्रा, अतिरिक्त प्रधान सचिव पीके मिश्रा, डिप्टी सेक्रेटरी अजीत कुमार के साथ प्रधानमंत्री बैठते हैं और उनके सामने लगी बड़ी-बड़ी इंटरैक्टिव स्क्रीन्स पर चर्चा में शामिल योजना से संबंधित अधिकारी के साथ लाइव कॉन्फ्रेंसिंग होती है. साथ ही दूसरी स्क्रीन्स पर योजना से जुड़ी तसवीरें और डेटा फ्लैश होती रहती हैं. इससे प्रधानमंत्री को योजना से जुड़े एक-एक बारीक पहलू की जानकारी मिलती है और वह अद्यतन स्थिति पर नजर बनाये रखते हैं.
यहां यह जानना जरूरी है कि जिस परियोजना पर चर्चा होनी होती है, उसकी विस्तृत रिपोर्ट 15 से 25 दिनों पहले ही प्रगति पोर्टल पर प्रस्तुत कर दी जाती है. ताकि जिस जगह ये योजनाएं चल रहीं हैं, उससे संबंधित सचिव से लेकर अधिकारी तक अद्यतन स्थिति के साथ प्रगति मीटिंग में प्रधानमंत्री के समक्ष वीडियो कॉन्फरेंसिंग के लिए पहले से तैयार रहें. जानकार बताते हैं कि इस प्रक्रिया की वजह से कई बार ऐसा भी होता है कि छोटी-मोटी वजहों से रुकी पड़ी योजनाएं भी प्रगति मीटिंग की तय तारीख तक पटरी पर आ जाती हैं.
उदाहरण के तौर पर, असम और मिजोरम को जोड़नेवाली 84 किमी की कटकल-भैरबी रेलवे लाइन परियोजना वर्ष 1999 में स्वीकृत हुई थी और इसके अंतिम मील के लिए पांच हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाना था, जिस पर स्थानीय विरोध जता रहे थे. इसलिए यह परियोजना रुकी पड़ी थी. लेकिन विगत 25 मई को प्रगति मीटिंग में इसकी समीक्षा की तारीख तय हुई, तो संबंधित अधिकारी तुरंत हरकत में आ गये और वर्षों से रुकी पड़ी इस परियोजना का काम प्रगति मीटिंग की तय तारीख से पहले ही शुरू हो गया.
प्रगति मीटिंग के बाद जिन परियोजनाओं में नयी जान फूंकी गयी है, उनमें पटना में गंगा पर बननेवाला रेल-रोड ब्रिज भी शामिल है, जिसे 2001 में स्वीकृति मिली थी और तब से लेकर अब तक इसका परियोजना लागत पांच गुना बढ़ कर 2,900 करोड़ पर पहुंच गया है. 10 वर्षों से इसका काम रुका पड़ा था, वजह थे अधिग्रहण और अतिक्रमण संबंधी मुद्दे़. प्रगति की बैठक में इस परियोजना की समीक्षा मार्च 2015 में हुई और अद्यतन स्थिति यह है कि इस पर काम जोर-शोर से चल रहा है.
इसी तरह बेंगलुरु मेट्रो परियोजना छह वर्षों से, सिलचर-लुंबडिंग के बीच 210 किमी की रेलवे लाइन निर्माण परियोजना 10 वर्षों से, अफगानिस्तान स्थित सलमा डैम परियोजना पांच वर्षों से, जैसलमेर स्थित 102 मेगावाट की पवन ऊर्जा परियोजना ढाई वर्षों से रुकी हुई थी. प्रगति मीटिंग में इनकी समीक्षा के बाद इन सारी योजनाओं के अच्छे दिन आ गये.

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