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अलविदा एचएमटी की घड़ियां

!!धीरज जैना,जमशेदपुर!! आखिर वही हुआ जिसका अंदेशा था. वर्ष 2000 से घाटे के दौर से गुजर रही एचएमटी (हिन्दुस्तान मशीन टूल्स) की घाड़ियों के कांटे रोक दिये गये. सरकार को अंतत: इसका उत्पादन बंद करने का फैसला लेना पड़ा. वर्ष 2000 के बाद से ही मार्केट में सिमटी जा रहीं एचएमटी की घड़ियां अब उत्पाद […]

!!धीरज जैना,जमशेदपुर!!

आखिर वही हुआ जिसका अंदेशा था. वर्ष 2000 से घाटे के दौर से गुजर रही एचएमटी (हिन्दुस्तान मशीन टूल्स) की घाड़ियों के कांटे रोक दिये गये. सरकार को अंतत: इसका उत्पादन बंद करने का फैसला लेना पड़ा. वर्ष 2000 के बाद से ही मार्केट में सिमटी जा रहीं एचएमटी की घड़ियां अब उत्पाद के रूप में बाजार में नहीं दिखेंगीं, लेकिन लोगों की यादों से इसे कोई ओझल नहीं कर सकता. 1970-90 का दौर देखने वाले लोग इस घड़ी के क्रेज को किसी भी तरह भुला नहीं सकते. उस दौर की शायद ही कोई ऐसी शादी हो, जिसमें दूल्हा-दुल्हन की कलाई पर एचएमटी की घड़ियां न सजी हों. कॉलेज की दहलीज तक जाने वाले छात्रों को तो इसका खास इंतजार रहता था. हो सकता है आने वाली पीढ़ी इन घड़ियों को सिर्फ इंटरनेट पर देख पाये. सिटी में भी इन घड़ियों की बिक्री वर्ष 2000 के बाद से न के बराबर रह गयी थी. लेकिन, यहां आज भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग मौजूद हैं, जिनकी कलाई की शोभा एचएमटी की घड़ियां बढ़ाती हैं. यह सिर्फ टाइम नहीं बतातीं, बल्कि एक युग का संकेत देती हैं.

साकची (जमशेदपुर) निवासी धीरज जैना अपनी कलाई पर बंधी एचएमटी की घड़ी को दिखाते हुए चहकने लगते हैं. घड़ी के साथ उनके लगाव की कहानी थोड़ी अलग है. हम लोग घड़ी देख कर समय का अंदाजा लगाते हैं, लेकिन धीरज जैना अपनी घड़ी को देखकर अपनी वर्षो की मेहनत याद को याद करते हैं. 40 वर्षो तक टाटा कंपनी में काम करने के बाद जब उनके रियाटरमेंट का समय आया तो यह घड़ी कंपनी की ओर से दी गयी थी. रिटायर्मेट से लेकर आज तक उन्होंने घड़ी को अपनी कलाई से लगा रखा है. ऐसा लगता है मानो घड़ी उनके शरीर हिस्सा बन गयी हो.

परशुराम शर्मा निवासी साकची की कलाई पर एचएमटी की घड़ी 1965 से विराजमान है. उस साल परशुराम शर्मा की शादी होने वाली थी. उनके ससुर ने उन्हें बड़े ही प्यार के साथ घड़ी भेंट की थी. घड़ी के साथ पुरशुराम शर्मा की वर्षो पुरानी यादें जुड़ी हैं. आज भी उन घड़ियों को पहनने के साथ इनकी यादें ताजा हो जाती हैं. परशुराम शर्मा बताते हैं कि उस समय के अनुसार यह घड़ी काफी कीमती हुआ करती है. 1965 में इस घड़ी की कीमत लगभग 95 रुपये थी.

वर्षो पहले मोहम्मद नइमुद्दीन, निवासी साकची को उनके भांजे ने बड़े ही प्रेम के साथ एचएमटी की घड़ी भेंट की थी. भांजे के दिल को रखने के लिए नइमुद्दीन ने उसके भेंट को स्वीकार कर लिया था. उस दौरान जब भी नईमुद्दीन उस घड़ी को खूब पहना करते थे. जब भी घर के बाहर किसी भी काम के लिए बाहर जाना पड़ता था घड़ी कलाई पर जरूर होती थी. नइमुद्दीन का इस घड़ी से इसलिए भी ज्यादा लगाव है, क्योंकि वो सिर्फ समय नहीं बताती, बल्कि भांजे का प्यार भी जताती है.

ललित कुमार आज ओल्डएज होम (बाराद्वारी) में रहते हैं. वह बताते हैं, बात उस समय की है जब मैं नौजवान था. पिताजी ने एचएमटी की घड़ी भेंट की थी. मारे खुशी के लगता था क्या करूं क्या न करूं. पैर जमीन पर नहीं पड़ते थे. पढ़ाई से लेकर नौकरी तक इसी घड़ी के साथ बिताया. आज उम्र के इस पड़ाव पर जिंदगी की कई सारी बातें धुंधली हो गयी हैं, लेकिन इस घड़ी से लगाव कम नहीं हुआ. यह घड़ी मुझे मेरे पिता की याद दिलाती है.

एचएमटी घड़ियों की बात ही कुछ और है. एचएमटी के जैसी घड़ियां आज के जमाने में मिलना मुश्किल है. लोगों की सांसें रुक जाती थीं पर एचएमटी घड़ियों की सूइयां नहीं रुकतीं. ये सालों-साल चलती थीं और सबसे बड़ी बात इन्हें बहुत कम ही बार रिपेयरिंग की जरूरत पड़ती थी.
विनोद कुमार, पूर्व डीलर, बिष्टुपुर

पहले केवल एचएमटी का ही दौर था. मेरी दुकान पर एचएमटी की कई घड़ियां बनने के लिए आती थीं. पर आज के दौर में न तो घड़ियां आती हैं और न ही एचएमटी की घड़ियों को बना सकने वाले कारीगर मौजूद हैं. ये काफी लोहा-लाट घड़ी हुआ करती थीं.
एन उमाशंकर, मैकेनिक, बिष्टुपुर

किसी जमाने में एचएमटी घड़ियों के मॉडल्स को लेटेस्ट ट्रेंड में काउंट किया जाता था. इतना ही नहीं एचएमटी की तब घड़ियां एसेसरी के रूप में काउंटहोती थीं.
कमलेश गुप्ता, कदमा

सिटी में एचएमटी का मार्केट जीरो हो चुका है. शायद ही किसी दुकान पर कोई मॉडल अवेलेबल हो सके. खरीदार भी काफी समय से छिटक चुके हैं.
जयंत, दुकानदार

कुछ जानकारी की बातें

जवाहर लाल नेहरू जी ने लांच की थी पहली एचएमटी वॉच

एचएमटी (हिन्दुस्तान मशीन टूल्स) की शुरुआत 1953 में हुई थी. जापान की रिस्ट वॉच कंपनी सिटीजन के साथ टाइअप करके एचएमटी की पहली प्रोडक्शन यूनिट बेंगलुरू लगी थी. वर्ष 1961 में एचएमटी कंपनी की पहले बैच की घड़ियों को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू में लांच किया था.

34 से 3 परसेंट तक

शुरुआती दौर में रिस्ट वॉच के मार्केट में एचएमटी कंपनी का बोलबाला था. बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 70 के दशक में तत्कालीन प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी द्वारा एचएमटी कंपनी को प्रोडक्शन डबल करने के लिए कहा गया था. उश दौरान देश के रिस्ट वॉच के टोटल मार्केट का 34 परसेंट शेयर एचएमटी कंपनी के पास था. पर मॉडल्स को रिवाइटलाइज न करने और केवल सेलेक्टेड मॉडल्स के दम पर ही कंपनी को रन कराने के चलते धीरे-धीरे कंपनी डाउन फॉल पर जाती गई. नतीजन 2000 में कंपनी लगभग मार्केट से गायब होने की कगार पर आ गई. 2000 में एचएमटी का मार्केट शेयर केवल 3 परसेंट रह गया.

पहली ऑटोमेटिक डे-डेट वॉच

एचएमटी कंपनी ही देश की पहली डे-डेट वाली वॉचेज बनाने वाली कंपनी थी. इसके अलावा देश में ब्रेल घड़ी, एनॉ डिजी वॉच और कई दूसरे मॉडल्स लांच करने वाली यह पहली कंपनी है.

स्थापित की गयी थीं चार यूनिटें

कर्नाटक के बेंगलुरू में एचएमटी घड़ियों के उत्पादन शुरू होने के बाद, उसी प्रांत के टुमकुर में, उत्तराखंड के रानीबाग में हैं. इसी प्रकार एचएमटी चिनार की दो यूनिटें जम्मू और श्रीनगर में हैं.

फेमस मॉडल्स

ओल्ड मॉडल्स
: जनता, सोना, पायलट, तरुण, नूतन, जवाहर, ऑटोमेटिक डे एंड डेट, प्रिया, चिनार, निशत, राखी, अविनाश, कोहिनूर

लास्ट मॉडल्स
: एलेगेंस, रोमन, उत्सव, संग्राम, ललित, पेस, स्वर्ण, श्रेयस, चंदन, ब्रेले, काजल व रजत

संयुक्त बिहार के पहले डीलर थे विनोद

एचएमटी घड़ियों और सिटी का काफी पुराना रिलेशन है. एचएमटी की पहली डीलरशिप भी सिटी के ही शख्स को मिली थी. सिटी के विनोद कुमार को 1980 के वक्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एचएमटी घड़ियों की डीलरशिप दी थी. उस दौर में बिहार का विभाजन नहीं हुआ था. और उस वक्त में विनोद कुमार पूरे बिहार के इकलौते एचएमटी घड़ियों के डीलर थे.

यूथ जानते तो हैं, लेकिन पहचानते नहीं

एचएमटी की घड़ियों के बारे में मैं जानता हूं, क्योंकि मेरे पिताजी इस घड़ी को पहना करते थे. आज भी कभी-कभी उस घड़ी को पहनते हैं. उनके हाथों में ही मैंने इस घड़ी को देखा है. दिखने में काफी अच्छी है.
शशांक सिंह, मानगो

मेरे दादाजी एचएमटी की घड़ी को पहना करते थे. जहां तक मैने सुना है इस घड़ी में काफी स्पेशेलिटी हैं. जैसे इस घड़ी में बैटरी नहीं होती. साथ ही इसे घुमाने पर चलती है. पहले लोग इन्हीं घड़ियों को पहना करते थे.

सोनू कुमार, सरायकेला

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