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आत्महत्या के लिए मजबूर देश के अन्नदाता

नयी दिल्ली: किसानों की आत्महत्या करने की संख्या महज आंकडा नहीं बल्कि यह त्रासद समय से गुजर रहे किसानों की जिंदगी की भयावह तस्वीर है जो सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि की मार एवं कर्ज के जाल में फंसे ‘देश के अन्नदाता’ की दयनीय स्थिति बयां करते हैं. कृषि मंत्रालय एवं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकडों […]

नयी दिल्ली: किसानों की आत्महत्या करने की संख्या महज आंकडा नहीं बल्कि यह त्रासद समय से गुजर रहे किसानों की जिंदगी की भयावह तस्वीर है जो सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि की मार एवं कर्ज के जाल में फंसे ‘देश के अन्नदाता’ की दयनीय स्थिति बयां करते हैं.

कृषि मंत्रालय एवं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकडों के मुताबिक, साल 2009 में 17,368, साल 2010 में 15,694, साल 2011 में 14,027, साल 2013 में 11,772 किसानों के आत्महत्या की सूचना मिली. इनमें से कृषि वजहों से 2009 में 2,577, 2010 में 2,359, साल 2011 में 2,449 साल 2012 में 918 और साल 2013 में 510 आत्महत्या के मामले शामिल हैं.
महाराष्ट्र सरकार ने कृषि संबंधी समस्याओं के चलते इस वर्ष अक्तूबर तक 724 किसानों की आत्महत्या करने की सूचना दी है. तेलंगाना में 84 किसानों के आत्महत्या करने जबकि कर्नाटक में 19 तथा गुजरात, केरल और आंध्रप्रदेश में तीन तीन किसानों के आत्महत्या करने की सूचना है. वर्ष 2013 में महाराष्ट्र में 511 किसानों के आत्महत्या की सूचना थी जबकि 2012 में इनकी संख्या 407 थी. संसद में भी विभिन्न दलों के नेताओं ने इस विषय को उठाया है.
विदर्भ जनांदोलन समिति के संयोजकों में शामिल किशोर तिवारी ने ‘भाषा’ से कहा कि तीन दशक पहले तक पारंपरिक खेती होती थी और फसलों का बेहतर संतुलन रहता था. लेकिन फिर सरकार नकदी फसलों की नीति लेकर आई.किसानों को नकदी फसलों की ओर सरकार ने आगे बढाया.लेकिन जब से नकदी फसलों पर सब्सिडी समाप्त हुई तब से किसान पूरी तरह से बाजार की दया पर आ गया है.
बुंदेलखंड विकास समिति के संयोजक आशीष सागर ने कहा कि बुंदेलखंड एवं देश के अन्य क्षेत्रों में सिंचाई के साधानों का अभाव है लेकिन भूजल का जबर्दस्त दोहन जारी है. जब जमीन के अंदर पानी नहीं होगा और खराब मानसून के कारण बारिश कम होने से सिंचाई नहीं होगी तब फसलें बर्बाद होगी और इसका सीधा असर किसानों पर पडता है और उनके समक्ष कोई विकल्प नहीं बचता.

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