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प्रधानमंत्री की दो टूक

एक मंच के रूप में रायसीना डायलॉग की कल्पना को साकार हुए नौ महीने हुए हैं. मार्च, 2016 के पहले सम्मेलन से ही इसका मकसद साफ है. भारत इस मंच का इस्तेमाल दुनिया के सामने अपनी अंतरराष्ट्रीय राजनीति और व्यापारिक प्राथमिकताओं के इजहार के लिए करना चाहता है. इस नजरिये से देखें, तो रायसीना डॉयलाग-2 […]

एक मंच के रूप में रायसीना डायलॉग की कल्पना को साकार हुए नौ महीने हुए हैं. मार्च, 2016 के पहले सम्मेलन से ही इसका मकसद साफ है. भारत इस मंच का इस्तेमाल दुनिया के सामने अपनी अंतरराष्ट्रीय राजनीति और व्यापारिक प्राथमिकताओं के इजहार के लिए करना चाहता है.
इस नजरिये से देखें, तो रायसीना डॉयलाग-2 के उद्घाटन सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती पहलकदमी का आत्मविश्वास भरा ऐलान जान पड़ता है. पैंसठ देशों के ढाई सौ प्रतिनिधियों के बीच प्रधानमंत्री ने भारतीय हितों के वास्तविक आकलन के आधार पर दो टूक बातें कहीं. पाकिस्तान को उनका संदेश स्पष्ट है कि अगर भारत के साथ सार्थक संवाद कायम करना है, तो वह पाकिस्तान-समर्थित आतंकवाद के मुद्दे पर ही हो सकता है, कश्मीर पर नहीं. बीते कुछ महीनों से भारत इसी रुख पर चल रहा है.
सितंबर में सिंधु जल समझौते को लेकर कड़े तेवर के साथ कहा गया था कि हम अपने हिस्से के पानी का पूरा इस्तेमाल करेंगे और जरूरत पड़ी, तो हमें इस संधि की समीक्षा करने में भी हिचक नहीं होगी. अगस्त में कश्मीर के मसले पर विदेश सचिव स्तर की वार्ता का पाकिस्तानी आमंत्रण नामंजूर कर दिया गया था. तब भी भारत का यही कहना था कि पाकिस्तान के साथ हमारा मसला कश्मीर का नहीं है, बल्कि सीमा-पार से होनेवाली आतंकियों की घुसपैठ का है तथा बात बस इसी मुद्दे पर हो सकती है.
भारत-चीन रिश्तों की भावी दिशा के बारे में प्रधानमंत्री के बयान को भी भारत की पाकिस्तान-नीति की रोशनी में पढ़ा जाना चाहिए. उन्होंने आर्थिक गलियारे को लेकर चीन-पाकिस्तान के बीच बढ़ती नजदीकी पर संकेत में टिप्पणी करते हुए यह जताया कि ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह पर हुए समझौते के कारण भारत के लिए मध्य-पूर्व की राह तैयार है. भारत ने चाबहार मामले में किसी देश के सीमा-क्षेत्र में दखल नहीं दिया है. और, यही काम पाकिस्तान के साथ मिल कर बन रहे गलियारे में चीन को भी करना चाहिए.
चीन के साथ संबंधों की जटिलता की बात भारत आधिकारिक तौर पर मानता आया है और चाहता है कि दोनों देश एक-दूसरे की व्यापारिक और सुरक्षा संबंधी ऐसी जरूरतों का सम्मान करें, जिनमें हितों का टकराव नहीं है. इस लिहाज से भारत चाहता है कि पाकिस्तान के आतंकियों को संयुक्त राष्ट्र के जरिये प्रतिबंधित करने और न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में प्रवेश की कोशिशों में चीन बाधा न डाले. प्रधानमंत्री ने फिर इसे संकेतित किया है. नीतियों की मौजूदा स्पष्टता महत्वपूर्ण है.

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