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शारदीय नवरात्र : फेस्टिवल की उमंग साड़ियों के संग

निकिता सक्सेना शारदीय नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा कई भिन्न रूपों में की जाती है. कहीं वह काली के रूप में पूजी जाती हैं, तो कहीं महालक्ष्मी के रूप में. कहीं उनके आगमन की खुशी में लोग डांडिया या गरबा नृत्य करते हैं, तो कहीं ढाक-ताल बजाते हैं. विविध सांस्कृतिक परंपराओं के साथ मनायी […]

निकिता सक्सेना

शारदीय नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा कई भिन्न रूपों में की जाती है. कहीं वह काली के रूप में पूजी जाती हैं, तो कहीं महालक्ष्मी के रूप में. कहीं उनके आगमन की खुशी में लोग डांडिया या गरबा नृत्य करते हैं, तो कहीं ढाक-ताल बजाते हैं. विविध सांस्कृतिक परंपराओं के साथ मनायी जानेवाली इस पूजा में पहने जानेवाले आपके पहनावे भी संस्कृति की झलक मिलनी चाहिए. जानते हैं देश के अलग-अलग क्षेत्र की पांच पारंपरिक साड़ियों के बारे में, जो इस दौरान आपको भीड़ से हट कर एक खास लुक दे सकता है.

कलमकारी प्रिंट साड़ियां

कलमकारी आंध्रप्रदेश की लोककला है. वहां की महिलाएं पारंपरिक अवसरों पर कलमकारी प्रिंट की साड़ियां पहनना पसंद करती हैं. कलमकारी दो शब्दों से मिलकर बना है, कलम यानी पेन और कारी यानी कला. इस प्रिंट को सूती कपड़े पर एक स्पेशल कलम या नींब की मदद से खूबसूरती के साथ उकेरा जाता है. खूबसूरत होने के साथ ही सूती कपड़े पर बनी होने के कारण कलमकारी साड़ियां मजबूत व टिकाऊ भी होती हैं.

बांधनी व पटोला प्रिंट साड़ियां

गुजराती कल्चर को दर्शाती बांधनी साड़ियों को कई स्तर पर मोड़ कर, बांध कर व रंग कर बनाया जाता है. वहीं पारंपरिक डबल इकटवाली पटोला प्रिंट साड़ियों पर पान, नवरत्न, रास, हाथी और मोर जैसे मोटिफ बनाये जाते हैं. ये साड़ियां हर उम्र की महिलाओं पर फबती हैं और सभी तरह के अवसरों के लिए उपयुक्त होती हैं.

चंदेरी साड़ियां

चंदेरी बुनाई भारत का दिल कहे जानेवाले राज्य मध्य प्रदेश की पारंपरिक कला है. चंदेरी कपड़ों को को मूल रूप से प्योर सिल्क, चंदेरी कपास और रेशम कपास में मिला कर तैयार किया जाता है. ये साड़ियां पहनने में और वजन में एकदम हल्की होती हैं. साथ ही गर्मियों के लिए विशेष तौर से उपयुक्त होती हैं.

बनारसी साड़ियां

बनारस शहर की इन साड़ियों पर किया जानेवाला सोने व जरी का काम पूरे विश्व में मशहूर है. इसमें प्योर सिल्क साड़ी पर बेहद जटिल फूल पैटर्न, पत्तियों का काम और मोतियों का डिजाइन बनाया जाता है.

एक बनारसी साड़ी को बनाने में कारीगरों को कम-से-कम छह महीने तक का समय लग जाता है. ऐसा माना जाता है कि भारत में यह कला मुगलों द्वारा लायी गयी थी, इसीलिए आज भी इनमें ज्यादातर मुगलकालीन चित्र और डिजाइनवाले पैटर्न ही देखने को मिलते हैं.

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