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मुजफ्फरनगर ट्रेन हादसा : मुश्किल में थी जिंदगी, चीख-पुकार के बीच मदद के लिए जुटे लोग

खतौली (उत्तर प्रदेश) : तेज आवाज हुई और आसपास के लोग अनिष्ट की आशंका से दहल गए. कुल ही पल में खबर फैल गई कि कलिंग उत्कल एक्सप्रेस ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई है. मौके पर पहुंचे लोग सिर्फ तमाशबीन नहीं थे, उन्होंने आगे बढ़कर मुश्किल में फंसे लोगों की मदद की. किसी ने डिब्बों में […]

खतौली (उत्तर प्रदेश) : तेज आवाज हुई और आसपास के लोग अनिष्ट की आशंका से दहल गए. कुल ही पल में खबर फैल गई कि कलिंग उत्कल एक्सप्रेस ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई है. मौके पर पहुंचे लोग सिर्फ तमाशबीन नहीं थे, उन्होंने आगे बढ़कर मुश्किल में फंसे लोगों की मदद की. किसी ने डिब्बों में फंसे लोगों को बाहर निकाला तो कोई बदहवास लोगों को पानी पिलाने दौड़ पड़ा. आलम ये कि महिला-पुरुष, युवा-बूढ़े, हिन्दू-मुसलमान सब मदद करने पहुंचे और इस मुश्किल घड़ी में पूरा खतौली कस्बा एकसाथ खड़ा नजर आया.

राष्ट्रीय राजधानी से लगभग 100 किलोमीटर दूर मुजफ्फरनगर जिले में शनिवार की शाम रेल दुर्घटना के बाद हर तरफ हाहाकार मचा था. बहुत से लोग घायल हुए थे. इनमें कुछ तो बेसुध थे, लेकिन कुछ अपनी चोटों की परवाह किए बिना अपने साथ यात्रा कर रहे अपनों के बारे में सोचकर हलकान हो रहे थे. किसी की मां का पता नहीं चल रहा था तो कोई इधर उधर बिखरे सामान में अपने बेटी को ढूंढ़ रहा था.

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लोगों की चीख-पुकार के बीच आनन-फानन में ही मदद के लिए लोग जुटने लगे. उन्होंने पीडितों के लिए पानी, खाना और दवा का भी इंतजाम किया. लोग घायलों को साथ लेकर उनके परिजन को ढूंढ़ने में भी मदद करते नजर आए. स्थानीय निवासी मनोज बालियान का घर रेल पटरी के पास ही है. उन्होंने दुर्घटना के समय जोरदार आवाज सुनी और लोगों की चीख-पुकार भी सुनी. क्षतिग्रस्त एस-2 डिब्बे का एक छोर दूसरे डिब्बे पर चढ़ गया और उनके घर से टकरा गया.

रेलवे की टीम ने कल शाम इस डिब्बे को सावधानी के साथ हटा दिया. 24 घंटे के इस भयावह अनुभव को यहां के लोग कभी नहीं भुला पाएंगे. मनोज ने कहा, लोग दर्द से कराह रहे थे, हर तरफ से ‘बचाओ-बचाओ ‘ की आवाजें आ रही थीं. कुछ लोग ईश्वर से मदद की गुहार लगा रहे थे तो कुछ यह प्रार्थना कर रहे थे कि उनके बिछड़े परिजन उन्हें सही सलामत मिल जाएं. हमने इससे पहले ऐसा कभी नहीं देखा. घटनास्थल दिल दहला देने वाला था. उन्होंने देखा कि क्षतिग्रस्त डिब्बा उनके घर के सामने टकरा गया था, बाहर और पटरी के पास शव पड़े थे.

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हादसे के कुछ क्षण बाद तक तो मनोज को कुछ समझ ही नहीं आया, उसके बाद उन्होंने अपने सदमे पर काबू पाया और मुश्किल में फंसी जिंदगियों को बचाने निकल पड़े. उन्हीं की देखा देखी उनके बहुत से हमसाए पीडितों की मदद के लिए निकल पड़े और देखते ही देखते सैकडों का हुजूम भाईचारे और अपनाइयत की एक नई मिसाल कायम करने निकल पड़ा.

उन्होंने कहा, वहां पहुंचे तो कलेजा फटने लगा, पटरी के आसपास खून ही खून बिखरा पड़ा था. कुछ लोग क्षतिग्रस्त डिब्बों में फंसे थे और दर्द से बेजार थे. हम थोड़े से समय में उनके लिए जो कुछ कर सकते थे, हमने किया. हमने लोहा काटने वाले छोटे उपकरण जुटाए और उनकी मदद करने पहुंचे. मनोज के रिश्तेदार मुकेश ने कहा, हम भगवान की कृपा बच गए. यदि ट्रेन हमारे घर में घुस जाती तो हम सब दफन हो जाते.

मुकेश और मनोज जैसे स्थानीय लोग ही सबसे पहले मदद करने पहुंचे. वे रातभर नहीं सोए. लोगों की जिन्दगी बचाते हुए वे मदद के काम में लगे रहे. उन्होंने न सिर्फ यात्रियों, बल्कि राहत एवं बचाव कर्मियों को भी मदद मुहैया कराई. लोग राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) के कर्मियों और सरकारी अधिकारियों को लगातार चाय-नाश्ता जैसी चीजें पहुंचाते रहे.

कुछ लोग जहां भोजन-पानी पहुंचा रहे थे वहीं कुछ लोग वाहनों की आवाजाही के लिए रास्ता बना रहे थे, ताकि घायलों को समय पर अस्पताल पहुंचाया जा सके. मनोज ने कहा, जिस दिन दुर्घटना हुई, कस्बे के सभी हिस्सों से लोग घटनास्थल पर पहुंचे. वहां बहुत भीड़ थी. घटनास्थल के दोनों ओर जहां तक भी नजर जाती थी, वहां सैकड़ों लोग नजर आ रहे थे. इस हादसे में ट्रेन के 13 डिब्बे और पैंटरी कार पटरी से उतर गए. इसमें 22 लोगों की जान चली गई और 156 अन्य घायल हो गए.

संकट और दुख की इस घड़ी में जगत कॉलोनी और इस्लामाबाद गांव के लोग कस्बे के लोगों में एकता के प्रतीक के रुप में नजर आए. हिन्दू-मुसलमान कंधे से कंधा मिलाकर राहत कार्य में जुटे थे और वे सौहार्द का चमकता प्रतीक बन गए.

खतौली में मिठाई की दुकान चलाने वाले नूरद्दीन ने कहा, जब हादसा हुआ तो उस समय मैं दूर था. मेरे बेटे तत्काल घटनास्थल पर पहुंचे और राहत कार्य में जुट गए. हम घायलों की कुशलक्षेम की दुआ कर रहे हैं. दुख की इस घड़ी ने हमें व्यथित कर दिया है. हमारे परिवार या कॉलोनी में कोई उस रात एक पल के लिए भी नहीं सोया.

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