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डॉक्टरों ने बताया था ‘ब्रेन डेड’, अब संवार रहे लोगों की जिंदगी आंखों की रोशनी छिन जाने से एक शख्स का होटल मैनेजमेंट का भरा-पूरा कैरियर डूबने लगा. इसे बचाने की उसने जद्दोजहद की लेकिन तरह-तरह की बीमारियों ने उसकी एक न चलने दी. डॉक्टरों ने उसे ब्रेन डेड जैसा घोषित कर दिया. लेकिन उसने […]

डॉक्टरों ने बताया था ‘ब्रेन डेड’, अब संवार रहे लोगों की जिंदगी
आंखों की रोशनी छिन जाने से एक शख्स का होटल मैनेजमेंट का भरा-पूरा कैरियर डूबने लगा. इसे बचाने की उसने जद्दोजहद की लेकिन तरह-तरह की बीमारियों ने उसकी एक न चलने दी. डॉक्टरों ने उसे ब्रेन डेड जैसा घोषित कर दिया. लेकिन उसने हार नहीं मानी. आज वह जिंदगी से टूट चुके लोगों को जीने की नयी राह दिखा रहा है.
47 साल के डॉ अजीम बोलार दृष्टिहीन हैं और उनके शरीर का बायां हिस्सा लकवाग्रस्त है. ब्रोंकाइटिस और हार्ट वाल्व डिफेक्ट के साथ जन्मे अजीम ने 27 साल की उम्र में अपनी आंखें खो दी थीं. किशोरावस्था में उन्हें जुवेनाइल आर्थराइटिस ने जकड़ लिया. लेकिन इन सबके बावजूद वे किसी भी लिहाज से खुद को कमजोर नहीं मानते. मूल रूप से मंगलोर के रहनेवाले अजीम का परिवार पूर्वी अफ्रीका में बस गया था. वहां से 17 साल की उम्र में अजीम ने होटल व्यवसाय का प्रशिक्षण लेने के लिए फ्रांस के स्ट्रासबर्ग का रुख किया.
कुछ साल बाद उन्होंने लंदन से होटल मैनेजमेंट की पोस्ट ग्रैजुएट डिग्री ली. अजीम का सपना एक मास्टर शेफ बनने का था, लेकिन जिंदगी ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था.
खैर, 1991 में भारत लौट कर अजीम ने बेंगलुरू के एक रेस्त्रं में मैनेजर की नौकरी की. अपने काम में तरक्की करते हुए अजीम ने द ओबेरॉय, बेंगलुरू में नाइट मैनेजर की नौकरी पायी. लेकिन तब तक अजीम की नजर धुंधली पड़ने लगी और मजबूरन उन्हें यह नौकरी छोड़नी पड़ी. इस काम में अजीम का इतना मन लग चुका था कि उन्होंने अपने स्तर से ही सही, इसे जारी रखने की भरसक कोशिश की, लेकिन मेनिन्जाइटिस, सेरेब्रल मलेरिया और लकवे के हमले के आगे उनकी एक न चली. अब तक उनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गयी थी और शरीर का बायां हिस्सा लकवाग्रस्त.
डॉक्टरों ने अजीम को एक तरह से ब्रेन डेड घोषित कर दिया था. लेकिन आज अजीम बेंगलुरू के जाने-माने काउंसलर हैं और उनके खाते में काउंसलिंग की बड़ी और प्रतिष्ठित डिग्रियां हैं. हाल ही में उन्होंने इंडियन वचरुअल यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री भी पायी है. लोगों को डर, शर्म, सदमे, अवसाद और निराशा के अंधकार से बाहर निकालना अब अजीम का काम है.
एक काउंसलर के तौर पर अजीम, बेंगलुरू की एक सॉफ्टवेयर कंपनी, अदिति, में हफ्ते के दो दिन अपनी सेवाएं देते हैं, जबकि एक दिन का समय बंजारा अकादमी स्थित उनके संस्थान के नाम होता है, जहां वह जरूरतमंदों को काउंसलिंग की नि:शुल्क सेवा देते हैं. हफ्ते के बाकी दिन वह यही काम अपने घर से करते हैं.
कुवेंपु यूनिवर्सिटी, कर्नाटक से न्यूरो-लिंग्विस्टिक प्रोग्रामिंग, हिपAोथेरेपी, जेस्टैल्ट थेरेपी, रेकी, साइकोथेरेपी की डिग्रियां ले चुके डॉ अजीम को उनकी उपलब्धियों के लिए बेस्ट ब्लाइंड प्रोफेशनल सहित कई पुरस्कार मिल चुके हैं. अपने सारे ज्ञान और तजुर्बे को जरूरतमंदों की सेवा में लगानेवाले अजीम कहते हैं कि इससे उन्हें जीने का एक मकसद मिलता है. दूसरों की मदद कर मैं अपनी परेशानियां दूर करता हूं. प्यार से बोले गये मेरे दो बोल अगर किसी का जीवन सुधार दें तो मैं खुद को खुशनसीब मानता हूं.
नि:शक्तता की इस अवस्था में भी अजीम के भीतर गजब का उत्साह है. वह कहते हैं, जब लोग अपनी परेशानियों के साथ मेरे पास आते हैं, तो मेरी पूरी कोशिश होती है कि जीवन के प्रति उनका नजरिया बदल जाये. और वास्तव में अगर आप दूसरों की मदद करना आपकी दिनचर्या में शुमार हो जाता है तो आप पाते हैं कि आप अपनी जिंदगी की उलझनों से आजाद होने लगते हैं. इस स्थिति में जब लोग जिंदगी जीने का साहस खोने लगते हैं, अजीम का मानना है कि जिंदगी में नामुमकिन कुछ भी नहीं.
जिंदगी के दुख और परेशानियों को अगर आप चुनौती के रूप में लें तो वे किस तरह आपके लिए अवसर में बदल सकती हैं, इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए डॉ अजीम बोलार को जानना होगा. वह कहते हैं कि जिंदगी की हर एक तकलीफ आपको एक सबक सिखाती है. अजीम आगे कहते हैं, मैं चाहूंगा कि मेरी नि:शक्तता की वजह से लोग मुङो दया की दृष्टि से न देखें बल्कि इस अवस्था में भी मेरी उपलब्धियों को देख कर उन्हें मुझसे रश्क हो.

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