27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

आस्था महापर्व बने स्वच्छता महापर्व

छठ का माहौल बन गया है. छठी मइया के गीत बजने लगे हैं. महिलाओं ने व्रत की तैयारी शुरू कर दी है. लोग अपने गांव पहुंचने शुरू हो गये हैं. दिल्ली और मुंबई से ट्रेनें भर-भर कर बिहार और अन्य इलाकों में पहुंचनी शुरू हो गयीं हैं. और ऐसा हो भी क्यों नहीं. 26 अक्तूबर […]

छठ का माहौल बन गया है. छठी मइया के गीत बजने लगे हैं. महिलाओं ने व्रत की तैयारी शुरू कर दी है. लोग अपने गांव पहुंचने शुरू हो गये हैं. दिल्ली और मुंबई से ट्रेनें भर-भर कर बिहार और अन्य इलाकों में पहुंचनी शुरू हो गयीं हैं. और ऐसा हो भी क्यों नहीं. 26 अक्तूबर को छठ महापर्व है. छठ पर्व केवल सामान्य आस्था का पर्व नहीं रहा, यह लोक आस्था का महापर्व बन गया है. कुछ अरसा पहले तक छठ बिहार, झारखंड और पूर्वांचल तक ही सीमित था, लेकिन अब यह व्यापक हो गया है. अब यह पर्व न केवल दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरु, बल्कि विदेशों तक जा पहुंचा है. वैसे तो सभी पर्व-त्योहार महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन बिहार, झारखंड और पूर्वांचल के लोगों के बीच धर्म और आस्था के प्रतीक के तौर पर छठ सबसे महत्वपूर्ण है.

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक चलनेवाला चार दिनों के छठ पर्व को मन्नतों का पर्व भी माना जाता है. छठ सूर्य अाराधना का पर्व है और सूर्य को हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है. देवताओं में सूर्य ही ऐसे देवता हैं जो मूर्त रूप में नजर आते हैं. कोणार्क का सूर्य मंदिर तो इसका जीता जागता उदाहरण है. इस पर्व की पूजा-अर्चना सूर्य से जुड़ी है. उगते और अस्त होते सूर्य को नदी अथवा तालाब के किनारे अर्घ्य देना होता है. सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाता है. सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने और निरोग करने की क्षमता पायी जाती है. माना जाता है कि ऋषि-मुनियों ने छठ के दिन इसका प्रभाव विशेष पाया और यहीं से छठ पर्व की शुरुआत हुई.

छठ व्रत को लेकर अनेक कथाएं जनश्रुति के रूप में प्रचलित हैं. उनके पीछे उनकी अपनी व्याख्याएं होती हैं. यह जरूरी नहीं कि उनका कोई ऐतिहासिक अथवा वैज्ञानिक आधार हो. वे जनश्रुति होती हैं और उनमें से कुछेक तो बेहद दिलचस्प होती हैं. एक कथा के अनुसार, जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को छठ व्रत रखने की सलाह दी. इसके उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया. कुछ कथाएं लोक परंपरा पर आधारित होती हैं. ऐसी ही एक कथा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया भाई-बहन हैं और षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी. छठ पर्व की वैज्ञानिक व्याख्या भी पढ़ने को मिलती हैं. षष्ठी तिथि यानी छठ को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है. इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं. इस दौरान होनेवाले अनुष्ठान से इसके संभावित दुष्प्रभावों से रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है. ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक और चैत्र मास की अमावस्या के छह दिन उपरांत आती है. इसीलिए इसका नाम छठ पर्व रखा गया है. कुल मिलाकर सबकी अपनी अपनी व्याख्याएं हैं, सबके अपने अपने विश्वास हैं.

स्त्री और पुरुष समान उत्साह से इस पर्व को मनाते हैं. लेकिन, जैसा कि आप सभी जानते हैं, इस पुरुष प्रधान समाज में व्रत की जिम्मेदारी महिलाओं पर आ जाती है. इसमें व्रत निर्जला और बेहद कठिन होता है और बड़े विधि विधान के साथ रखना होता है. पुरुष इसमें सहभागी जरूर होता है. हालांकि कुछ पुरुष भी इस व्रत को रखते हैं. लेकिन, अधिकतर कठिन तप महिलाएं ही करती हैं. चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है. भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है. पर्व के लिए बनाये गये कमरे में व्रती फर्श पर एक कंबल अथवा चादर के सहारे ही रात बिताती हैं. छठ पर्व को शुरू करना कोई आसान काम नहीं है. एक बार व्रत उठा लेने के बाद इसे तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की कोई विवाहित महिला इसके लिए तैयार न हो जाये.

इसके नियम बहुत कड़े हैं. इसमें छूट की कोई गुंजाइश नहीं है. इसका मूल मंत्र है शुद्धता और पवित्रता. इस दौरान तन और मन दोनों की शुद्धता और पवित्रता का भारी ध्यान रखा जाता है. लेकिन, तकलीफ होती है कि जो शुद्धता और पवित्रता की अपेक्षा इस त्योहार से की जाती है, उसका सार्वजनिक जीवन में ध्यान नहीं रखा जाता. यह महापर्व नदी-तालाबों के तट पर मनाया जाता है, लेकिन दुखद यह है कि इस मौके पर भी उनकी व्यापक साफ-सफाई नहीं होती. राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन को नदी और तालाबों की अविलंब सफाई करनी चाहिए. दूसरी बात कि छठ के बाद इन स्थलों की स्थिति देख लीजिए. वहां गंदगी का अंबार लगा मिलता है. हम स्वच्छता के इस महापर्व के बाद अपने नदियों व तालाबों को और गंदा कर छोड़ देते हैं. दरअसल, हमें स्वच्छता के प्रति अपना नजरिया बदलना होगा. त्योहार में इतनी शुद्धता और पवित्रता का ध्यान, लेकिन अपने आसपास की स्वच्छता को लेकर ऐसा नजरिया किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं किया जा सकता.

नदी और तालाबों के किनारे सभी स्थलों पर मेला लगता है. इस दौरान प्रशासन और स्वयंसेवी संस्थाओं को चाहिए कि घाट के आसपास पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था हो. इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए और सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि घाट तक आने-जाने का मार्ग अवरुद्ध न हो. मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि भारी भीड़ की व्यवस्थाओं में हम अक्सर कमजोर पड़ जाते हैं जिसका नतीजा कोई दुर्घटना होती है. शायद आपको याद हो 2012 में पटना में अदालत घाट पर शाम के अर्घ्य के समय भगदड़ मचने से 18 लोगों की जान चली गयी थी. वर्ष 2016 में बिहार के दरभंगा में एक दर्दनाक हादसे में छह महिलाओं की ट्रेन से कटकर मौत हो गयी थी.

ये महिलाएं छठ पूजा से लौट रही थीं. ये ऐसी दुर्घटनाएं हैं, जिनसे थोड़ी सी व्यवस्थाओं को दुरुस्त कर बचा जा सकता था. एक और संभावित दुर्घटनाओं की ओर ध्यान दिला दूं. छठ के दौरान अनेक स्थानों से लोगों के डूबने की खबरें आती हैं. इनसे बचने के लिए राज्य सरकारों, स्थानीय प्रशासन और स्वंयसेवी संस्थाओं को नदियों-तालाबों के आसपास पर्याप्त संख्या में तैराकों की भी व्यवस्था करनी चाहिए ताकि डूबते लोगों की जान बचायी जा सके. इन छोटी छोटी व्यवस्थाओं से हम इस महापर्व को और सुखद बना सकते हैं.

आशुतोष चतुर्वेदी

प्रधान संपादक, प्रभात खबर

ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें