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चलते फिरते ब्लड बैंक

जज्बा. बोकारो स्टील सिटी कॉलेज के विद्यार्थियों की टीम में है सेवा भाव बोकारो : बोकारो के युवाओं को सुर्खियों में रखना अच्छा लगता है. चाहे वह शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रतियोगिता परीक्षा का क्षेत्र हो या समाज सेवा का. इन दिनों बोकारो स्टील सिटी कॉलेज के 20 विद्यार्थी चलता-फिरता ब्लड बैंक बने हुए हैं. बस जरूरतमंद […]

जज्बा. बोकारो स्टील सिटी कॉलेज के विद्यार्थियों की टीम में है सेवा भाव

बोकारो : बोकारो के युवाओं को सुर्खियों में रखना अच्छा लगता है. चाहे वह शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रतियोगिता परीक्षा का क्षेत्र हो या समाज सेवा का. इन दिनों बोकारो स्टील सिटी कॉलेज के 20 विद्यार्थी चलता-फिरता ब्लड बैंक बने हुए हैं. बस जरूरतमंद के बारे में इन्हें जानकारी होनी चाहिए और वह नि:शुल्क रक्तदान करने पहुंच जाते हैं. टीम में शामिल कुछ विद्यार्थी कॉलेज में अध्ययनरत हैं, तो कुछ पढ़ाई पूरी कर चुके हैं. टीम के सदस्यों में इतनी फुर्ती है कि आप एक कॉल करें और टीम के सदस्य रक्तदान करने हाजिर. सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए टीम कॉलेजों का भ्रमण कर विद्यार्थियों को जागरूक कर टीम से जोड़ रही है.
तीन अक्तूबर को बना ली दोस्तों की टीम : तीन अक्तूबर को दोस्तों की एक टीम बना ली और सिलसिला शुरू कर दिया नि:शुल्क मोबाइल रक्तदान का. अक्तूबर 2015 से अप्रैल 2016 तक जिसे भी जरूरत पड़ी टीम के सदस्यों ने रक्तदान किया. इसका कोई लेखा जोखा नहीं रखा. फिर भी लगभग 25 यूनिट रक्तदान की बात बताते हैं. मई 2016 में एनएमएसएसएस (नि:शक्त एवं मानव संसाधन सेवा समिति) से जुड़ गये. देश भर के लोगों की सेवा करने का लक्ष्य बना लिया. टीम में आज 80 लोग है. इनकी उम्र 19 से 35 वर्ष के बीच हैं. जो नि:शुल्क रक्तदान को हर वक्त तत्पर रहते हैं.
टीम में ये हैं शामिल
अखिल कुमार मिश्रा, कमल किशोर, राजू कुमार सिंह, सौरव मिश्रा, पवन कुमार, अमित राज, कपिलदेव शर्मा, संजीव सिंह, विक्रम चौधरी, सुमित कुमार, ओम प्रकाश बाउरी, रीमा रानी, पिंटू कुमार, देव्यांशी कुमारी, सत्यवान कुमार गोराई, धनेश्वर कुमार महतो, नेहा कुमारी, प्रिया चौबे, नारायण कुमार, संदीप कुमार शामिल हैं.
कैसे मन में आया विचार
अखिल कुमार मिश्रा, कुमल किशोर, राजू कुमार सिंह, सौरव मिश्रा सहित अन्य सदस्य शहर में लगने वाले ब्लड डोनेशन कैंप देखते थे. इसके बाद भी ब्लड से लोगों के मरने की खबरें इन्हें परेशान करती थी. बात ही बात में दोस्तों ने दो अक्तूबर 2015 में एक बैठक की. निर्णय लिया कि जितना संभव होगा खुद से प्रयास
करेंगे. ब्लड की अभाव से किसी को दम तोड़ने नहीं देंगे.
एक कॉल पर होली के दिन छह यूनिट ब्लड दिया
टीम सदस्यों ने बताया कि होली (मार्च 2016) के दिन हमलोग रंग-अबीर खेल रहे थे. अचानक मोबाइल की घंटी बजी. चास के रहने वाले सौरव मिश्रा ने बताया कि उनकी बहन बीजीएच में इलाजरत हैं. स्थिति गंभीर है. चिकित्सकों ने बहन को छह यूनिट ब्लड चढ़ाने की बात कही है. हमने इस जानकारी को आपस में बांटा. 15 मिनट के अंदर टीम के सभी सदस्य जुट गये. फ्रेश होकर बीजीएच पहुंचे छह यूनिट रक्तदान किया. सौरव मिश्रा की बहन को खून से संबंधित कुछ बीमारी है. इसमें लगातार खून की जरूरत पड़ती है. सौरव को टीम ने इतना प्रभावित किया कि आज वह हमारे टीम का हिस्सा है.

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