Kumari Kandam: कुमारी कंदम, भारत का वह प्राचीन भूभाग, जो सागर की लहरों में समा गया
Kumari Kandam: हजारों साल पहले समुद्र के बढ़ते जलस्तर ने कई प्राचीन सभ्यताओं को डुबो दिया. तमिल साहित्य में वर्णित कुमारी कंदम और वैज्ञानिकों द्वारा बताए गए लेमुरिया महाद्वीप की दास्तां आज भी रहस्य बनी हुई है. माना जाता है कि यह भारत से तीन गुना बड़ा भूभाग था.
Kumari Kandam: समय-समय पर दुनिया भर में समुद्र के बढ़ते जलस्तर की खबरें सामने आती रहती हैं. वैज्ञानिक चेतावनी देते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमखंड पिघल रहे हैं और इसका असर तटीय शहरों पर सबसे पहले दिखाई देगा. कई जगहों पर पानी का स्तर इतना ऊपर पहुंच सकता है कि पूरे शहर समुद्र में समा जाएं. दिलचस्प बात यह है कि प्राचीन ग्रंथों और परंपराओं में भी ऐसी घटनाओं का उल्लेख मिलता है. यूनानी दार्शनिक प्लेटो ने भी अपने लेखन में बताया था कि बर्फ से ढके अंटार्कटिका के नीचे कभी मानव बस्तियां बसी हुई थीं. भारत से जुड़ी मान्यताओं में भी एक विशाल भूभाग के डूब जाने का जिक्र मिलता है.
मानव सभ्यता के इतिहास को देखें तो धरती ने कई बार विनाशकारी परिवर्तन देखे हैं. अनेक प्रजातियां लुप्त हुईं और नई प्रजातियों ने जन्म लिया. धर्मग्रंथों से लेकर वैज्ञानिक शोध तक, हर जगह किसी न किसी रूप में प्रलय का जिक्र मिलता है. भारत के तमिल साहित्य में भी एक डूबे हुए भूभाग कुमारी कंदम का उल्लेख है. वैज्ञानिकों के अनुसार यह प्राचीन भूभाग कभी गोंडवाना महाद्वीप का हिस्सा था, जिसके टूटने से भारत, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका बने.
उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप और अमेरिका के कुछ विद्वानों ने अफ्रीका, भारत और मैडागास्कर के बीच भूगर्भीय समानताओं का अध्ययन किया. उनके शोध में समुद्र में डूबे हुए एक महाद्वीप का अनुमान लगाया गया, जिसे लेमुरिया नाम दिया गया. शोधकर्ताओं का कहना था कि यह भूभाग हिमयुग के पिघलने के बाद बढ़ते समुद्र में समा गया. इसी दौरान एक अन्य द्वीप मु (Mu) के डूबने का भी उल्लेख मिलता है. कहा जाता है कि इन दोनों द्वीपों पर अत्यंत उन्नत मानव सभ्यता रहती थी.
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तमिल इतिहास में कुमारी कंदम
तमिल विद्वानों और इतिहासकारों के अनुसार, लेमुरिया महाद्वीप का एक हिस्सा कुमारी कंदम कहलाता था. इसे तमिल परंपरा में कुमारी कांतम या कुमारी नाडू भी कहा गया है. यह क्षेत्र आज के भारत के दक्षिण में हिंद महासागर में मौजूद था और इसे एक खोई हुई तमिल सभ्यता का प्रतीक माना जाता है. तमिल साहित्य, लोकगीतों और कथाओं में इसकी स्मृतियां आज भी जीवित हैं.
यूरोपीय खोजकर्ता जब भारतीयों से मिले और इन लोककथाओं की चर्चा की, तब उन्हें यह समझने में मदद मिली कि यह केवल कल्पना नहीं हो सकती. कुछ विद्वानों का मानना है कि मानव सभ्यता की जड़ें अफ्रीका में हैं, लेकिन तमिल शोधकर्ताओं का दावा है कि इसका आरंभ कुमारी कंदम की धरती पर हुआ था.
ब्रिटिश खोजकर्ता फिलिप कॉल्टन ने 1864 में एक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने भारत और मैडागास्कर के बीच वानरों के जीवाश्म पाए जाने के आधार पर यहां सभ्यता के अस्तित्व का दावा किया. उनके अनुसार कुमारी कंदम का क्षेत्र उत्तर में कन्याकुमारी से लेकर पूर्व में मैडागास्कर और पश्चिम में ऑस्ट्रेलिया तक फैला हुआ था. इस तरह यह आज के भारत से 3-4 गुना बड़ा भूभाग था.
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समुद्र का बढ़ता जलस्तर और महाप्रलय
भारत में किए गए शोध बताते हैं कि लगभग 14,500 साल पहले समुद्र का स्तर आज की तुलना में 100 मीटर नीचे था. दस हजार साल पहले यह स्तर 60 मीटर नीचे था. इसका अर्थ है कि उस समय भारत और श्रीलंका के बीच भूमि का एक पुल मौजूद रहा होगा. धीरे-धीरे समुद्र का स्तर बढ़ता गया और यह भूमि जल में डूब गई. अनुमान लगाया जाता है कि पिछले 15 हजार वर्षों में समुद्र की बढ़ोतरी ने इस पूरे भूभाग और द्वीपों को जलमग्न कर दिया.
कॉल्टन के अनुसार लेमुरिया के लोग कद में लंबे थे और उनका जीवन हिमयुग में पनपा था. जब हिमयुग समाप्त हुआ तो बर्फ पिघली और समुद्र का स्तर बढ़ा, जिसके परिणामस्वरूप यह सभ्यता समुद्र में डूब गई. ‘लेमुरिया’ शब्द ‘लेमुर’ नामक जीव से निकला है, जो बंदर और गिलहरी का मिश्रित रूप है और आज भी मैडागास्कर, भारत और मलाया क्षेत्रों में पाया जाता है. माना जाता है कि यह जीव तभी भारत तक पहुंचा होगा जब हिंद महासागर में कोई द्वीप इनके आने-जाने का मार्ग रहा होगा.
टुकड़ों में बंट गया था कुमारी कंदम
तमिल लेखों के अनुसार, जब कुमारी कंदम डूबा तो उसका लगभग 7000 मील क्षेत्र करीब 49 भागों में बिखर गया. हालांकि यहां रहने वाले कुछ लोग जीवित बचे और उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर बसावट की. धीरे-धीरे नई सभ्यताओं का उदय हुआ. कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण भारत के बीच लेमुरिया का पुल रहा होगा, जिसके जरिये मैडागास्कर और अफ्रीका की जातियां भारत पहुंचीं.
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आज भी इस डूबे हुए भूभाग को लेकर खोज जारी है. चाहे वैज्ञानिक नजरिया हो या तमिल साहित्य की स्मृतियां, दोनों मिलकर इस ओर इशारा करते हैं कि कभी हिंद महासागर के नीचे एक विशाल सभ्यता बसी थी, जो समय के साथ समुद्र में समा गई.
