लापरवाही. बरमसिया व डंडाखोरा प्राथमिक विद्यालयों के शौचालय का हाल बदतर
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कहीं लटका है ताला, तो कहीं लगा है कूड़े का ढेर
लापरवाही. बरमसिया व डंडाखोरा प्राथमिक विद्यालयों के शौचालय का हाल बदतर कटिहार : भारत को स्वच्छ बनाने को लेकर राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जा रहा है. देश व प्रदेश के साथ-साथ कटिहार जिले में भी टॉयलेट को लेकर अब निर्णायक अभियान शुरू किया गया है. स्थानीय जिला प्रशासन ने विश्व विश्व टॉयलेट दिवस पर कंधे पर […]
कटिहार : भारत को स्वच्छ बनाने को लेकर राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जा रहा है. देश व प्रदेश के साथ-साथ कटिहार जिले में भी टॉयलेट को लेकर अब निर्णायक अभियान शुरू किया गया है. स्थानीय जिला प्रशासन ने विश्व विश्व टॉयलेट दिवस पर कंधे पर कुदाल का नारा देते हुए शौचालय के लिए स्वयं खुदाई प्रारंभ करने का आह्वान किया. दूसरी तरफ कई तरह की चुनौतियां भी सामने आ रही है. विश्व टॉयलेट दिवस को लेकर प्रभात खबर ने अपने स्तर से पड़ताल की है. पड़ताल के दौरान टॉयलेट को लेकर कटिहार जिले की क्या स्थिति है. इसकी जानकारी एकत्रित की गयी. टॉयलेट बनाने को लेकर आने वाली परेशानियों की भी जानकारी मिली.
दूसरी तरफ जिले के प्रारंभिक विद्यालयों में टॉयलेट की बदहाली भी सामने आयी. प्रभात पड़ताल की पहली कड़ी के रूप में प्रारंभिक विद्यालयों में टॉयलेट की स्थिति को लेकर चर्चा की जायेगी. प्रभात पड़ताल में यह बात सामने आयी कि जिले में करीब 2000 सरकारी प्रारंभिक विद्यालय हैं. इसमें से अधिकांश विद्यालयों में बने टॉयलेट छात्र-छात्राओं के उपयोग में नहीं आता है. या तो टॉयलेट में ताला लटक रहा है या फिर टॉयलेट गंदगी से भरा पड़ा है. सरकार के संचिका में यह बात जरूर है
कि अधिकांश विद्यालयों में टॉयलेट बना दिया गया है. उल्लेखनीय है कि शिक्षा अधिकार कानून आने के बाद प्रारंभिक विद्यालयों में लड़का और लड़की के लिए अलग-अलग शौचालय बनाये जाने का प्रावधान किया गया है. पर जमीनी हकीकत कोसों दूर है. जिला शिक्षा सूचना प्रणाली के रिपोर्ट के मुताबिक अधिकांश विद्यालयों में टॉयलेट बना हुआ है. जिले में करीब ढाई सौ से अधिक विद्यालय भवनहीन है. ऐसे विद्यालयों में टॉयलेट नहीं रहने की वजह से छात्र-छात्राओं को या तो अपना घर का सहारा लेना पड़ता है या फिर आसपास कहीं खुले जगह पर जाना पड़ता है. विश्व टॉयलेट दिवस पर प्रस्तुत है प्रभात खबर की पड़ताल करती हुई पहली किस्त में यह रिपोर्ट.
शहर के बरमसिया स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यालय में शौचालय बना हुआ है. पर वह उपयोग में नहीं आता है. शौचालय के सामने गंदगी पसरा हुआ है. इसी तरह शहर के न्यू मार्केट रोड के समीप स्थित हरिजन पाठशाला एक कमरे में चल रहा है. इसी एक कमरे पांचवी तक की पढ़ाई के साथ-साथ मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था है. इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां टॉयलेट की क्या स्थिति रही होगी. कमोवेश शहर के पानीटंकी चौक स्थित मध्य विद्यालय बनिया टोला सहित अन्य प्रारंभिक विद्यालयों की है. शहर के भी अधिकांश विद्यालयों में टॉयलेट उपयोग करने लायक नहीं है.
डंडखोरा प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय लोहारी में शौचालय बना हुआ है. पर उपयोग में नहीं आता है. यहां के शौचालय में ताला लटक रहा है. मनिहारी प्रखंड के नीमा पंचायत अंतर्गत प्राथमिक विद्यालय वृंदावन में भवन निर्माण के लिए जमीन उपलब्ध है. पर आज तक भवन निर्माण की दिशा में कोई पहल नहीं हुई. यहां झोपड़ी में बच्चे पढ़ रहे है. टॉयलेट के लिए बच्चों को बाहर जाना पड़ता है. डंडखोरा प्रखंड के नया प्राथमिक विद्यालय रतनपुरा भवनहीन है. जमीन के अभाव में यहां के बच्चे झोपड़ी में पढ़ रहे है. बच्चों को टॉयलेट के लिए या तो घर जाना पड़ रहा है या फिर बहियार का सहारा लेता है.
कहते है सामाजिक कार्यकर्ता
बाल अधिकार कार्यकर्ता एवं बिहार बाल आवाज मंच के राज्य समन्वयक राजीव रंजन राज ने इस संदर्भ में बताया कि सरकार यह दावा जरूर कर रही है कि विद्यालय में शौचालय लड़का- लड़की के लिए अलग-अलग बना है.पर वह उपयोग में नहीं आता है. शौचालय में पानी के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी है. साथ ही ताला लगा हुआ रहता है. जिन शौचालयों में ताला नहीं लगता है. वहां गंदगी भरा हुआ है. इस पर सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए.
जिले में 295 विद्यालय हैं भवनहीन
सरकार के इन दावों की पोल भवनहीन विद्यालय खोल रही है. जिले में करीब 295 प्राथमिक विद्यालय भवनहीन है. इसमें से अधिकांश विद्यालय भूमिहीन होने की वजह से भवन नहीं बना है. जबकि इसमें से ऐसे भी विद्यालय है. जिनके पास जमीन है. पर अब तक भवन बनने की बाट जोह हो रहा है. सरकार और प्रशासन इस दिशा में पूरी तरह मौन दिख रही है. इन विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र छात्राओं को टॉयलेट के लिए या तो घर जाना पड़ता है या फिर विद्यालय के आसपास खुले स्थान में जाने को विवश है. जबकि शिक्षा अधिकार कानून में लड़का- लड़की के लिए अलग-अलग शौचालय बनाये जाने का प्रावधान है. अब तक सरकार ऐसे भूमिहीन विद्यालयों के लिए कोई स्पष्ट नीति निर्धारित नहीं की है. जिससे लड़का- लड़की को विद्यालय में ही टॉयलेट बना हुआ मिले.
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