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साइबर हमलों के बड़े खतरे

तरुण विजय राज्यसभा सांसद, भाजपा विपक्ष की कंगाली तो समझ आती है. आतंकी-धन के जब स्रोत बंद हुए, तो विपक्ष की राजनीति को मिलनेवाले कालेधन पर अलग से अंकुश लगा. एक ओर देश पर आतंकी हमला करनेवाले अवसन्न हैं, तो दूसरी ओर स्वदेश-जन-रक्षक नीतियों का ऐलान करनेवाले कुछ विपक्षी दल भी धरती कंपा देनेवाली घोषणाओं […]

तरुण विजय

राज्यसभा सांसद, भाजपा

विपक्ष की कंगाली तो समझ आती है. आतंकी-धन के जब स्रोत बंद हुए, तो विपक्ष की राजनीति को मिलनेवाले कालेधन पर अलग से अंकुश लगा. एक ओर देश पर आतंकी हमला करनेवाले अवसन्न हैं, तो दूसरी ओर स्वदेश-जन-रक्षक नीतियों का ऐलान करनेवाले कुछ विपक्षी दल भी धरती कंपा देनेवाली घोषणाओं द्वारा अपना चुनावी-शोक व्यक्त कर रहे हैं. लेकिन, इस वक्त विमुद्रीकरण अर्थात् आतंकी धन और समानांतर अर्थव्यवस्था के खिलाफ युद्ध को सबसे बड़ा खतरा साइबर हमलों से है. यदि इ-बटुआ है, तो इ-जेबकतरे भी हैं. यदि इ-भुगतान है और इ-बैंक व्यवहार है, तो इ-चोर और इ-डकैत भी हैं. यदि इ-रक्षा व्यवस्था का डिजिटल दुर्ग है, तो इ-आतंकी हमलावर भी हैं. साइबर विश्व शिव के तीसरे नेत्र की तरह है- कल्याणकारी भी और प्रलयंकारी भी. इसके लिए भारत को साइबर-साधु और साइबर-योद्धा तैयार करने होंगे.

जितनी बड़ी मात्रा में देश डिजिटल वित्त-व्यवहार की ओर बढ़ रहा है, उतनी ही मात्रा में साइबर हमलों के खतरे भी बढ़ रहे हैं. अमेरिकी सुरक्षा व्यवस्था हैकरों से संत्रस्त है. हैकिंग के क्षेत्र में चीन सबसे आगे है. अमेरिका स्वयं गूगल, याहू जैसे पोर्टलों के माध्यम से विश्व के प्रमुख नेताओं, नागरिकों, अधिकारियों एवं रक्षा कर्मियों की सूचनाएं एकत्र करने का प्रयास करता है. पाकिस्तान हैकिंग के क्षेत्र में समुद्री-दस्युओं जैसा है और इसके अलावा सैकड़ों अन्य हैकिंग एजेंसियां प्रति वर्ष बैंकों, व्यक्तियों एवं राष्ट्रीय संस्थानों से अरबों डॉलर चुराती हैं तथा राष्ट्रीय गुप्त सूचनाएं एकत्र करती हैं.

भारत दो परमाणु शस्त्रधारी देशों से घिरा है, दोनों से सीमा विवाद है, दोनों से एक-एक युद्ध हो चुके हैं और दोनों से ही निरंतर हमलों की आशंका बनी रही है. क्या डिजिटल भारत, जो सीमारहित विश्व का व्याप है, उनके साइबर हमलों से बचा रह सकता है? साधारण नागरिक से लेकर अत्युच्च स्थानों पर बैठे भारतीयों को आज आतंकी हमलों से ज्यादा साइबर हमलों से खतरा है. लेकिन, दुर्भाग्य से संसद से लेकर विधानसभाओं तक देश की साइबर-सुरक्षा के प्रति जागरूकता या तो है ही नहीं, अथवा बहुत सतही स्तर की है.

गत दो वर्षों से मैंने राज्यसभा में साइबर सुरक्षा के मुद्दे उठाये, तो संपूर्ण सदन ने, पार्टीगत भेद भूलते हुए पुरजोर समर्थन किया. मोदी सरकार ने सबसे पहले साइबर सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया और प्रधानमंत्री मोदी ने अपने व्याख्यानों में साइबर खतरों के प्रति अागाह करते हुए इस संबंध में सघन तैयारी की जरूरत पर बल दिया. पहली बार प्रधानमंत्री कार्यालय में साइबर सुरक्षा के विशेष सचिव पद पर प्रसिद्ध साइबर विशेषज्ञ गुलशन राय को नियुक्त किया गया तथा सभी सरकारी व अर्द्धशासकीय संस्थानों में साइबर सुरक्षा अधिकारी नियुक्त करने के निर्देश दिये गये.

लेकिन, भारत में साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ या उन विशेषज्ञों को तैयार करनेवाले केंद्र और संस्थान हैं कहां? कल्पना कीजिये, भारत में एक वर्ष में तीस लाख साइबर हमले हुए, तो उसका सामना कैसे किया जायेगा? जल अापूर्ति, स्वास्थ्य सेवाएं, रक्षा ताना-बाना, शासकीय व्यवस्था सूत्रों से लेकर सड़क, रेल और वायु यातायात तक साइबर हमले के शिकार हो सकते हैं. लेकिन, साइबर हमलों की प्रकृति और भीषणता के प्रति हमारी तैयारी इतनी क्षीण है कि संसद में ही अभी तक साइबर सुरक्षा का विभाग या सुरक्षा कर्मियों को प्रशिक्षण देकर साइबर योद्धा तैयार करने की दिशा में कदम नहीं उठे हैं.

हाल ही में इजरायल के राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान उनसे मैंने इस विषय में चर्चा की, तो उन्होंने बताया कि भारत में साइबर सुरक्षा को भविष्य की सुरक्षा व्यवस्था के रूप में बताये जाने पर उन्हें बहुत आश्चर्य है. हम साइबर युद्ध के काल में प्रवेश कर चुके हैं और इजराइल में तो हाइ स्कूल का छात्र ही बहुत खतरनाक हैकर बन जाता है. वहां के स्कूलों में प्रारंभिक कक्षाओं से साइबर सुरक्षा विषय पढ़ाना शुरू कर देते हैं. उसी का नतीजा है कि आज इजराइल दुनिया की साइबर सुरक्षा राजधानी बन गया है.

भारत दुनिया में कंप्यूटर विशेषज्ञों की ख्याति प्राप्त फौज रखता है. यहां के साइबर विशेषज्ञ गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों को नेतृत्व दे रहे हैं, लेकिन उन्होंने अपने स्वदेश, अपने भारत को साइबर क्षेत्र में विश्व अग्रगामी बनाने के लिए क्या किया? यह विडंबना ही है कि भारत दुनिया के अन्य देशों को इंटरनेट क्षेत्र में विश्व शक्ति बनानेवाले इंजीनियर निर्यात करने का बड़ा केंद्र बन गया है.

अब भारत के विद्यालयों से लेकर शासकीय कार्यालयों, निजी संस्थानों, बैंकों एवं संसद और विधानसभाओं तक साइबर सुरक्षा को एक महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य प्रशिक्षण अभियान का हिस्सा बनाना होगा.

विमुद्रीकरण के विरुद्ध विपक्ष का राग अलापना केवल राजनीतिक सदन और परास्त लोगों का शोक-राग है. खतरा साइबर क्षेत्र से है, जिसकी तैयारी उसी पैमाने पर करनी होगी, जिस पैमाने पर हम थल, जल और वायु सेना की करते हैं. साइबर सुरक्षा देश की चौथी सैन्य शाखा है और यह अपने आप में एक पृथक मंत्रालय की मांग करता है. क्या भारत विश्व का पहला साइबर सुरक्षा मंत्रालय वाला देश बन सकता है?

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