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फादर्स डे स्पेशल : ‘पापा भगवान जी के पास चले गये हैं पागल”

!!अनुराग मुस्कान !! अभी-अभी एक हवाई जहाज सिर के ऊपर से उड़ कर निकला है. साल भर पहले जब पहली बार सचमुच हवाई जहाज में बैठा, तो एहसास हुआ कि बचपन में इस हवाई जहाज ने भी कितना इमोशनल अत्याचार किया है हम पर. मन में, पापा से मिलने की कितनी बड़ी उम्मीद जगायी थी […]

!!अनुराग मुस्कान !!

अभी-अभी एक हवाई जहाज सिर के ऊपर से उड़ कर निकला है. साल भर पहले जब पहली बार सचमुच हवाई जहाज में बैठा, तो एहसास हुआ कि बचपन में इस हवाई जहाज ने भी कितना इमोशनल अत्याचार किया है हम पर. मन में, पापा से मिलने की कितनी बड़ी उम्मीद जगायी थी इसने, जो आगे चल कर जीवन की उलझनों को सुलझाने में पता नहीं कब और कहां गुम हो गयी.
बचपन में स्कूल जाते हुए नन्ही बहन पूछा करती थी -‘भइया, पापा हमारे पास नहीं आ सकते तो क्या, हम भी पापा के पास नहीं जा सकते?’ ‘पापा भगवान जी के पास चले गये हैं पागल.’‘तो क्या भगवान जी के पास अपन नहीं जा सकते? बोलेंगे हम पापा से मिलने आये हैं. हमारे पापा यहां आ गये हैं. प्लीज मिलवा दीजिए हमारे पापा से.’ वह मासूमियत से पूछती.
‘जा सकते हैं शायद, प्लेन में बैठ कर जा सकते हैं, लेकिन उसके लिए बहुत सारे पैसे लगते हैं. पर एक दिन जायेंगे ज़रूर.’‘नहीं… अभी चलना मुझे, अभी मिलना है पापा से.’और नन्ही बहन आसमान में उड़ते एयरोप्लेन को देख कर रोने लगती. स्कूल पास आते ही मैं उसे टीचर का डर दिला कर चुप करा देता. वह आंसू पोंछ कर चुप तो हो जाती, लेकिन उसकी सिसकियां क्लॉस में दाखिल होने तक जारी रहतीं. ऐसा लगभग रोज ही होता, क्योंकि स्कूल के पास ही खेरिया हवाईअड्डा था और थोड़े-थोड़े अंतराल पर वहां से हवाई जहाज होकर गुजरते थे. किसी-किसी रोज तो बहन पापा को याद करके रोते-रोते ‘मम्मी के पास जाना है’ की जिद पकड़ बैठती थी. फिर उसे उस रिक्शे में ही वापस भेजना पड़ जाता. मैं उस वक्त चौथी क्लास में था और बहन पहली क्लास में.
हम दोनों भाई-बहन एक साथ साइकिल रिक्शा में स्कूल जाते थे. स्कूल, आगरा का केंद्रीय विद्यालय नंबर-1. घर से कोई आठ किलोमीटर दूर. पिता के देहांत के बाद हम नागपुर से आगरा चले आये थे. हालात ही कुछ ऐसे बने कि नाना-नानी मां को उसके ससुरालवालों के साथ नहीं छोड़ सकते थे. उन्होंने कभी खुद भी इच्छा जाहिर नहीं की मां को अपने साथ ले जाने की. वजह थी पापा की नौकरी. दादी चाहती थीं कि पापा के बाद उनकी नौकरी मेरे बेरोजगार चाचा को मिले. नाना-नानी मेरी मां को नौकरी दिलाना चाहते थे, ताकि हम भाई-बहन की परवरिश ठीक से हो सके. हालांकि मां ने पापा के जीते-जी कभी घर से बाहर निकल कर नौकरी के बारे में सोचा तक नहीं था, पर हालात सब कुछ करवा देते हैं. आखिरकार नौकरी मां को ही मिली. मां के ससुरालवालों ने इस बात से नाराज होकर इस हाल में उसे और भी अकेला छोड़ दिया.
पिता की मृत्यु के बाद मां की दुनिया पूरी तरह बदल चुकी थी. 28 साल की थी मां, जब पापा इस दुनिया से गये. मेरी बहन को तो पापा का चेहरा तक याद नहीं. उनके साथ बिताया एक पल भी याद नहीं. मेरी यादों में फिर भी पापा के लाड़-प्यार के कुछ धुंधलके जरूर आज भी उमड़ते-घुमड़ते हैं. पापा को हार्ट अटैक आया था. रात को सोते समय अचानक पलंग से गिर पड़े थे. मां की गोद में आखिरी सांस ली. मां ने पापा के चेहरे पर पानी के छींटे मारे, हथेलियों और तलवों को रगड़ा, लेकिन पापा फिर दुबारा कभी नहीं जागे. हम दोनों भाई-बहनों को इस बात का पता नहीं था कि पापा अब नहीं लौटेंगे. हम दोनों बस मां को देख कर रोये जा रहे थे. मुझे लगा पापा बीमारी में बेहोश हो गये हैं. हॉस्पिटल से ठीक होकर आ जायेंगे, लेकिन वह न ठीक हुए, न ही वापस आये.
उनके दाह-संस्कार का वह पल मेरे बालमन के लिए सबसे ज्यादा पीड़ादायक था. पापा मेरे सामने पड़े थे. मौन. चिरनिद्रा में. वह जाग जाते, तो सब ठीक हो जाता, लेकिन… मैंने रोते हुए पता नहीं किससे कहा था- पापा के ऊपर इतनी भारी लकड़ियां मत रखिए प्लीज़! उन्हें बहुत चोट लग रही होगी. दर्द हो रहा होगा. मुझे वहां से कुछ देर के लिए हटा दिया गया. फिर कुछ देर बाद पापा को मुखाग्नि देते हुए समझ नहीं पा रहा था कि पापा हमें छोड़ कर क्यूं चले गये, जबकि टॉयलेट और ऑफिस जाने के सिवाय वह कभी हमें अकेले नहीं छोड़ते थे.
आजतक नहीं समझ पाया हूं कि पापा क्यूं चले गये. आज भी पग-पग पर पापा की जरूरत महसूस होती है. उनकी कमी खलती है. उम्र और समझ के साथ मेरी और बहन की वह उम्मीद भी कब की टूट चुकी है कि पापा से मिलने हवाई जहाज से जाना मुमकिन है.साल भर पहले जब पहली बार हवाई जहाज में बैठा, तो सोचा कि इस हवाई जहाज ने भी कितना इमोशनल अत्याचार किया है हम भाई-बहन पर और यह ख्याल आते ही मुस्कुरा दिया. मैं जमीन से कई हजार फीट की ऊंचाई पर था, लेकिन पापा से फिर भी दूर… बहुत दूर. आज भी जब किसी हवाई जहाज को उड़ता देखता हूं, तो बचपन की उन यादों का मेला लग जाता है कुछ देर के लिए.
साभार : एबीपी न्यूज एंकर अनुराग मुस्कान द्वारा पिता पर लिखा एक संस्मरण उनके ब्लॉग से

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