27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

#TripleTalaqVerdict : शाहबानो से सायरा बानो तक 32 साल से जारी है लड़ाई

एक ही बार में दी जाने वाली तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट ने अगले छह महीनों के लिए पाबंदी लगी दी है और सरकार से इस पर कानून बनाने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक को चुनौती देने वाली उत्तराखंड की सायरा बानो जहां इसे मुस्लिम महिलाओं की जीत बता रहीं हैं, वहीं […]

एक ही बार में दी जाने वाली तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट ने अगले छह महीनों के लिए पाबंदी लगी दी है और सरकार से इस पर कानून बनाने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक को चुनौती देने वाली उत्तराखंड की सायरा बानो जहां इसे मुस्लिम महिलाओं की जीत बता रहीं हैं, वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलमा-ए-हिंद ने तीन तलाक को जायज करार देते हुए सायरा बानो की याचिका का पुरजोर विरोध किया. इस बीच ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने भी सुप्रीम कोर्ट में सायरा बानो का जबरदस्त समर्थन किया. तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सायरा बानो की जीत कोई पहली जीत नहीं है. 32 साल पहले इंदौर की शाह बानो ने भी सुप्रीम कोर्ट में तलाक के बाद गुजारा भत्ते का मुकदमा जीता था.

1978 में शाह बानो को उसके पति ने तलाक दे दिया था और खुद दूसरी शादी कर ली थी. 62 साल की उम्र में तलाक होने के बाद बेसहारा हुई शाह बानो ने अपराध दंड संहिता की धारा 125 के तहत अदालत में अपने पति से अपने और अपने पांच बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगा. इस धारा के तहत कोई भारतीय महिला अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है. 1985 में सुप्रीम कोर्ट में शाह बानो की जीत हुई और उसके पति को उम्र भर के लिए गुजारा भत्ता देने का फैसला सुनाया गया. मुसलमानों ने इस फैसले को शरीयत के खिलाफ और मुसलमानों के निजी मामलों में दखलंदाजी करार दिया. उसी वक्त ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बना. उस समय की कांग्रेस सरकार के खिलाफ देश भर में काफी धरना प्रदर्शन किये गये. विरोध से घबरायी राजीव गांधी की सरकार ने घुटने टेक दिए और संसद में विधेयक पारित करके सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया. यह कानून द मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स एक्ट 1986 कहलाया. तब से अपराध दंड संहिता की धारा 125 में संशोधन करके यह लिखा गया कि मुस्लिम औरतों पर यह धारा लागू नहीं होगी. इस संशोधन के बाद मुस्लिम औरतों को अपने पति से गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार भी छिन गया.

स्वतंत्र भारत में तलाक के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण फैसला 1981 में आया. गुवाहाटी हाइकोर्ट के जज जस्टिस बहारुल इस्लाम ने अपने फैसले में कहा था कि किसी भी मुस्लिम व्यक्ति को बगैर किसी कारण अपनी पत्नी को तलाक देने का अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि कुरान की सूरः निसा की आयत 35 के मुताबिक तलाक से पहले पति-पत्नी के बीच सुलह-सफाई की कोशिश करना एक जरूरी शर्त है, अगर ऐसी कोशिश नहीं हुई है तो शौहर के एक ही समय में तीन बार तलाक कहने से तलाक नहीं होगा. जस्टिस बहारुल इस्लाम बाद में गुवाहाटी हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस बने. तब हाइकोर्ट की बेंच ने भी उनके दिए फैसले को बरकरार रखा.

2002 में मुंबई हाइकोर्ट की फुल बेंच ने भी तीन तलाक के एक मामले में इसे गैर इसलामी करार दिया था. साथ ही तलाक के पंजीकरण का एक आदेश भी जारी किया. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने न सिर्फ इस अदालती आदेश का विरोध किया बल्कि मुसलमान बच्चों को शादी की न्यूनतम आयु सीमा के कानून के दायरे से बाहर रखने के लिए सरकार से गुहार लगायी थी. 2002 में ही सुप्रीम कोर्ट ने शमीम आरा मामले में भी तीन तलाक को गैर इसलामी माना था और इसे अवैध घोषित किया था.

जिस वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को गैर इसलामी मानते हुए इसे अवैध घोषित किया, उसी वर्ष शादी निकाह हुआ था आज के सायरा बानो का. उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली सायरा बानो का निकाह 2002 में इलाहाबाद के रिजवान अहमद से हुई. सायरा का आरोप था कि उसके शौहर ने शुरुआत से ही उन पर जुल्म करना शुरू कर दिया था. 10 अक्टूबर, 2015 को सायरा के शौहर ने उनके पास रजिस्ट्री से तीन तलाक का फरमान भेज दिया. इसके खिलाफ सायरा ने मार्च, 2016 में तीन तलाक को खत्म करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. सभी पक्षों की दलीलों को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने तीन तलाक को गैर इसलामी ठहराते हुए इसपर छह महीने की पाबंदी लगायी और केंद्र सरकार को इसके लिए कानून बनाने का आदेश दिया.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें