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दूसरों को सजाने वालों का जीवन हुआ बदरंग

बिहारशरीफ : कभी कपड़ों पर आकर्षक छपाई के लिए पूरे सूबे में ख्याति प्राप्त करने वाले रंगरेजों को आज मुफलिसी के दिन काटने पड़ रहे हैं. शहर के भुसट्टा तथा थवई मोहल्ला कभी रंगरेजों की दुकानों तथा छपाई कराने वाले लोगों की मौजूदगी से गुलजार होता था. आज गिनती के रंगरेज अपने पूर्वजों की इस […]

बिहारशरीफ : कभी कपड़ों पर आकर्षक छपाई के लिए पूरे सूबे में ख्याति प्राप्त करने वाले रंगरेजों को आज मुफलिसी के दिन काटने पड़ रहे हैं. शहर के भुसट्टा तथा थवई मोहल्ला कभी रंगरेजों की दुकानों तथा छपाई कराने वाले लोगों की मौजूदगी से गुलजार होता था. आज गिनती के रंगरेज अपने पूर्वजों की इस कला को जैसे-तैसे ढो रहे हैं. स्थानीय पुलपर-भुसट्टा मोहल्ले में कार्य कर रहे रंगरेज मो इबरार आलम बताते हैं कि कपड़ों पर छपाई करने के लिए एल्यूमिनियम के तबक का उपयोग होता है. पहले स्थानीय स्तर पर तबक कुटने वाले लोगों से तबक आसानी से उपलब्ध हो जाता था. अब इसके कारीगर भी नहीं मिलते हैं.
इन दिनों बनारस के तबक मंगाकर कार्य किया जा रहा है. इसी प्रकार छपाई करने वाले कारीगरों की संख्या भी घटती जा रही है. मजदूरी बढ़ने से भी इस व्यवसाय में मुनाफा काफी कम हो गया है. यही कारण है कि जहां पहले दर्जन भर दुकानें खुली भी वहां अब मात्र दो दुकानें ही रह गयी हैं. इसी प्रकार शहर के थवई मोहल्ले में भी 4-5 दुकानें ही रह गयी हैं. छपाई कारोबार से जुड़े लोगों को कहना है कि यह सादे कपड़ों को आकर्षक बनाने में काफी प्राचीन कला है.
जिन दिनों कपड़ों पर छपाई करने के लिए कोई आधुनिक मशीन नहीं थी, उन दिनों रंगरेजों की काफी इज्जत थी तथा लोग इसी छपाई वाले कपड़े पहनते थे. व्यवसायी बताते हैं कि मुस्लिम परिवार में शादी-विवाह हकीका, सुन्नत आदि मौकों पर महिलाओं द्वारा छपाई वाले कपड़े पहनने की परंपरा रही है, हालांकि त्योहार के अवसरों पर इसे नहीं पहना जाता है. समय के साथ लोगों की पसंद बदली तथा कम ही लोग अब छपाई वाले कपड़े पहनना पसंद करते हैं. विगत 25-30 वर्षों से इस कारोबार पर मंदी हावी हो चुकी है.
सूरत से आ रहे छपाई वाले कपड़े:
रंगरेजों की यह कला पहले ही से संकट ग्रस्त रही है. अब सूरत की कई कंपनियां तबक से मिलती-जुलती छपाई वाले कपड़े बाजारों में उपलब्ध करा रहे हैं. ये कपड़े हाथ से छपे कपड़ों की अपेक्षा अधिक आकर्षक होने के कारण ग्राहकों को ज्यादा पसंद आ रहा है. इससे रंगरेजों का कारोबार प्रभावित हो रहा है. छपाई के मटेरियल की बढ़ती कीमतें, बढ़ती मजदूरी, काम का अभाव आदि ने रंगरेजों की कमर पहले ही तोड़ दी है. सूरत के कपड़ों से तो कारोबार पर ही ग्रहण लगने का भय पैदा हो रहा है.
बंद हो चुकी है शहर की कई दुकानें : शहर के छपाई से जुड़े कारोबारियों को सबसे बड़ा मलाल इस बात की है कि इस प्राचीन कला को बनाने के लिए सरकार द्वारा आज तक कोई प्रयास नहीं किया गया है. एक तो लगातार एल्यूमिनियम के तबक के संपर्क में रहने से टीवी जैसी खतरनाक बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है.
इसके बावजूद इन्हें लोन, बीमा, पेंशन, चिकित्सा सुविधा आदि जैसी कोई मदद भी नहीं मिल पाती है. यही कारण है कि शहर के कई रंगरेजों की दुकानें धीरे-धीरे बंद हो चुकी है. यह व्यवसाय अब अपने अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है.
नौशे की रूमाली को तरसेंगे दूल्हे राजा : मुसलमान संप्रदाय में निकाह के वक्त दूल्हे के हाथ में छपाई वाला रूमाल रखने की परंपरा है. इसे नौशे की रूमाली कहा जाता है. दूल्हा चाहे जितनी कीमती रूमाल पहन रखा हो लेकिन रूमाली तो रंगरेजों वाली ही चाहिए. यदि रंगरेज इसी प्रकार से उपेक्षित होते रहे तो यह कारोबार भी एक दिन बंद हो जायेगा. तब दूल्हे नौशे की रूमाली के लिए भी तरस जायेंगे. अभी तो कुछ रंगरेज परेशानी उठाकर भी अपने पूर्वजों के इस कारोबार को जिंदा रख रहे हैं. नयी पीढ़ी इससे दूर हो रही है.

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