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गुम हो गया पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय का प्रचलन

छपरा(नगर) : कभी पोस्ट कार्ड और अंतर्देशीय पत्र पत्राचार का एक सशक्त माध्यम हुआ करते थे. एक बार नहीं, बल्कि सैकड़ों बार पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय में लिखे संदेश को पढ़ कर हर शब्द में अपनापन ढूंढ़ने का प्रयास किया जाता था. पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय सस्ता भी था और सुलभ भी जिस कारण गरीब हो या […]

छपरा(नगर) : कभी पोस्ट कार्ड और अंतर्देशीय पत्र पत्राचार का एक सशक्त माध्यम हुआ करते थे. एक बार नहीं, बल्कि सैकड़ों बार पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय में लिखे संदेश को पढ़ कर हर शब्द में अपनापन ढूंढ़ने का प्रयास किया जाता था. पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय सस्ता भी था और सुलभ भी जिस कारण गरीब हो या अमीर हर वर्ग इसका इस्तेमाल किया करते थे. 90 के दशक तक पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय पत्राचार के लिए काफी प्रचलित था. टेलीफोन का कॉल रेट काफी काफी महंगा था और मन की हर बात इससे करना आसान नहीं होता था. वक्त के साथ संचार के माध्यम विकसित होते गये. पहले टेलीफोन फिर मोबाइल के आ जाने से कम्यूनिकेशन आसान हो गया.
इसका असर डाकघरों में बिकने वाले मामूली कीमत के पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय पर भी पड़ा और देखते ही देखते इसकी उपयोगिता लगभग न के बराबर रह गयी. थोड़ी बहुत जो उम्मीद बची थी, वह इंटरनेट से जुड़े व्हाट्सअप और फेसबुक जैसे संचार के हाइटेक माध्यमों के आ जाने के बाद पूरी तरह समाप्त हो गयी. छपरा प्रधान डाकघर की सहायक डाक अधीक्षक उषा कुमारी बताती हैं कि पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय डाकघरों में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं, पर लोगों में इसके उपयोग को लेकर जागरूकता नहीं रह गयी है. महज 50 पैसे का पोस्टकार्ड और ढाई रुपये का अंतर्देशीय को बमुश्किल ही खरीदार मिल पाते हैं.
डाकघर चलायेगा जागरूकता कार्यक्रम : अंतर्देशीय व पोस्टकार्डों की खत्म हो रही उपयोगिता को बढ़ाने के उद्देश्य से जागरूकता कार्यक्रम चलाये जायेंगे. डाक विभाग के अधिकारी श्याम शरण ने बताया कि 15 अगस्त के अवसर पर विभिन्न स्कूलों में महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी स्मृतियों पर आधारित एक पत्र लेखन प्रतियोगिता आयोजित करायी जायेगी, जिसमें अंतर्देशीय पर ही न्यूनतम 500 शब्दों में लिखा जायेगा. श्रेष्ठ तीन पत्रों को दो अक्तूबर गांधी जयंती के दिन प्रकाशित कर प्रतियोगियों को पुरस्कृत किया जायेगा. अंतर्देशीय की प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए डाक विभाग ने यह कदम उठाया है.
पत्र लेखन भी हो रही प्रभावित
लगभग एक दशक पहले घर के बुजुर्गों के साथ-साथ छोटे बच्चों और युवाओं में भी चिट्ठी लिखने की ललक देखी जाती थी. हर वर्ग बड़ी आसानी से अपनी संवेदनाओं को प्रेषित करने के प्रति उत्सुक रहता था.
बच्चों में पत्र लेखन की कला भी विकसित होती थी और भाषा और शब्दों का ज्ञान भी बढ़ता था. आज के समय में इ-मेल और व्हाट्सअप द्वारा कम शब्दों में अपनी बात रखना परिपाटी बनते जा रही है. शब्दों का शॉर्टकट फॉर्म लेखनी को तो प्रभावित कर ही रहा है. साथ ही युवा वर्ग पत्र लेखन की विधि भी भूलते जा रहे हैं.
क्या कहते हैं डाक अधिकारी
डाकघरों में पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय उपलब्ध तो है पर इसके उपयोग के प्रति लोगों में जागरूकता नहीं रह गयी है. हालांकि यह अब भी पत्राचार का सबसे सस्ता माध्यम है, पर टेक्नोलॉजी के युग में इसकी प्रासंगिकता समाप्त होते जा रही है. डाकघर समय-समय पर पत्र लेखन के कार्यक्रम आयोजित कराता है, जिसमें अंतर्देशीय का उपयोग किया जाता है.
उषा कुमारी, सहायक डाक अधीक्षक, छपरा मुख्यालय

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